लद्दाख में हिंसक झड़प के बाद सेना ने चीन सीमा पर हथियार नीति में बदलाव किया

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा शीर्ष सैन्य अधिकारियों के साथ पूर्वी लद्दाख में स्थिति की समीक्षा किए जाने के बाद सूत्रों ने कहा है कि सेना के ज़मीनी कमांडरों को असाधारण परिस्थितियों में हथियार के इस्तेमाल की अनुमति दे दी गई है.

(प्रती​कात्मक फोटो: रॉयटर्स)

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा शीर्ष सैन्य अधिकारियों के साथ पूर्वी लद्दाख में स्थिति की समीक्षा किए जाने के बाद सूत्रों ने कहा है कि सेना के ज़मीनी कमांडरों को असाधारण परिस्थितियों में हथियार के इस्तेमाल की अनुमति दे दी गई है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: भारत ने चीन से लगती 3500 किलोमीटर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर हथियार चलाने से संबंधित नियमों में बदलाव किया है. असाधारण परिस्थितियों में सेना को हथियार चलाने की अनुमति दे दी गई है.

इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सेना को जमीनी स्थिति से निपटने के लिए पूरी स्वतंत्रता दे दी गई है.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा शीर्ष सैन्य अधिकारियों के साथ पूर्वी लद्दाख में स्थिति की समीक्षा किए जाने के बाद सूत्रों ने यह जानकारी दी. उन्होंने कहा कि सेना के जमीनी कमांडरों को असाधारण परिस्थितियों में हथियार के इस्तेमाल की अनुमति दे दी गई है.

इससे पहले दोनों देशों की सेनाओं के बीच दशकों से यह समझ चली आ रही थी कि टकराव के दौरान वे हथियारों का इस्तेमाल नहीं करेंगी.

बीते 15 और 16 जून को पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प के दौरान 20 भारतीय सैनिकों के शहीद होने के बाद हथियार चलाने के नियमों में बदलाव किया गया है.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, टकराव के संदर्भ में साल 1996 और 2005 के समझौतों के तहत किसी भी पक्ष को हथियार का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी गई थी. इतना ही नहीं दोनों देशों में इस बात पर भी सहमति बनी थी कि एलएसी के दो किलोमीटर के दायरे के दोनों तरफ विस्फोटक या हथियार का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा.

दोनों देशों की सेना में हिंसक झड़प 15 जून की रात एलएसी और गलवान तथा श्योक नदियों के पश्चिम स्थित जोड़ (संगम) के बीच हुई. क्षेत्र से पीछे हटने को लेकर दोनों पक्षों के बीच ‘पेट्रोलिंग पॉइंट 14’ पर बातचीत हो रही थी, जो एलएसी, जहां गलवान नदी को पार करती हैं, उसके काफी नजदीक है.

गलवान नदी के दक्षिणी तरफ बफर जोन में चीनी सैनिकों द्वारा एक नई चौकी बनाने को लेकर बहस शुरू हुई. इसी दौरान 16 बिहार रेजिमेंट के कमांडिग अधिकारी और उनके सैनिक चीनी सेना से वह चौकी हटाने के लिए दबाव देने लगे, जिसके बाद स्थिति बिगड़ गई और हिंसा शुरू हो गई.

वर्ष 1967 में सिक्किम के नाथू ला में झड़प के बाद दोनों सेनाओं के बीच यह सबसे बड़ा टकराव था. उस वक्त टकराव में भारत के 80 सैनिक शहीद हुए थे और 300 से ज्यादा चीनी सैन्यकर्मी मारे गए थे. साल 1975 में रूटीन पेट्रोलिंग के दौरान अरुणाचल प्रदेश के तुलुनुग ला दर्रा में असम राइफल्स के चार जवान शहीद हो गए थे.

गलवान घाटी में हिंसा 45 वर्षों में सीमा पर संघर्ष की यह सबसे बड़ी घटना है और इससे दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सरकार ने सेना के तीनों अंगों को सीमा पर चीन के साथ तनाव के मद्देनजर हथियार एवं गोला-बारूद खरीदने के लिए प्रति खरीद 500 करोड़ रुपये तक की अतिरिक्त सहायता वित्तीय शक्तियां भी प्रदान कर दी हैं.

