‘गहने गिरवी रखकर इलाज करवा रहे थे, और पैसे नहीं दिए तो उन्होंने पिताजी को बांध दिया’

बीते दिनों मध्य प्रदेश के शाजापुर के एक बुज़ुर्ग मरीज़ को अस्पताल के बेड पर रस्सियों से बांधने का वीडियो सामने आया था. मरीज़ की बेटी ने बताया कि बढ़ते बिल को देखकर जब उन्होंने अपने पिता को डिस्चार्ज करने को कहा तब अस्पताल ने बिना पैसे चुकाए ऐसा करने से मना कर दिया. जांच में यह बात सही पाए जाने के बाद अस्पताल का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया गया है.

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सिटी अस्पताल में लक्ष्मीनारायण. (साभार: वीडियोग्रैब/ट्विटर)

बीते दिनों मध्य प्रदेश के शाजापुर के एक बुज़ुर्ग मरीज़ को अस्पताल के बेड पर रस्सियों से बांधने का वीडियो सामने आया था. मरीज़ की बेटी ने बताया कि बढ़ते बिल को देखकर जब उन्होंने अपने पिता को डिस्चार्ज करने को कहा तब अस्पताल ने बिना पैसे चुकाए ऐसा करने से मना कर दिया. जांच में यह बात सही पाए जाने के बाद अस्पताल का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया गया है.

सिटी अस्पताल में लक्ष्मीनारायण. (साभार: वीडियोग्रैब/ट्विटर)
सिटी अस्पताल में लक्ष्मीनारायण. (साभार: वीडियोग्रैब/ट्विटर)

नई दिल्लीः बीते दिनों मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के एक अस्पताल की कुछ तस्वीरें और वीडियो वायरल हुए, जिसमें अस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए एक बुजुर्ग शख्स के हाथ और पैर रस्सी से बंधे थे.

ये शख्स लगभग 70 साल के लक्ष्मी नारायण हैं, जो शाजापुर के रनारा गांव के रहने वाले हैं. पेट दर्द और पेशाब करने में दिक्कत की शिकायत के बाद परिवार ने इन्हें एक जून को शाजापुर के सिटी अस्पताल में भर्ती कराया था.

परिवार वालों का आरोप है कि इलाज का बकाया नहीं चुका पाने पर अस्पताल प्रशासन ने मरीज को रस्सियों से बांधा, जबकि अस्पताल प्रशासन कहता है कि मरीज की मानसिक हालत स्थिर नहीं थी इसलिए उन्हें रस्सियों से बांधा गया.

लक्ष्मी नारायण की बेटी शीला दांगी (20) ने द वायर  को बताया, ‘पिताजी को पेट में दर्द और पेशाब करने में दिक्कत की वजह से एक जून को शाजापुर के सिटी अस्पताल में भर्ती कराया था. हम बेहद गरीब परिवार से हैं इसलिए भर्ती कराने से पहले अस्पताल से पूछा कि इलाज में कितना खर्च आएगा. अस्पताल ने कहा कि इलाज में छह-सात हजार लगेंगे. उसी दिन अस्पताल ने एडवांस के तौर पर 6,000 रुपये जमा करा लिए. फिर बुधवार को 5,000 रुपये और मांगे. इसके अलावा दवाइयों और अन्य सामान का पैसा हम अलग से खर्च कर रहे थे.’

शीला कहती हैं, ‘इलाज के नाम पर अस्पताल रोज पैसे मांग रहा था. पिताजी के इलाज के लिए मां के कुछ गहने गिरवी रखकर पैसे उठाए थे. सभी पैसे खर्च हो गए. इसके बाद हमने अस्पताल से कहा कि हमारे पास पैसे खत्म हो गए हैं, इसलिए इन्हें डिस्चार्ज कर दिया जाए लेकिन अस्पताल ने डिस्चार्ज और अन्य चीजों के नाम पर 11,000 रुपये और मांगे.’

