मदर टेरेसा की नीली बॉर्डर वाली साड़ी अब इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी

साड़ी के डिज़ाइन के गलत और अनुचित इस्तेमाल को देखते हुए उठाया गया कदम. यह पहली बार है जब किसी वेशभूषा को इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स के तहत संरक्षित किया गया है.

साड़ी के डिज़ाइन के गलत और अनुचित इस्तेमाल को देखते हुए उठाया गया कदम. यह पहली बार है जब किसी वेशभूषा को इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स के तहत संरक्षित किया गया है.

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मदर टेरेसा. (फोटो: रॉयटर्स)

कोलकाता: संत की उपाधि से सम्मानित मदर टेरेसा की मशहूर नीले बॉर्डर वाली साड़ी को मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी के तौर पर मान्यता दी गई है.

इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी अटॉर्नी बिस्वजीत सरकार ने कहा, ‘भारत सरकार की व्यापार चिह्न रजिस्ट्री ने नीले बॉर्डर की साड़ी के पैटर्न के लिए व्यापार चिह्न (ट्रेड मार्क) का पंजीकरण मंज़ूर कर दिया है.’

सरकान ने बताया कि यह पहली बार है जब किसी वेशभूषा इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स के तहत संरक्षित किया गया है.

अल्बानियाई मूल की मदर टेरेसा थोड़े समय के लिए नन भी रहीं. वर्ष 1948 से वह कोलकाता की सड़कों पर गरीबों और निसहायों की सेवा करने लगीं. नीले बॉर्डर वाली सफेद रंग की साड़ी उनकी पहचान बन गई थी, जिसका बाहरी किनारा दो अंदरूनी किनारों से अधिक चौड़ा होता था.

सरकार ने बताया, ‘नीले बॉर्डर की डिज़ाइन वाली साड़ी मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की नन पहना करती थीं, जिसे चार सितंबर 2016 को मदर को सम्मानित किए जाने के दिन संगठन के लिए इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी के तौर पर मान्यता दी गई.’

सरकार ने कहा, मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी प्रचार में यकीन नहीं करता और इसलिए इसे प्रचारित नहीं किया गया. लेकिन दुनियाभर में इस डिज़ाइन के गलत और अनुचित इस्तेमाल देखकर हम लोग इस व्यापार चिह्न को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, रंग व्यापार चिह्न संरक्षण के विचार के तहत नीले बॉर्डर का पैटर्न मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी के लिए एक विशेष प्रतीकात्मक पहचान है.

इसके लिए 12 दिसंबर 2013 को व्यापार चिह्न रजिस्ट्री में आवेदन दायर किया गया था और करीब तीन साल की सख़्त कानूनी प्रक्रियाओं के बाद इसे मंज़ूरी मिली.

मदर टेरेसा को संत की उपाधि से सम्मानित किए जाने के अवसर पर भारत सरकार ने रविवार होने के बावजूद उसी दिन इस व्यापार चिह्न रजिस्ट्रेशन को मंज़ूरी दी थी.

मदर टेरेसा का जन्म साल 1910 में मैसीडोनिया के स्कोप्जे के एक कैथलिक परिवार में हुआ था. 1929 में वह सिस्टर मैरी टेरेसा के रूप में भारत आई और दार्जिलिंग चली गई थीं.

उसके बाद वह कोलकाता आ गईं और लड़कियों के सेंट मैरीज़ हाईस्कूल में पढ़ाने लगीं. 1948 में उन्होंने गरीबों और असहायों की सेवा से जुड़ने का मन बनाया. उस साल के बाद से सार्वजनिक तौर पर वह आजीवन नीले बॉर्डर वाली साड़ी में ही नज़र आईं.

नीले बॉर्डर वाली ये साड़ियां उत्तर 24 परगना ज़िले के टीतागढ़ स्थित मिशनरीज़ आॅफ चैरिटी की ओर से चल रहे गांधीजी प्रेम निवास में तैयार किया जाता है. हर साल ऐसी करीब 4,000 साड़ियां तैयार की जाती हैं और दुनिया भर की ननों में इन्हें बांटा किया जाता है.

(समाचार एजेंसी भाषा से सहयोग के साथ)