दिल्ली में कोविड मरीज़ों के लिए पर्याप्त व्यवस्थाएं न होने की कांग्रेस नेता अजय माकन की शिकायत पर संज्ञान लेते हुए एनएचआरसी ने कहा है कि वह समझते हैं कि यह मरीज़ों-डॉक्टरों, सरकारी एजेंसियों आदि सभी के लिए अप्रत्याशित स्थिति है, लेकिन हरसंभव प्रयास किए बिना नागरिकों को मरने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बुधवार को कांग्रेस नेता अजय माकन की शिकायत का संज्ञान लेते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया. माकन ने आरोप लगाए थे कि राष्ट्रीय राजधानी में कोविड-19 रोगियों के लिए बेडों की कमी है और पर्याप्त संख्या में जांच नहीं की जा रही है.
आयोग ने एक बयान में कहा कि वह ‘समझता है कि यह सरकारी एजेंसियों, अस्पतालों, डॉक्टरों के साथ-साथ रोगियों और उनके परिवारों के लिए एक अप्रत्याशित स्थिति है, लेकिन राज्य हरसंभव प्रयास किए बिना अपने नागरिकों को मरने के लिए नहीं छोड़ सकता है.’
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, आयोग ने कहा कि शिकायतकर्ता दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने न सिर्फ आरोप ही नहीं लगाए हैं, बल्कि अपनी शिकायत के समर्थन में आंकड़े भी मुहैया कराए हैं. इसके बाद दिल्ली सरकार और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को नोटिस जारी किए गए हैं.
आयोग का यह नोटिस उस समय आया, जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ओर से कहा जा रहा है कि जुलाई के अंत तक 80 हजार से अधिक बेड की जरूरत पड़ेगी, लेकिन अब जिस तरह मरीजों को बेड न मिलने की घटनाएं सामने आ रही हैं, यह बढ़कर डेढ़ लाख से ऊपर हो सकती है.
मुख्यमंत्री के ऐसा कहने का आधार यह था कि कोविड पूर्व समय में दिल्ली के अस्पतालों में पचास फीसदी मरीज अन्य राज्यों के होते हैं. कोविड के समय बताया गया है कि केंद्र, राज्य संचालित और निजी अस्पतालों को मिलाकर कुल 8,975 बेड हैं, जिनमें से अभी 4,840 मरीजों को दिए हुए हैं, बाकी 11,259 मरीजों को घरों पर ही आइसोलेशन में रखा गया है.
इससे पहले उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा था कि जुलाई के अंत तक राष्ट्रीय राजधानी में कोरोना संक्रमण के 5.5 लाख मामले हो सकते हैं और इसके लिए 80,000 बेड्स की जरूरत पड़ेगी.
इस बीच दिल्ली में लगातार बढ़ते कोरोना मरीज़ों के बीच अस्पतालों में बेड्स की अनुपलब्धता का मुद्दा लगातार सामने आ रहा है. दिल्ली सरकार द्वारा उपलब्ध बेड्स और वेंटिलेटर की जानकारी के लिए ऐप लॉन्च किए जाने और समुचित बेड्स होने के दावे के बीच लगातार कोविड मरीज़ और उनके परिजन अस्पताल दर अस्पताल भटकने को मजबूर हैं.
4 जून को एक महिला ने आरोप लगाया था कि उनके संक्रमित पिता को समय रहते दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया, जिसके कारण उनकी मौत हो गई.
अब मानवाधिकार आयोग ने कहा गया है कि अगर बेड न मिलने के बारे में माकन द्वारा लगाए गए आरोप सही हैं, तो यह आम जनता की दुर्दशा के प्रति सरकारी एजेंसियों के ‘अनुचित दृष्टिकोण’ का गंभीर मुद्दा है, जो मानवाधिकार के गंभीर हनन के समान है. आंकड़े संकेत देते हैं कि सरकारी एजेंसियों को तत्काल प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है.
आयोग के बयान में कहा गया है कि आरोप है कि महामारी के दौरान जान गंवाने वाले लोगों के अंतिम संस्कार में काफी देरी की गई है. नोटिस जारी करते हुए आयोग ने कहा कि दिल्ली सरकार और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय दोनों एक-दूसरे के परामर्श से दस दिनों में व्यापक रिपोर्ट देने के लिए मामले पर विचार करें.
आयोग ने कहा कि इस दौरान दिल्ली सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह कोविड-19 के मरीजों के लिए बेडों की संख्या बढ़ाए और एक दिन में की जाने वाली जांचों की संख्या में भी इजाफा करे.
इस बीच दिल्ली हाईकोर्ट ने भी राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वे अस्पतालों में अन्य सुविधाओं के साथ उपलब्ध बेड्स और वेंटिलेटर्स का ‘रियल टाइम डेटा’ (वर्तमान स्थिति) भी सुनिश्चित करें. अदालत ने केंद्र और राज्य सरकार से यह भी कहा था कि वे जितनी हो सके उतनी टेस्टिंग करे और किसी डॉक्टर द्वारा भेजे गए मरीजों को प्राथमिकता दी जाए.
दिल्ली में बुधवार को कोरोना संक्रमण के 1,501 मामले सामने आये हैं और राज्य में ऐसे मामलों की संख्या 32 हजार पहुंच गई है. कोरोना से राज्य में अब तक 984 जानें गई हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)