शीला ने बताया कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद ख़राब है, ऐसे में पैसों का इंतजाम करना बहुत मुश्किल था. उन्होंने बताया, ‘हम इतने पैसे कहां से लाते, हमने अस्पताल से कहा कि आपने तो शुरुआत में कहा था कि ज्यादा खर्चा नहीं आएगा. इलाज में पांच से छह हजार रुपये ही खर्च होंगे लेकिन इलाज के नाम पर हम हजारों रुपये पहले ही खर्च कर चुके हैं और अब 11,000 रुपये और चुकाने को कहा जा रहा है. अस्पताल ने कहा कि ये पैसा तो देना ही होगा वरना डिस्चार्ज नहीं करेंगे.’

शीला का कहना है कि उन्होंने अस्पताल प्रशासन के सामने हाथ-पैर जोड़े कि उनके पास बिल्कुल पैसे नहीं है और अब वे यहां इलाज नहीं करा पाएंगे इसलिए जाने दिया जाए लेकिन प्रशासन के कान पर जूं तक नहीं रेंगी.

वे कहती हैं, ‘हमने अपनी पैसों की परेशानी अस्पताल को बताई थी कि गहने गिरवी रखकर पैसों का बंदोबस्त किया है लेकिन वे (अस्पताल) नहीं माने. मैं पिताजी को लेकर अस्पताल से जाने लगी लेकिन हमें गैलरी में ही रोक लिया और अस्पताल के लोग पिताजी को घसीटकर अंदर कमरे में ले गए और बिस्तर पर उनके हाथ और पैरों को रस्सियों से बांध दिया. मैं रोती-चिल्लाती रही लेकिन किसी का दिल नहीं पिघला.’

शाजापुर के स्थानीय पत्रकार संदीप गुप्ता इस दौरान अस्पताल में ही मौजूद थे और उन्होंने बुजुर्ग को अस्पताल प्रशासन द्वारा रस्सियों से बांधे जाने की इस पूरी घटना का वीडियो अपने कैमरे मे कैद किया था.

संदीप गुप्ता द वायर  से बातचीत में कहते हैं, ‘मैं रूटीन काम के लिए अस्पताल गया था तभी मुझे वहां इस पूरी घटना के बारे में पता चला. मैं तुरंत इसे रिकॉर्ड करने लगा. बुजुर्ग मरीज असहाय बिस्तर पर रस्सियों में जकड़े हुए थे. उनकी बेटी कमरे के बाहर खड़ी रो रही थी लेकिन अस्पताल असंवेदनशील बना हुआ था. कुछ पैसों के लिए एक बीमार, बुजुर्ग इंसान को जानवरों की तरह रस्सी से बांध दिया गया. जब लोगों की भीड़ इकट्ठा हुई और बुजुर्ग को रस्सी से बांधे जाने का विरोध किया जाने लगा तो प्रशासन ने फटाफट उनकी रस्सियां खुलवा दी.’

संदीप कहते हैं, ‘इस पूरी घटना से अस्पताल प्रशासन बहुत घबरा गया था क्योंकि लोगों ने अपने कैमरों से बुजुर्ग को रस्सी से बांधे जाने की घटना को रिकॉर्ड कर लिया था.’

अपने घर में पिता के साथ शीला. (फोटो: Special Arrangement)
अपने घर में पिता के साथ शीला. (फोटो: Special Arrangement)

शीला का कहना है कि अस्पताल ने उनसे एक पत्र भी लिखवाया है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि अस्पताल में इस तरह की कोई घटना नहीं हुई है. यह पूछने पर कि उन्होंने यह पत्र क्यों लिखा? इस पर शीला कहती है, ‘मैं क्या करती. अस्पताल वाले मुझे डरा-धमका रहे थे, दबाव बना दिया था. मुझे तो अपने पिताजी की फिक्र थी. मैंने वो पत्र लिख दिया.’

संदीप गुप्ता कहते हैं, ‘इस पूरे मामले में अस्पताल की किरकिरी न हो इसलिए अस्पताल ने कहा कि वह इनका बकाया माफ कर रहा है और बीते शुक्रवार आधी रात को बुजुर्ग को एक सरकारी अस्पताल में भर्ती करा दिया.’

