पंजाब क्लीनिकल प्रतिष्ठान अध्यादेश को डॉक्टर विरोधी और जन विरोधी क़रार देते हुए प्रदर्शनकारियों ने दावा किया कि सरकार इसके ज़रिये निजी स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र को नियंत्रित करना चाहती है.
चंडीगढ़: पंजाब में करीब 10 हजार डॉक्टरों ने पंजाब क्लीनिकल प्रतिष्ठान (पंजीकरण एवं नियमन) अध्यादेश, 2020 को वापस लिए जाने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया, जिसके कारण बीते मंगलवार को राज्य में क्लीनिक और निजी अस्पताल बंद रहे.
डॉक्टरों ने आईएमए की पंजाब शाखा के तत्वावधान में यह विरोध प्रदर्शन किया. अध्यादेश को ‘डॉक्टर विरोधी’ और ‘जन विरोधी’ करार देते हुए प्रदर्शनकारियों ने दावा किया कि सरकार इसके जरिये निजी स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र को नियंत्रित करना चाहती है.
वहीं सरकार का दावा है कि यह अध्यादेश निजी क्लीनिकों के नियमन के लिए लाया गया है.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की पंजाब इकाई की संयुक्त कार्रवाई समिति के अध्यक्ष राकेश विग ने कहा, ‘पंजाब में करीब 10,000 डॉक्टरों ने काम पूरी तरह बंद रखा. सभी क्लीनिक और अस्पताल भी बंद रहे.’
पंजाब सरकार ने पिछले महीने पंजाब क्लीनिकल प्रतिष्ठान (पंजीकरण एवं नियमन) अध्यादेश, 2020 को अधिसूचित किया था और यह 50 से ज्यादा बिस्तरों वाले चिकित्सा प्रतिष्ठानों पर लागू होगा.
सरकार ने तब दावा किया था कि यह चिकित्सकीय मानकों और प्रोटोकॉल के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए क्लीनिकों के नियमन और पंजीकरण के साथ ही यह भी सुनिश्चित करता है कि इन प्रतिष्ठानों द्वारा आम आदमी को स्वास्थ्य सेवाओं का उचित और पूर्ण लाभ देने के लिए काम में पारदर्शिता बनी रहे.
डॉक्टरों ने बताया कि यह अध्यादेश एक जुलाई से प्रभावी होगा. प्रदर्शनकारी डॉक्टरों का कहना है कि इस कानून की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि वे पहले ही पंजाब चिकित्सा परिषद के नियमन और अन्य कानूनों के दायरे में आते हैं.
विग ने कहा, ‘इस कानून को लाने की मजबूरी क्या है? एक तरफ हम कोविड-19 से लड़ने में राज्य सरकार की मदद कर रहे हैं तो दूसरी तरफ वह ऐसे कानून ला रही है.’
डॉक्टरों ने दावा किया कि इस कानून से सरकार निजी अस्पतालों में अनावश्यक दखल देगी. उनमें से एक ने कहा, ‘सरकार हमें छद्म रूप से नियंत्रित करना चाहती है.’
विग ने आरोप लगाया कि इस कानून से ‘इंस्पेक्टर राज’ को बढ़ावा मिलेगा.
टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में आईएमए पंजाब के महासचिव डॉ. परमजीत मान का कहना है कि वे लोग प्रदर्शन करने के लिए मजबूर हुए क्योंकि सरकार उनकी मांगों को पूरा करने विफल रही.
उनका कहना है, ‘जब तक सरकार यह विवादास्पद अध्यादेश वापस नहीं ले लेती हमारा संघर्ष जारी रहेगा. यह छोटे और मध्यम चिकित्सा प्रतिष्ठानों के लिए घातक साबित होगा.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)