कोविड-19 संकट के दौरान मिसाल बनकर उभरा क्यूबा

एक ऐसे समय में जब विकसित कहे जाने वाले देशों में कोरोना संक्रमितों की तादाद बढ़ती जा रही है, अस्पतालों से महज़ मरीज़ों की ही नहीं बल्कि डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के गुजरने ख़बर आना अपवाद नहीं रहा, क्यूबा सरीखे छोटे-से मुल्क़ ने इससे निपटने में अपनी गहरी छाप छोड़ी है.

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मार्च महीने में इटली के मिलान में मालपेंसा एयरपोर्ट पर क्यूबाई डॉक्टर्स का दल. (फोटो: रॉयटर्स)

ऐसे समय में जब विकसित कहे जाने वाले देशों में कोरोना संक्रमितों की तादाद बढ़ती जा रही है, अस्पतालों से महज़ मरीज़ों की ही नहीं बल्कि डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के गुजरने ख़बर आना अपवाद नहीं रहा, क्यूबा सरीखे छोटे-से मुल्क़ ने इससे निपटने में अपनी गहरी छाप छोड़ी है.

मार्च महीने में इटली के मिलान में मालपेंसा एयरपोर्ट पर क्यूबाई डॉक्टर्स का दल. (फोटो: रॉयटर्स)
मार्च महीने में इटली के मिलान में मालपेंसा एयरपोर्ट पर क्यूबाई डॉक्टर्स और स्वास्थ्यकर्मियों का दल. (फोटो: रॉयटर्स)

हेनरी रीव, इस नाम से कितने लोग परिचित हैं?

यह अलग बात है कि इस युवा की याद में बनी एक मेडिकल ब्रिगेड की दुनिया भर की सक्रियताओं से तो सभी परिचित हैं, जिसने कोविड महामारी के दिनों में भी अपने चिकित्सा के कामों में- जो अंतरराष्ट्रीयतावाद की भावना को मजबूती देते हुए आगे बढ़ी है, कहीं आंच नहीं आने दी है, जिसका निर्माण क्यूबा ने किया है.

मालूम हो कि हेनरी रीव के बारे में इतना ही हम जानते हैं कि 19 साल का यह अमेरिकी नौजवान था, जो न्यूयॉर्क के ब्रुकलिन स्थित अपने घर को छोड़ते हुए 19वीं सदी के अंतिम दौर में स्पेनिश हुक्मरानों के खिलाफ क्यूबाई संघर्ष से जुड़ गया था.

और क्यूबा ने अपने इस अनूठे स्वतंत्राता सेनानी की याद में मेडिकल ब्रिगेड का गठन किया है जो आज की तारीख में 22 मुल्कों में सक्रिय है.

आप को याद होगा वह दृश्य, जो कैमरे में कैद होते वक्त ही कालजयी बने रहने का संकेत दे रहा था. जब मिलान, जो इटली के संपन्न उत्तरी हिस्से का मशहूर शहर है, वहां अपने डॉक्टरी यूनिफॉर्म पहने एक टीम मालपेंसा एयरपोर्ट पर उतर रही थी और उस प्रसिद्ध एयरपोर्ट पर तमाम लोग खड़े होकर उनका अभिवादन कर रहे थे. (18 मार्च 2020)

यह सभी डॉक्टर तथा स्वास्थ्य पेशेवर हेनरी रीव ब्रिगेड के सदस्य थे, जो इटली सरकार के निमंत्रण पर वहां पहुंचे थे. एयरपोर्ट पर खड़े लोगों में चंद ऐसे भी थे, जिन्होंने तब अपने सीने पर क्रॉस बनाया, अपने भगवान को याद किया क्योंकि उनके हिसाब से क्यूबा के यह डॉक्टर किसी ‘फरिश्ते’ से कम नहीं थे.

क्यूबा के डॉक्टरों के इटली पहुंचने की इस घटना को लेकर इक्वाडोर के पूर्व राष्ट्रपति राफेल कोरिया का वह बयान भी चर्चित हुआ था:

‘एक दिन ऐसा आएगा जब हम अपने बच्चों को बताएंगे कि कई दशकों के सिनेमा और प्रचार के बाद, जब परीक्षा की घड़ी आयी, जब इंसानियत को जरूरत पड़ी, जब महाशक्तियां दुबकी बैठी थीं, तब क्यूबाई डॉक्टर पहुंचने लगे, वापस कुछ पाने की मंशा के बगैर.’

