कोरोना वायरस के संक्रमण के प्रसार को देखते हुए मुंबई के डब्बावालों ने 19 मार्च को अपनी सेवाएं बंद कर दी थीं. सरकार अब मुंबई में कार्यालयों और कारोबार को खोलने की अनुमति दे रही है, लेकिन डब्बावाले अपनी सेवा के साथ कब लौटेंगे, इसको लेकर अनिश्चितता है.
मुंबई: देश में कोरोना वायरस महामारी के रोकथाम के लिए जब लॉकडाउन की घोषणा हुई तो मुंबई के प्रसिद्ध डब्बावाले अपने गांव की ओर लौट गए और वहीं जीवन चलाने के लिए रास्ते तलाश करने लगे.
उनमें से कुछ ने खेती का रास्ता अपनाया और कुछ लोगों ने अन्य काम पकड़ लिए हैं.
मुंबई डब्बावाला एसोसिएशन के प्रवक्ता सुभाष तालेकर ने बीते बुधवार को कहा कि अन्य असंगठित क्षेत्रों की तरह ही डब्बावालों को भी सरकार से मदद की जरूरत है.
कोरोना वायरस के संक्रमण के प्रसार को देखते हुए डब्बावालों ने 19 मार्च को अपनी सेवाएं बंद कर दी थीं. सरकार अब मुंबई में कार्यालयों और कारोबार को खोलने की अनुमति दे रही है, लेकिन डब्बावाले अपनी सेवा के साथ कब लौटेंगे, इसको लेकर अनिश्चितता है.
तालेकर ने कहा, ‘हमारी सेवाएं पूरी तरह से उपनगरीय ट्रेनों पर निर्भर हैं. हम लोकल ट्रेनों का परिचालन शुरू होने तक सेवा शुरू नहीं कर सकते हैं. कौन जानता है कि ट्रेन सेवा कब शुरू होगी, जुलाई या अगस्त में?’
तालेकर ने कहा कि ग्राहकों की प्रतिक्रिया कैसी होगी, यह भी अनिश्चित है.
उन्होंने कहा, ‘शहर के ज्यादातर इमारतों, हाउसिंग सोसाइटीज ने रिश्तेदारों तक के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया हुआ है. क्या वे हमें खाना पहुंचाने और डब्बे ले जाने की मंजूरी देंगे, भले ही हम कितना भी मास्क और सेनिटाइजर के इस्तेमाल का ख्याल रखें.’
मुंबई में किसी भी आम दिन में 5,000 डब्बावाले कार्यालय जाने वालों को खाना पहुंचाते रहे हैं. ये सभी समय के पाबंद और तेजी के लिए जाने जाते हैं. 1998 में फॉर्ब्स पत्रिका ने इन्हें ‘सिक्स सिग्मा’ रेटिंग से नवाजा था.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, अधिकांश डब्बावाले पुणे जिले के मावल से आते हैं. लॉकडाउन के बाद इनमें से अधिकांश जुन्नार, अंबेगांव, राजगुरुनगर, मावल, हवेल, मुल्शी और जिले के दूसरे हिस्सों के गांवों में लौट चुके हैं.
अचानक हुए लॉकडाउन के कारण ये डब्बावाले मार्च का अपना मेहनताना भी लोगों से नहीं ले पाए थे और उनके से अधिकांश की बचत भी बहुत जल्द खत्म हो गई थी.
राजगुरुनगर तहसील के कादुस गांव से बात करते हुए रघुनाथ मेदगे कहते हैं, ‘मुंबई में रह पाना मुश्किल था, इसलिए मैं अपने गांव लौट आया.’
मेदगे ने बताया कि वह तभी लौटेंगे जब लोकल ट्रेनें शुरू होंगी. वर्तमान में वह धान की खेती के लिए खेत तैयार करने में व्यस्त हैं, क्योंकि बारिश का मौसम आ चुका है.
तालेकर ने बताया कि बीते तीन जून को निसर्ग तूफान रायगढ़ समुद्र तट से टकराया था और पुणे जिले से होकर गुजरा था. इससे डब्बावालों पर दोहरी मार पड़ी, क्योंकि उनके घर, मवेशियों के शेड और खेत बर्बाद हो गए.
उन्होंने बताया, ‘इनमें से अधिकांश डब्बावालों से अब तक संपर्क नहीं हो पाया है, क्योंकि उनके गांवों में अब तक बिजली नहीं आ सकी है.’
तालेकर ने कहा कि दूसरे असंगठित क्षेत्रों के मजदूरों की तरह डब्बावालों कोभी सरकार से मदद की उम्मीद है.
उन्होंने कहा, ‘मुंबई के डब्बावाले चुनावों के दौरान हमेशा शिवसेना के साथ खड़ी रही. इस मुश्किल समय में हम मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से हमारी मदद करने की उम्मीद कर रहे हैं.’
उनके अनुसार, सामान्य तौर पर डब्बावाले 20 हजार रुपये प्रति महीने कमाते हैं. अगर वे दोबारा काम शुरू करते हैं तो उन्हें पता नहीं कि वे फिर से इतनी कमाई कर पाएंगे या नहीं, क्योंकि इस महामारी के कारण लोग उनकी सेवाएं लेने के प्रति और अधिक सावधानी बरत सकते हैं.
मालूम हो कि महाराष्ट्र कोरोना वायरस से सर्वाधिक प्रभावित राज्यों में से एक है और यहां अधिकांश मामले प्रदेश की राजधानी मुंबई में सामने आए हैं.
बीएमसी ने कहा है कि बुधवार को मुंबई में 1,567 नए मामले सामने आए और 97 और लोगों की मौत हो गई, जिसके बाद यहां संक्रमण के कुल मामलों की संख्या बढ़कर 52,445 हो गए और मरने वालों की संख्या 1,855 हो गई है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक महाराष्ट्र में बुधवार तक कुल 94,041 मामले सामने आ चुके हैं और मरने वालों की संख्या बढ़कर 3,438 हो गई है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)