सूत्रों ने बताया कि बैठक में रक्षा मंत्री ने पूर्वी लद्दाख तथा अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में समूची सुरक्षा स्थिति की समग्र समीक्षा की है.

रक्षा मंत्री के साथ इस बैठक में प्रमुख रक्षा अध्यक्ष जनरल बिपिन रावत, थलसेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे, नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह और वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आर के एस भदौरिया ने हिस्सा लिया था.

पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून को चीन के साथ हिंसक झड़प में भारत के 20 सैनिकों के शहीद होने के बाद भारत ने चीन से लगती सीमा पर अग्रिम इलाकों में लड़ाकू विमानों और हजारों की संख्या में अतिरिक्त सैनिकों को पहले ही तैनात कर दिया है.

हालात के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन को कड़ा संदेश दिया है, ‘भारत शांति चाहता है लेकिन अगर उकसाया गया तो भारत मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है.’

सूत्रों ने कहा कि गलवान घाटी की घटना के बाद भारतीय सैनिक टकराव की हालत में हथियारों का इस्तेमाल नहीं करने की लंबी समय से चली आ रही परंपरा को मानने के लिए बाध्य नहीं होंगे.

भारतीय सेना द्वारा इस बारे में जल्द ही चीनी सेना को सूचना दिए जाने की संभावना है. उन्होंने बताया कि सशस्त्र बलों को चीनी सैनिकों के किसी भी दुस्साहस का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए पूरी तरह से तैयार रहने को कहा गया है और सीमा की रक्षा के लिए ‘सख्त’ कदम उठाए जा रहे हैं.

सेना के एक शीर्ष अधिकारी ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा है, ‘अब से हमारा तरीका अलग होगा. जमीनी कमांडरों को स्थिति के अनुरूप निर्णय लेने की पूरी स्वतंत्रता दे दी गई है.’

सूत्रों ने बताया कि 21 जून को हुई बैठक में सिंह ने शीर्ष सैन्य अधिकारियों को जमीनी सीमा, हवाई क्षेत्र और रणनीतिक समुद्री मार्गों में चीन की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखने के निर्देश दिए हैं.

भारतीय वायुसेना ने पिछले पांच दिन में लेह और श्रीनगर सहित वायुसेना के अहम अड्डों पर सुखोई 30 एमकेआई, जगुआर, मिराज 2000 विमान और अपाचे लड़ाकू हेलीकॉप्टर तैनात कर दिए हैं.

वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आर के एस भदौरिया ने बीते 20 जून को कहा था कि भारतीय वायुसेना चीन के साथ लगती सीमा पर किसी भी सुरक्षा चुनौती का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार है और उपयुक्त जगह पर तैनात है.

उन्होंने यहां तक संकेत दिए थे कि कड़ी तैयारियों के तहत उनके बल ने लद्दाख क्षेत्र में लड़ाकू हवाई गश्त की है. लड़ाकू हवाई गश्त के तहत विशिष्ट मिशनों के लिए सशस्त्र लड़ाकू विमानों को कम समय में रवाना किया जा सकता है.

भारत और चीन की सेनाओं के बीच पांच मई से पूर्वी लद्दाख के गलवान और कई अन्य इलाकों में गतिरोध जारी है. पांच मई को पैंगोग त्सो क्षेत्र में दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प हो गई थी.

पूर्वी लद्दाख में पांच और छह मई को करीब 250 चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच संघर्ष के बाद हालात बिगड़ गए थे. इसके बाद नौ मई को उत्तरी सिक्किम में भी ऐसी ही घटना हुई थी.

रक्षा मंत्री की यह समीक्षा बैठक द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी पर सोवियत संघ की विजय की 75वीं वर्षगांठ पर सैन्य परेड में हिस्सा लेने के लिए तीन दिवसीय रूस यात्रा पर रवाना होने से एक दिन पहले हुई है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)