हसदेव अरण्य क्षेत्र के सरपंचों ने पत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनाने के भाषण को याद दिलाते हुए कहा कि यहां का समुदाय पूर्णतया जंगल पर आश्रित है, जिसके विनाश से यहां के लोगों का पूरा अस्तित्व ख़तरे में पड़ जाएगा.
नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य क्षेत्र के कई सरपंचों (ग्राम प्रधानों) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पत्र लिखकर प्रस्तावित खनन नीलामी का विरोध किया है. प्रधानों ने पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील इस क्षेत्र में खनन पर पाबंदी लगाने की भी मांग की है.
हसदेव अरण्य क्षेत्र में उत्तरी छत्तीसगढ़ के तीन जिले क्रमश: सरगुजा, सूरजपुर और कोरबा आते हैं. कोयला मंत्रालय के हालिया पहल की तहत गुरुवार (18 जून) से इस क्षेत्र में खनन के लिए कोयला नीलामी प्रक्रिया शुरू होने वाली है.
इसे लेकर चिंता जाहिर करते हुए नौ ग्राम प्रधानों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि एक तरफ वे आत्मनिर्भरता की बात करते हैं, वहीं दूसरी तरफ खनन की इजाजत देकर आदिवासियों और वन में रहने वाले समुदायों की आजीविका, जीवनशैली और संस्कृति पर हमला किया जा रहा है.
We are launching first-ever commercial coal auctions in country on 18th June. Event will be graced by PM @NarendraModi ji. It is his vision & guidance to make #AatmanirbharBharat in coal. I am proud that we are well on our way to achieve it.#Vocal4LocalCoal#CoalOpen4Investment pic.twitter.com/sxCVmngA5m
— Pralhad Joshi (@JoshiPralhad) June 11, 2020
घाटबर्रा (सरगुजा) के सरपंच जयनंदन सिंह पोर्ते ने द वायर से बात करते हुए कहा कि, ‘हम किसी प्रकार का खनन नहीं चाहते हैं क्योंकि ये हमारे जीविका के साधनों और संस्कृति को बर्बाद कर देगा.’
उनका आगे कहना था कि ‘प्राकृतिक संसाधनों की वजह से हम पहले से आत्मनिर्भर हैं और खनन सब को बर्बाद कर देगा जैसा कि हमने पास के रायगढ़ जिले में देखा है.’
वहीं मदनपुर (कोरबा) के सरपंच देवसाय भी कहते हैं कि ग्रामीण लोग जल, जंगल और ज़मीन पर पूरी तरह निर्भर हैं, जिसको कि खनन खत्म कर देगा.
उन्होंने द वायर को बताया, ‘ये प्राकृतिक संसाधन ही हैं जो हमें आत्मनिर्भर बनाते हैं. रुपये-पैसे या किसी और तरह का मुआवजा इसकी जगह नहीं ले सकता.’
उनका ये भी कहना था कि खनन की वजह से नदी-नाले सूख जाएंगे जो कि क्षेत्र में सिंचाई के मुख्य साधन हैं.
सरपंचों ने प्रधानमंत्री का ध्यान इस ओर भी खींचा है कि ये पहला मौका नहीं है जब वे इस तरह की गतिविधि का विरोध कर रहे हैं, बल्कि जब-जब खनन की स्थिति उत्पन्न हुई है गांव के प्रतिनिधियों ने इसका विरोध किया है.
मोदी को लिखे पत्र में उन्होंने कहा, ‘हमें ज्ञात हुआ है कि उपरोक्त परिस्थितियां और कोरोना वायरस आपदा के बावजूद 18 जून को हमारे क्षेत्र की छह खदानों की नीलामी की जा रही है जो कि अत्यंत आश्चर्यजनक तथा दुखद है. अत: हम आपसे पुन: निवेदन करते हैं कि इस नीलामी प्रक्रिया को पूर्णतया रोका जाए और हसदेव अरण्य क्षेत्र में किसी भी खदान को आवंटित न किया जाए.’
Hasdeo Arand-Letter to PM F… by The Wire on Scribd
सरपंचों ने कहा कि हसदेव अरण्य जैव विविधता से परिपूर्ण हाथी समेत कई महत्वपूर्ण वन्यजीवों का आवास है, जो छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे मध्य भारत में पर्यावरण की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है. इन्हीं कारणों से अक्सर इस क्षेत्र को ‘छत्तीसगढ़ के फेफड़ों’ के रूप में भी जाना जाता है.
उन्होंने आगे कहा, ‘इन तथ्यों को सरकारी दस्तावेजों में भी माना गया है. पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 2010 में इस पूरे क्षेत्र को ‘नो-गो’ घोषित कर खनन से बचाने की बात कही गई थी, जो कि पूरे देश के कोयला क्षेत्रों का 10 प्रतिशत से भी कम है. हम इस क्षेत्र का पीढ़ियों से संरक्षण एवं संवर्धन करते आए हैं. यदि इस क्षेत्र में खनन हुआ तो न केवल पूरे क्षेत्र का विनाश होगा बल्कि जलवायु परिवर्तन से भारत की लड़ाई में ऐसी ठोकर लगेगी जिसकी भरपाई असंभव है.’
स्थानीय निवासियों ने प्रधानमंत्री को उनके ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनाने के भाषण को याद दिलाते हुए कहा कि यहां का समुदाय पूर्णतया जंगल पर आश्रित है, जिसके विनाश से यहां के लोगों का पूरा अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा.
उन्होंने कहा, ‘हमारा क्षेत्र आदिवासी बहुल है जहां पेसा कानून, वनाधिकार कानून तथा पांचवीं अनुसूची के तहत पहले से ही आत्मनिर्भरता तथा स्थानीय समुदाय के स्व-शासन के प्रावधान निर्धारित हैं.’
उन्होंने कहा कि सरकार इस कोरोना महामारी का फायदा उठाकर यहां की आजीविका पर हमला कर रही है और पर्यावरण को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचाने वाली है.
प्रधानों में पत्र में लिखा, ‘वर्तमान में हम कोरोना वायरस संकट से जूझ रहे हैं और सरकार का यथासंभव सहयोग कर रहे हैं. ऐसे में यह नीलामी प्रक्रिया हमारे प्रयासों पर एक ठेस है और जन समुदायों के मायूसी का बड़ा कारण भी बना है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘संविधान में प्रदत्त शक्तियों के अनुसार हमारी ग्राम सभाओं ने सर्व-सम्मति से निर्णय लिया है कि न तो वर्तमान में और न ही भविष्य में खनन की स्वीकृति देंगे. ऐसे में खदानों की नीलामी बेवजह भविष्य में खनन कंपनियों के विरोध तथा उनके द्वारा शोषण का कारण बनेगा.’
ये पहला मौका नहीं है जब सरपंचों ने इस क्षेत्र में खनन का विरोध किया है. इससे पहले 2015 में जब कोयला ब्लॉकों की पहली बार नीलामी की जा रही थी, तब इस क्षेत्र की 20 ग्राम सभाओं ने सर्वसम्मति से खदान आवंटन के विरोध में प्रस्ताव पारित किया था.
इसके बाद पिछले पांच वर्षों में कई बार इस तरह का प्रस्ताव पारित किया गया है और इसकी जानकारी संबंधित मंत्रालयों को भी दी गई है.
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