अगर मार्च महीने के अख़बारों को पलटें, तब क्यूबा की इस अंतरराष्ट्रीयतावादी पहल को रेखांकित किया गया था क्योंकि इटली उन मुल्कों में शुमार रहा है जिसने क्यूबा पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने में हमेशा अमेरिका का साथ दिया है.

लेकिन क्यूबा की सरकार ने तथा वहां के प्रबुद्ध लोगों ने इस बात पर इस समय गौर करना मुनासिब नहीं समझा.

रेखांकित करनेवाली बात है कि क्यूबा की हेनरी रीव ब्रिगेड की अदभुत सक्रियता ने दुनिया भर में उसके पक्ष में आवाज बुलंद हो उठी है और इनके द्वारा संगठित रूप से इस ब्रिगेड को इस वर्ष का नोबेल शांति पुरस्कार देने की अपील की गई है जिस याचिका में कहा गया है ‘

‘आधुनिक इतिहास की इस अभूतपूर्व वैश्विक महामारी के दौर में एक छोटे-से मुल्क के एक समूह ने दुनिया भर के लोगों को उम्मीद और प्रेरणा प्रदान की है-  वे हैं क्यूबाई डॉक्टर्स और नर्स, वे जो हेनरी रीव इंटरनेशनल मेडिकल ब्रिगेड का हिस्सा हैं, जो आज की तारीख में कोविड-19 के खिलाफ 22 मुल्कों में सक्रिय है.

उनके निस्वार्थ भाव और उनकी दिखाई अदभुत एकजुटता को स्वीकार करते हुए, जिन्होंने अपनी खुद की जान जोखिम में डाल कर हजारों लोगों की जान बचाई है, हम आप से यह गुजारिश करते हैं कि इस वर्ष का नोबेल शांति पुरस्कार उन्हें ही प्रदान किया जाए.

… याद रहे कि हेनरी रीव के नाम से बनी इस ब्रिगेड का निर्माण क्यूबा के पूर्व नेता फिदेल कास्त्रो ने वर्ष 2005 में तब किया था जब कैटरीना तूफान के वक्त 1,500 क्यूबाई डॉक्टरों को वहां भेजने का प्रस्ताव अमेरिका ने ठुकराया था.

इस ब्रिगेड के गठन के बाद से इस ब्रिगेड के मेडिकल कर्मी, जिनकी संख्या 7,400 स्वैच्छिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की है, वह आपदा राहत कार्यों के अगली कतारों में रहते आए हैं.

कोविड-19 के पहले इसने 21 मुल्कों के 35 लाख लोगों का इलाज किया था जो गंभीर प्राक्रतिक आपदा और महामारियों का शिकार हुए थे. अगली कतारों में रहते हुए ब्रिगेड द्वारा दी गई सेवाओं का ही परिणाम था कि अनुमानतः अस्सी हजार लोगों की जान बचाई जा सकी है…’

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क्या इस ब्रिगेड का इस वर्ष का नोबेल शांति पुरस्कार मिल जाएगा? यह सवाल फिलवक्त भविष्य के गर्भ में छिपा है. अलबत्ता पुरस्कार मिले न मिले इससे क्यूबा की जनता के सरोकारों में कोई कमी नहीं आएगी.

मालूम हो कि इटली पहुंचने वाली यह कोई पहली टीम नहीं थी जो क्यूबा से दूसरे मुल्कों में रवाना हुई थी. इसके पहले कोरोना से जूझने के लिए क्यूबा की टीमें पांच अलग अलग मुल्कों में भेजी गई थी- वेनेजुएला, जमैका, ग्रेनाडा, सूरीनाम और निकारागुआ.

और 1 मई तक ऐसे मुल्कों की तादाद 22 तक पहुंच गई थी, जहां क्यूबा के 1,450 मेडिकल कर्मी कोविड-19 संक्रमण रोकने के काम में स्थानीय डॉक्टरों के साथ खड़े थे, जिनके नाम थे रू एंडोरा, अंगोला, एंटीगुआ और बरबुडा, बार्बाडोस, बेलीजे, केप वर्दे, डॉमिनिका, ग्रेनाडा, हैती, होंडारास, इटली, जमैका, मेक्सिको, निकारागुआ, कतर, सेंट लुसिया, सेंट किटस और नेविस, सेंट विंसेंट और दे ग्रेनाडिन्स, दक्षिण अफ्रीका, सूरीनाम, टोगो और वेनेजुएला.

