भोपाल गैस पीड़ितों के लिए काम रहे चार एनजीओ ने शहर में कोविड-19 से हुई मौतों पर जारी रिपोर्ट में बताया है कि 11 जून तक भोपाल में कोरोना से 60 मौतें हुई थीं, जिनमें से 48 गैस पीड़ित थे.
भोपाल: भोपाल में वर्ष 1984 में हुई दुनिया की सबसे भयंकर औद्योगिक गैस त्रासदी के पीड़ितों के हितों के लिए काम कर रहे चार गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) ने सोमवार को दावा किया है कि भोपाल शहर में कोविड-19 से मरने वालों में से 75 प्रतिशत गैस पीड़ित हैं.
भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन, भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ, चिल्ड्रन अगेंस्ट डाव कार्बाइड और भोपाल गैस पीड़ित महिला-पुरुष संघर्ष मोर्चा ने मिलकर सोमवार को यह आंकड़े जारी किए और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर इस बारे में संज्ञान लेने का अनुरोध किया है.
भोपाल गैस पीड़ित महिला-पुरुष संघर्ष मोर्चा की सदस्य रचना ढींगरा ने बताया, ‘गैस पीड़ितों के बीच काम कर रहे चार संगठनों ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर यह बताया है कि भोपाल शहर में कोविड-19 से मरने वालो में से 75 फीसदी गैस पीड़ित हैं और इस बीमारी का कहर गैस पीड़ितों पर सबसे ज्यादा बरपा है.’
ढींगरा ने कहा कि कोविड-19 की वजह से हुई बहुसंख्यक गैस पीड़ितों की मौतों से यह सिद्ध होता है कि 35 साल बाद गैस पीड़ितों का स्वास्थ्य इसलिए नाजुक है, क्योंकि उनके स्वास्थ्य को यूनियन कार्बाइड की जहरीली गैस की वजह से स्थायी क्षति पहुंची है.
ज्ञात हो कि 35 साल पहले 2-3 दिसंबर 1983 की दरमियानी रात को भोपाल में विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदियों में से एक यूनियन कार्बाइड गैस त्रासदी घटी थी.
इस दुर्घटना के पीड़ित अब तक विभिन्न गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं, जिनमें दिल, फेफड़े, सांस संबंधी रोग और किडनी व कैंसर आदि मुख्य बीमारियां हैं.
तब लीक हुई मिथाइल आइसोसाइनाइट (एमआईसी) नामक जहरीली गैस के दुष्प्रभाव गैस पीड़ितों की तीसरी पीढ़ी तक में देखे जा रहे हैं. गैस कांड के कई वर्षों बाद जन्मे लोग भी गंभीर बीमारियों का शिकार हैं.
गैस पीड़ितों के बच्चे अब तक शारीरिक कमियों के साथ पैदा हो रहे हैं. लेकिन अब कोरोना संक्रमण के चलते गैस पीड़ितों के लिए हालात और भी अधिक भयावह हो गए हैं.
इन संगठनों ने शहर में कोविड-19 से हुई मौतों का विश्लेषण किया है जिसमें दावा किया है कि राज्य की राजधानी में 11 जून तक कोरोना वायरस के कारण मरने वाले 60 में से 48 मरीज गैस पीड़ित थे.
एनजीओ के विश्लेषण में कहा गया है कि इन 48 मौतों में से तीन मौत 35 साल पहले जहरीली गैस के रिसाव से पीड़ित माता-पिता से पैदा हुए थे.
ढींगरा ने कहा कि इससे मालूम होता है कि यूनियन कार्बाइड संयंत्र से निकले विषाक्त एमआईसी अब भी जीवित बचे लोगों और उनके बच्चों को 35 साल बाद प्रभावित कर रहा है.
उन्होंने कहा, ‘विश्लेषण से पता चला है कि कोविड -19 के कारण मरने वाले 81 प्रतिशत गैस पीड़ितों में कोमोर्बिडिटीज (पहले से मौजूद स्वास्थ्य की समस्या) थी.’
ढींगरा ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि राज्य सरकार हमारे साथ बातचीत करे और गैस त्रासदी में बचे लोगों की मदद के लिए रास्ता निकाले.’
गैस पीड़ितों के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी समिति के सदस्य पूर्णेंदु शुक्ला ने कहा, ‘सरकार को विश्लेषण को गंभीरता से लेना चाहिए. राज्य सरकार के पास गैस पीड़ितों के आंकड़े भी नहीं हैं, जो बहुत परेशान करने वाला है.’
उन्होंने आरोप लगाया कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा संचालित भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर (बीएमएचआरसी), जो गैस पीड़ितों के लिए समर्पित सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल है, पीड़ितों की उचित देखभाल नहीं कर रहा है.
शुक्ला ने कहा, ‘हम इन मुद्दों को अदालत को सूचित करने जा रहे हैं.’
संगठनों की ओर से जारी डेटा में बताया गया है कि शहर के अलग-अलग अस्पतालों में कोविड-19 से हुई मौतों में गैस पीड़ितों की संख्या अधिक है.
आंकड़ों के मुताबिक, शहर में कोरोना से हुई कुल मौतों में से 31 हमीदिया अस्पताल, 8 एम्स और 5 चिरायु अस्पताल में हुई. इनमें से हमीदिया में गुजरे 27 यानी 80% कोरोना संक्रमित गैस पीड़ित थे.
इसके अलावा जितने भी कोरोना संक्रमित, जिन्हें अस्पताल लाने पर मृत घोषित किया गया, वे सभी गैस पीड़ित थे.
संगठनों का यह भी कहना है कि अदालत में कहा गया था कि गैस त्रासदी ने पीड़ितों को स्थायी क्षति पहुंचाई है, लेकिन सरकार ने 90 फीसदी पीड़ितों को अस्थायी रूप से क्षतिग्रस्त बताया था. लेकिन कोरोना वायरस से होने वाली मौतों में अधिकतर गैस पीड़ितों का होना दिखाता है कि इस दुर्घटना ने पीड़ितों को स्थायी क्षति पहुंचाई है.
गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की रशीदा बी ने कहा, ‘हम मुख्यमंत्री से यह अपील करते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय में लंबित सुधार याचिका में गैस कांड की वजह से सभी 5,21,322 गैस पीड़ितों के स्थायी तौर पर क्षतिग्रस्त होने के सही आंकड़े रखे ताकि यूनियन कार्बाइड और डाव केमिकल से सभी के लिए उचित मुआवजा लिया जा सके.’
उन्होंने कहा कि गैस पीड़ित संगठन 21 मार्च और 23 अप्रैल को केंद्र एवं राज्य सरकार को पत्र देकर बता चुके हैं कि इस संक्रमण के चलते अगर गैस पीड़ितों पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया तो कइयों की जान जा सकती है.
भोपाल गैस पीड़ित महिला-पुरुष संघर्ष मोर्चा के नवाब खां ने बताया, ‘शहर में हुई 60 मौतों पर आधारित यह विस्तृत रिपोर्ट स्पष्ट रूप से बताती है कि सिर्फ 60 साल से ऊपर के गैस पीड़ित ही इसकी चपेट में नहीं आए हैं. 38-59 वर्ष की आयु में मरने वाले व्यक्तियों में 85 प्रतिशत भोपाल के यूनियन कार्बाइड गैस कांड के पीड़ित हैं.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)