लॉकडाउन: पिछले कई दशकों में पारले-जी बिस्किट की बिक्री में रिकॉर्ड बढ़ोतरी

पारले प्रोडक्ट्स के वरिष्ठ अधिकारी मयंक शाह ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान पारले-जी बिस्किट की बिक्री में ज़बरदस्त वृद्धि हुई है. नतीजतन बाज़ार में इसकी हिस्सेदारी में 4.5 से पांच फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है.

(फोटो साभार: फेसबुक)

पारले प्रोडक्ट्स के वरिष्ठ अधिकारी मयंक शाह ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान पारले-जी बिस्किट की बिक्री में ज़बरदस्त वृद्धि हुई है. नतीजतन बाज़ार में इसकी हिस्सेदारी में 4.5 से पांच फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है.

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नई दिल्ली: कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन के दौरान अप्रैल और मई में पारले-जी बिस्किट की रिकॉर्ड बिक्री हुई है. ऐसा पिछले तीन-चार दशकों के बाद हुआ है.

पारले प्रोडक्ट्स के एक वरिष्ठ अधिकारी मयंक शाह ने बताया कि इस महामारी के दौरान खाद्य राहत पैकेट बांटने वाले एनजीओ और सरकारी एजेंसियों ने भी पारले-जी बिस्किट को तरजीह दी, क्योंकि यह किफायती है और दो रुपये में भी मिलता है. साथ में यह ग्लूकोज का अच्छा स्रोत है.

उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दौरान पारले-जी बिस्किट की बिक्री में जबरदस्त वृद्धि हुई है. नतीजतन लॉकडाउन के दौरान बाजार में पारले-जी की हिस्सेदारी में 4.5 से पांच फीसदी की वृद्धि हुई.

शाह ने कहा, ‘बीते 30-40 साल में हमने ऐसी वृद्धि नहीं देखी थी.’

उन्होंने बताया कि इससे पहले आई सुनामी और भूकंप जैसे संकटों के दौरान भी पारले-जी की बिक्री बढ़ी थी.

द इकोनॉमिक्स टाइम्स के मुताबिक पारले प्रोडक्ट्स ने पारले जी बिस्किट की बिक्री के आंकड़े देने से मना कर दिया है, लेकिन उन्होंने यह बताया कि इस साल मार्च, अप्रैल और मई में पारले जी की बिक्री पिछले 8 दशक में सबसे बढ़िया रही है.

क्रिसिल रेटिंग के सीनियर डायरेक्टर अनुज सेठी ने कहा, ‘संकट के इस दौर में ग्राहक को जो चीज मिल रही थी, वह उसे ही खरीद रहा था. चाहे वह प्रीमियम हो या इकोनॉमी हो. कुछ लोगों ने इस दौर में अपना प्रोडक्ट बेचने पर ध्यान केंद्रित किया, जिसकी वजह से इस तरह की चीजें सामने आई है.’

उन्होंने कहा, ‘कोरोना संकट के इस दौर में कंपनियों ने डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम को बेहतर बनाने पर ध्यान दिया. उन्होंने हर उस इलाके में अपने प्रोडक्ट की पहुंच बनाने की कोशिश की जहां लोगों को उसकी जरूरत हो सकती है. इसमें खासतौर पर ग्रामीण इलाकों पर ध्यान दिया गया. पिछले 2 साल से ग्रामीण इलाकों पर एफएमसीजी कंपनियों का फोकस बढ़ा है.’

पिछले तीन महीने में हर कैटेगरी के बिस्किट की सेल बढ़ी है. इसमें ब्रिटानिया का टाइगर, मिल्क बिकीज, बोरबोर्न और मारी बिस्किट भी शामिल हैं.

बता दें कि साल 2019 में भारत में बिस्किट बनाने वाली बड़ी कंपनियों में से एक पारले प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड आर्थिक मंदी और ग्रामीण क्षेत्रों में मांग में कमी आने के बाद उत्पादन में कटौती के कारण 10 हजार कर्मचारियों की छंटनी करने की बात कही थी.

शाह ने कहा था, ‘2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से पारले के पारले जी बिस्किट जैसे ब्रांड की बिक्री में कमी आ रही है. कर बढ़ने की वजह से कंपनी के सबसे ज्यादा बिकने वाले 5 रुपये के बिस्किट पर असर पड़ा है. कंपनी को प्रति पैकेट बिस्किट कम करने पड़ रहे हैं. इससे बिस्किट की मांग कम होती जा रही है.’

अत्यधिक करों के कारण पारले को हर पैकेट में बिस्किटों की संख्या कम करनी पड़ रही है, जिसकी वजह से ग्रामीण भारत के निम्न आय वाले ग्राहकों की मांग पर असर पड़ रहा है.

1929 में स्थापित पारले में लगभग एक लाख लोग काम करते हैं. इसमें कंपनी के 10 प्लांट और 125 थर्ड पार्टी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में प्रत्यक्ष और कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले कर्मचारी शामिल हैं.

पारले का सालाना राजस्व 4 बिलियन डॉलर से अधिक का है. इसका मुख्यालय मुंबई में है. पारले ग्लुको का नाम पारले-जी रखने के बाद 1980 और 90 के दशक में यह देशभर में एक चर्चित बिस्किट बन गया था. साल 2003 में पारले-जी को दुनिया के सबसे अधिक बिस्किट बेचने वाले ब्रांड के रूप में पहचान मिली थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)