मोदी सरकार ने अमेरिकी धार्मिक स्वतंत्रता आयोग को वीज़ा देने से इनकार किया

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के पत्र के जवाब में कहा कि धार्मिक आज़ादी से जुड़े मुद्दों के सिलसिले में अमेरिकी आयोग का दल भारत आना चाहता था, लेकिन उन्हें वीज़ा देने से भी मना किया गया क्योंकि उन जैसी विदेशी संस्था का भारतीय नागरिकों के संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकारों पर बोलने का कोई अधिकार-क्षेत्र हमें नज़र नहीं आता.

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New Delhi: External Affairs Minister S Jaishankar addresses during The Growth Net Summit 7.0, in New Delhi, Thursday, June 06, 2019. (PTI Photo/Kamal Kishore)(PTI6_6_2019_000031B) *** Local Caption ***
विदेश मंत्री एस. जयशंकर. (फोटो: पीटीआई)

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के पत्र के जवाब में कहा कि धार्मिक आज़ादी से जुड़े मुद्दों के सिलसिले में अमेरिकी आयोग का दल भारत आना चाहता था, लेकिन उन्हें वीज़ा देने से भी मना किया गया क्योंकि उन जैसी विदेशी संस्था का भारतीय नागरिकों के संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकारों पर बोलने का कोई अधिकार-क्षेत्र हमें नज़र नहीं आता.

New Delhi: External Affairs Minister S Jaishankar addresses during The Growth Net Summit 7.0, in New Delhi, Thursday, June 06, 2019. (PTI Photo/Kamal Kishore)(PTI6_6_2019_000031B) *** Local Caption ***
विदेश मंत्री एस. जयशंकर. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि सरकार ने धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़े मुद्दों के सिलसिले में भारत यात्रा करना चाह रहे अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ) के दलों को वीजा नहीं दिया गया क्योंकि उसके जैसी विदेशी संस्था को भारतीय नागरिकों के संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकारों पर बोलने का कोई हक नहीं है.

जयशंकर ने भाजपा सांसद निशिकांत दुबे को बीते 1 जून को लिखे एक पत्र में यह बात कही.

अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने नागरिकता संशोधन विधेयक पारित होने पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों की मांग की थी. इस विषय को दुबे ने उठाया था.

विदेश मंत्री ने कहा कि यूएससीआईआरएफ भारत में धार्मिक आजादी की स्थिति के संबंध में पूर्वाग्रह युक्त, गलत और भ्रामक टिप्पणियां करने के लिए जाना जाता है.

उन्होंने कहा, ‘हम इस तरह की बातों का संज्ञान नहीं लेते और भारत के संबंध में गलत तरह से सूचनाएं पेश करने की कोशिशों का खंडन कर चुके हैं.’ जयशंकर ने कहा कि विदेश मंत्रालय ने आयोग के बयानों को गलत और अनुचित बताकर खारिज कर दिया है.

उन्होंने लिखा, ‘हमने यूएससीआईआरएफ की टीमों को वीजा देने से भी मना कर दिया है जो धार्मिक आजादी से जुड़े मुद्दों के सिलसिले में भारत आना चाहती थीं. हमें यूएससीआईआरएफ जैसी विदेशी संस्था का भारतीय नागरिकों के संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकारों पर बोलने का कोई अधिकार-क्षेत्र नहीं नजर आता.’

जयशंकर ने भाजपा सांसद को यह आश्वासन भी दिया कि भारत अपनी संप्रभुता और अपने नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर किसी तरह का बाहरी हस्तक्षेप या बयानबाजी स्वीकार नहीं करेगा.

यूएससीआईआरएफ ने पिछले साल कहा था कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 गलत दिशा में एक खतरनाक मोड़ साबित होगा. उसने भारतीय संसद के दोनों सदनों में विधेयक पारित होने पर गृह मंत्री अमित शाह के खिलाफ अमेरिकी पाबंदियों की मांग की थी.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, यूएससीआईआरएफ के प्रवक्ता डेनिएल सरोयन अशबाहियान ने कहा कि उनकी टीम सरकार के साथ रचनात्मक बातचीत के लिए भारत की यात्रा करना चाहती थी.

बता दें कि साल 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही भारत सरकार मुस्लिमों पर हो रहे हमले के लिए आलोचना झेल रही है.

वहीं, दुनियाभर में धार्मिक स्वतंत्रता की निगरानी करने का जिम्मा संभाल रहे यूएससीआईआरएफ ने इस साल अप्रैल में अपनी रिपोर्ट में विदेश विभाग से भारत समेत 14 देशों को ‘खास चिंता वाले देशों’ (कंट्रीज़ ऑफ पर्टिकुलर कंसर्न- सीपीसी) के रूप में नामित करने को कहा था और आरोप लगाया कि इन देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं.

हालांकि, भारत ने आयोग की आलोचनाओं को खारिज करते हुए कहा था कि अल्पसंख्यकों की दशा पर उसकी टिप्पणियां पूर्वाग्रह से ग्रसित और पक्षपातपूर्ण हैं.

वहीं, अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने बीते बुधवार को इस रिपोर्ट को आधिकारिक तौर पर जारी किया था.

इसके बाद भारत ने रिपोर्ट को एक बार फिर खारिज करते हुए कहा कि भारत की विविधतापूर्ण लोकतांत्रिक परंपरा दुनिया भर में सर्वविदित है. भारत के लोग और सरकार को हमारे देश की लोकतांत्रिक परंपराओं पर गर्व है.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, ‘हमारा सैद्धांतिक रुख यह है कि किसी विदेशी संस्था का भारतीय नागरिकों के संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकारों पर बोलने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)