बैलेट की गोपनीयता का सिद्धांत संवैधानिक लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण तत्व है: सुप्रीम कोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले के ख़िलाफ़ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि बैलेट की गोपनीयता का उद्देश्य स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराना है.

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: द वायर)

इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले के ख़िलाफ़ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि बैलेट की गोपनीयता का उद्देश्य स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराना है.

(फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक संवैधानिक लोकतंत्र में बैलेट की गोपनीयता का सिद्धांत एक महत्वपूर्ण निर्विवाद तत्व है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई के दौरान जस्टिस एनवी रमण, संजीव खन्ना और कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा, ‘चुनाव कानून के मूलभूत सिद्धांतों में से एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव है. बैलेट की गोपनीयता का सिद्धांत संवैधानिक लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण तत्व है, जिसका उद्देश्य इस लक्ष्य को हासिल करना है.’

लाइव लॉ के मुताबिक हाईकोर्ट ने पंचायत अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए 25 अक्टूबर 2018 को हुई इलाहाबाद जिला पंचायत की बैठक के मिनट्स को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि कुछ सदस्यों ने बैलेट की गोपनीयता के सिद्धांत का उल्लंघन किया था.

कोर्ट ने माना था कि अविश्वास प्रस्ताव के समय वोट का खुलासा करना कानूनी नियमों का उल्लंघन है और यह चुनावों की पवित्रता को प्रभावित करता है.

इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई और याचिकाकर्ता ने कहा कि बैलेट की गोपनीयता का सिद्धांत परम सिद्धांत नहीं है और इस पर छूट लागू है. उन्होंने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 94 का उल्लेख करते हुए कहा कि वोटर स्वैच्छिक स्तर पर बैलेट की गोपनीयता को तोड़ने का फैसला ले सकता है.

याचिका में कहा गया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ये गलत ठहराया है कि अविश्वास प्रस्ताव पर जिला पंचायत के सदस्य वोटिंग के दौरान स्वैच्छिक रूप से बैलेट की गोपनीयता को खत्म कर उसे सार्वजनिक करने का फैसला नहीं ले सकते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में गोपनीयता की स्वैच्छिक छूट और स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनावों को लेकर हाईकोर्ट के तर्क में कुछ हद तक कमी है.

हालांकि कोर्ट ने दोनों पक्षों की सहमति पर आदेश दिया कि गोपनीय बैलेट के जरिये प्रस्ताव पर एक बार फिर से वोटिंग की जाए.

कोर्ट ने कहा कि इस फैसले के दो महीने के भीतर जिला जज द्वारा निर्धारित तारीख और समय पर इलाहाबाद के जिला जज या उनकी जगह पर अतिरिक्त जिला जज की मौजूदी में ये कार्यवाही पूरी की जाए.