एक ऐसे समय में जब विकसित कहे जाने वाले मुल्कों में कोरोना नामक फिलवक्त असाध्य लगने वाली बीमारी से मरने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है, अस्पतालों से महज मरीजों की ही नहीं बल्कि डॉक्टरों एव स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की मरने की खबरें आना अब अपवाद नहीं रहा, इस छोटे-से एक करोड़ आबादी के इस मुल्क ने अपनी दखल से जबरदस्त छाप छोड़ी है.

आलम यह है कि कोरोना के चलते उपजे वैश्विक संकट से जूझने की अग्रणी कतारों में क्यूबा दिखा है.

अगर क्यूबा ने कोविड महामारी के दिनों में अंतरराष्ट्रीयतावाद की भावना का परिचय दिया है, वहीं इस बात को भी रेखांकित करना जरूरी है कि उसने अपने मुल्क में भी कोविड संक्रमण को बेहद नियंत्रण में रखा है.


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विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक कोरोना वायरस से उपजी महामारी का अगला केंद्र लैटिन अमेरिका होगा, मगर एक मुल्क इसमें अपवाद दिखता है और वह है क्यूबा – जहां कोविड-19 से उपजे मामले लगातार कम हो रहे हैं.

अगर क्यूबाई लोगों की लैटिन अमेरिका के अन्य मुल्कों के निवासियों से तुलना करें तो पता चलता है कि डोमिनिकन रिपब्लिक के निवासियों के तुलना में उन्हें कोविड का संक्रमण होने की 24 गुना कम संभावना है, तो मेक्सिको के नागरिकों की तुलना में 27 गुना कम संभावना है.

एक आंकड़ा तो सबसे चकित करने वाला है ब्राजील के निवासियों की तुलना में- जहां के राष्ट्रपति दरअसल कोविड-19 संक्रमण की भयावहता से ही इनकार करते रहे हैं और उसे फ्लू से अधिक कुछ नहीं समझते रहे हैं – क्यूबाई लोगों के संक्रमित होने की 70 गुना कम संभावना है.

आखिर ऐसा कैसे संभव हो सका है? इसके पीछे हम क्यूबा की अभूतपूर्व चिकित्सा प्रणाली की कामयाबी को देख सकते हैं.

द गार्डियन की रिपोर्ट के मुताबिक ‘राज्य ने दसियों हजार फैमिली डॉक्टरों, नर्सों और चिकित्सा क्षेत्र के विद्यार्थियों को इस मुहिम में तैनात किया है ताकि वह घर-घर दस्तक दें और परिवारों के स्वास्थ्य की पड़ताल करें… यह इसी प्रणाली को प्रभावी ढंग से लागू करने का नतीजा है कि क्यूबा में अभी तक महज 2,173 मामले आए हैं और जिनमें से महज 83 लोगों की मौत हुई है.’

कोविड संक्रमण को रोकने के लिए इस बात को बार-बार रेखांकित किया जाता है कि आप संभावित मरीजों को जल्द से जल्द अलग कर दें तथा दूसरे संक्रमण की चेन को भी देखें ताकि इसके फैलाव को रोका जाए. क्यूबा में इस काम को भी बखूबी अंजाम दिया जा सका है.

दरअसल ‘आज की तारीख में क्यूबा में डॉक्टर और मरीजों को अनुपात दुनिया में सबसे ज्यादा है (और यहां हम उन 10 हजार डॉक्टरों को शामिल नहीं कर रहे हैं, जो विदेशों में सेवाएं दे रहे हैं) और भले ही राउल कास्त्रो के जमाने में स्वास्थ्य पर खर्चा थोड़ा कम हुआ है, क्यूबा समूचे क्षेत्र में स्वास्थ्य पर सकल घरेलू उत्पाद का सबसे अधिक अनुपात खर्च करता है.

इतना ही नहीं एक तरफ जहां लैटिन अमेरिका और कैरेबियन मुल्कों की 30 फीसदी जनता के पास वित्तीय कारणों से कोई चिकित्सकीय सुविधा नहीं हासिल है, वहीं क्यूबा में सभी लोग कवर्ड हैं.’

क्यूबा की यह प्रचंड सफलता इस वजह से भी अधिक काबिले तारीफ दिखती है क्योंकि उस पर अमेरिका की तरफ से पचास साल से अधिक समय से आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए हैं.

