दिल्ली में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां एम्बुलेंस में रोगी को गंभीर हालत में लेकर परिजन कई घंटों और किलोमीटर तक विभिन्न अस्पतालों में भटकते रहे. ऐसे में एम्बुलेंस में उपलब्ध महज़ एक ऑक्सीजन सिलेंडर मरीज़ की मदद के लिए नाकाफ़ी साबित हो रहा है.
नई दिल्ली: जीटीबी अस्पताल के पास एम्बुलेंस रुकती है और सरवर अली उसमें से निकलकर अस्पताल के अंदर की तरफ भागते हैं. उन्हें उम्मीद है कि उनकी अचेत पत्नी मिस्कीन बेगम को वहां भर्ती कर लिया जाएगा. वाहन के अंदर लगे सिलेंडर में ऑक्सीजन का स्तर काफी नीचे चला गया है और एक मिनट की देरी भी मरीज के लिए खतरा साबित हो सकता है.
मिस्कीन बेगम को पहले दो अस्पतालों ने भर्ती करने से इनकार कर दिया और अब जिंदा रहने की उनकी सारी उम्मीदें जीटीबी अस्पताल पर टिकी हुई हैं. अगर इस अस्पताल ने भर्ती करने से इनकार कर दिया तो एम्बुलेंस के अंदर पर्याप्त ऑक्सीजन की व्यवस्था करनी होगी ताकि वह दूसरे अस्पताल में जाकर कोशिश करें.
तीन अस्पताल, कई किलोमीटर का चक्कर, कई घंटे और सिर्फ एक सिलेंडर… निराश अली को अपनी पत्नी की जिंदगी बचाने के लिए काफी कठिनाइयों से गुजरना पड़ा. किडनी और मधुमेह की बीमारी से पीड़ित मिस्कीन बेगम सुबह अचेत हो गईं और उनके 57 वर्षीय पति अस्पतालों का चक्कर लगाते रहे.
उत्तर-पूर्वी दिल्ली के खजूरी खास स्थित अपने घर से वे पहले जग प्रवेश अस्पताल गए जहां उन्हें भर्ती करने से इनकार कर दिया गया. इसके बाद वे मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान (इहबास) संस्थान गए और वहां भी उन्हें जगह नहीं मिली.
अंतत: वे सरकारी जीटीबी अस्पताल पहुंचे. पेशे से बुनकर अली ने कहा, ‘उन्हें ऑक्सीजन मास्क के बगैर नहीं ले जाया जा सकता.’ मिस्कीन बेगम को अंतत: अस्पताल ने भर्ती कर लिया और अली ने राहत की सांस ली.
दिल्ली में इस तरह के रोगियों की कई कहानियां हैं जिन्हें कई अस्पतालों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं और एम्बुलेंस में ऑक्सीजन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होना भी बड़ी चुनौती है. ऐसे मामले काफी संख्या में सामने आ रहे हैं.
दिल्ली सरकार के केंद्रीकृत एम्बुलेंस आघात सेवाएं (कैट्स) के पास नौ उन्नत जीवनरक्षक एम्बुलेंस (एएलएस), 142 बेसिक सपोर्ट एम्बुलेंस (बीएलएस) और 109 रोगी परिवहन एम्बुलेंस (पीटीए) हैं.
इसके अलावा 154 एम्बुलेंस को कोविड-19 एम्बुलेंस में तब्दील किया जा रहा है ताकि संसाधनों को कोरोना वायरस से पीड़ित लोगों और अन्य बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए अलग किया जा सके.
एएलएस और बीएलएस एम्बुलेंस में जहां दो ऑक्सीजन सिलेंडर होते हैं, वहीं पीटीए में केवल एक सिलेंडर होता है, क्योंकि ये वाहन छोटे होते हैं और उनमें पर्याप्त जगह नहीं होती.
कैट्स के कार्यक्रम अधिकारी संजय त्यागी ने कहा, ‘कोरोना वायरस के कारण रोगियों को अलग-अलग अस्पतालों में ले जाना पड़ता है. रोगियों को भर्ती कराने में काफी समय लगता है, कभी-कभी चार घंटे लग जाते हैं. इसलिए काफी समय रोगियों को लाने- ले जाने में ही बीत जाता है.’
निजी अस्पतालों और कई अन्य संस्थानों के अपने एम्बुलेंस हैं. त्यागी ने ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी होने से इनकार किया. ऐसी स्थिति में केवल कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के लिए ही नहीं बल्कि अन्य बीमारियों से पीड़ित लोगों को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.