इस पूरे मामले में अस्पताल के डॉक्टर अतुल भावसर का कहना है, ‘मरीज को पेट में दर्द और पेशाब आने में दिक्कत की शिकायत थी. उनके हाथ में ऐंठन हो रही थी, हमने चार-पांच दिन रखकर इलाज किया, इसके बाद तकलीफ ठीक हो गई. मरीज के परिवार वालों ने बिल को लेकर बहुत समस्याएं खड़ी कीं, लेकिन फिर भी हमने उनका बिल माफ कर दिया.’

भावसर कहते हैं, ‘परिवार वाले जो आरोप लगा रहे हैं, वे सरासर गलत है. मरीज को कंवल्जन (ऐंठन) की शिकायत है इसलिए हमने उन्हें बांधकर रखा था क्योंकि जो भी कंवल्जन के मरीज आते हैं वो हाथ और पैर बहुत चलाते हैं, पलंग से गिर जाते हैं इसलिए हमने उन्हें उनकी भलाई के लिए ही रस्सी से बांध दिया था.’

अस्पताल के ऐंठन की शिकायत के इन आरोपों को लेकर जब  खुद मरीज लक्ष्मी नारायण (मरीज) से पूछा, तो उन्होंने द वायर  से कहा, ‘मुझे कोई ऐंठन नहीं है और न ही मैं मानसिक तौर पर अस्वस्थ हूं. मुझे बस पेट में दर्द था और पेशाब नहीं आ रहा था इसलिए उस अस्पताल में चले गए. मुझे पता होता कि हमारे साथ अस्पताल वाले ऐसा करेंगे तो कभी वहां नहीं जाते.’

वह कहते हैं, ‘मुझे गैलरी से घसीटकर अंदर कमरे में ले जाया गया. मेरे नली लगी थी. मैं कहता रहा कि मेरे पेट दर्द कर रहा है लेकिन किसी से नहीं सुनी. मेरे हाथ और पैर बांध दिए, मेरे मुंह भी कपड़े से बांध दिया था. मुझे समझ ही नहीं आया कि हमारी गलती क्या था, पैसे खत्म होना या इस अस्पताल में आना.’

बीए तक पढ़ाई कर चुकी शीला का परिवार बेहद गरीबी में जीवनयापन कर रहा है. उनके परिवार में पिता लक्ष्मी नारायण, मां और एक बड़ा भाई है.

वह कहती हैं, ‘हम बेहद गरीब हैं. मकान के नाम पर टूटी हुई दीवारें और छत के नाम पर छप्पर है. बरसात में जरूरी सामान लेकर कोने में खड़े होना पड़ता है ताकि भीग न जाए. भाई, मां और मैं मजदूरी करते हैं. पिताजी कुछ करने की स्थिति में नहीं है.’

वे आगे बताती हैं, ‘मैं 20 साल की हो गई, लेकिन आज तक घर में बत्ती जलते नहीं देखी. न बिजली, न पानी कुछ भी तो नहीं है. राशन के नाम पर महीने में 20 किलो गेहूं मिलता है, वो भी सड़ा-गला खराब गेंहू.’

अस्पताल में हुई घटना के सामने आने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देश पर जांच समिति बनाई गई थी, जिसने अस्पताल प्रबंधन पर लगे आरोपों को सही पाया है. मुख्यमंत्री चौहान ने सोमवार को ट्वीट कर बताया कि शाजापुर सिटी अस्पताल मामले पर कड़ी कार्रवाई करते हुए सीएमएचओ और प्रशासन ने सिटी अस्पताल का पंजीकरण रद्द कर उसे सील कर दिया है.

अस्पताल के प्रबंधक के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर पूरे मामले की पुलिस जांच कर रही है. शीला के रिश्तेदार हेमराज दांगी बताते हैं, ‘प्रशासन ने शाजापुर सिटी अस्पताल को सील कर दिया है. मामला भी दर्ज हो चुका है.’

वह कहते हैं, ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक टीम शीला के घर आई थी और उनकी रिपोर्ट बनाकर ले कर गई है.’

हेमराज कहते हैं, ‘बीते दो दिनों में सिटी अस्पताल से दस कॉल आ चुके हैं. वे लगातार हमसे माफी मांग रहे हैं.’ इसके साथ ही जिला प्रशासन की ओर से शीला को कुछ आर्थिक मदद भी दी गई है.

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