अमेरिका की इस अन्यायपूर्ण हरकत का तमाम पूंजीवादी मुल्कों ने साथ दिया है. हमें नहीं भूलना चाहिए कि इन प्रतिबंधों को संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ से गैरकानूनी घोषित किया गया है.

(फोटो: रॉयटर्स)
(फोटो: रॉयटर्स)

क्यूबा का आकलन है कि सदियों से चले आ रहे इन प्रतिबंधों ने उसे 750 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है. सोवियत संघ के विघटन के बाद वहां आर्थिक स्थिति पर काफी विपरीत असर पड़ा है.

गौरतलब है कि क्यूबा में लोगों की औसतन उम्र 78 साल के करीब है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के बराबर है. अगर प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर खर्चे को देखें तो वहां अमेरिका की तुलना में महज 4 फीसदी खर्च होता है.

कहने का तात्पर्य कि चाहे निजी बीमा कंपनियां हों, गैरजरूरी इलाज हो, बीमारियों का निर्माण हों या अस्पताल में अधिक समय तक भर्ती रखकर होने वाले छूत के नए संक्रमण हो, अमेरिका में मरीजों का खूब दोहन होता है. वहां स्वास्थ्य रक्षा का फोकस बीमारी केंद्रित है, वहीं क्यूबा में वह निवारण केंद्रित है.

आखिर क्यूबा इस स्थिति में कैसे पहुंचा यह लंबे अध्ययन का विषय है. फिलवक्त इतना ही बताना काफी रहेगा कि क्यूबा की सार्वभौमिक स्वास्थ्य प्रणाली, जिस ‘चमत्कार’ को लेकर पश्चिमी जगत के तमाम विद्वानों ने कई किताबें भी लिखी हैं और बीबीसी जैसे अग्रणी चैनलों ने उस पर विशेष डॉक्यूमेंट्री भी तैयार की है.

अपनी चर्चित किताब ‘सोशल रिलेशंस एंड द क्यूबन हेल्थ मिरैकल’ में एलिजाबेथ काथ (2010) बताती हैं कि ‘क्यूबा में स्वास्थ्य नीति पर अमल में व्यापक स्तर पर लोकप्रिय सहभागिता और सहयोग दिखता है, जिसे सार्वजनिक स्वास्थ्य को वरीयता देने की सरकार की दूरगामी नीति के तहत हासिल किया गया है. सरकार का इतना राजनीतिक प्रभाव भी है कि वह शेष जनता को इसके लिए प्रेरित कर सके.’

एक ऐसे वक्त में जब एचआईवी संक्रमण तथा एडस के प्रसार एवं इससे प्रभावित लोगों के साथ भेदभाव की घटनाएं आम हो चली हैं, यह विचार थोड़ा हवाई लग सकता है, मगर छोटे-से मुल्क क्यूबा ने पांच साल पहले ही इसे प्रमाणित किया है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की डायरेक्टर जनरल मार्गारेट चान ने खुद क्यूबा की इस उपलब्धि की ताईद की थी.

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कोरोना महामारी के वक्त जब पूरी दुनिया गोया तबाही के कगार पर खड़ी है, नोबेल शांति पुरस्कार की बुनियादी भावना को प्रतिबिंबित करने वाली क्यूबा के डॉक्टरों की ऐसी सक्रियता नोबेल पुरस्कार कमेटी को सोचने के लिए मजबूर करेगी या नहीं पता नहीं, लेकिन उनके जबरदस्त कामों के चलते वह दुनिया भर के सम्मान पाती रही है.

वर्ष 2017 में उन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बेहद प्रतिष्ठित समझे जानेवाले डॉ. ली जांग बुक मेमोरियल प्राइज फॉर पब्लिक हेल्थ से नवाजा था.

वजह था वर्ष 2014-15 के दरमियान ब्रिगेड द्वारा हाथों में लिया गया वह अदभुत अभियान जब पश्चिमी अफ्रीका में इबोला महामारी का कहर बरपा हो रहा था.

हेनरी रीव ब्रिगेड से संबद्ध 400 डॉक्टर, नर्सें और अन्य स्वास्थ्य कार्यकर्ता वहां पहुंचे थे और उन्होंने ऐसे क्षेत्रों में काम किया था जहां स्वास्थ्य सेवाएं न्यूनतम थीं और सड़क तथा संचार के साधनों का भी जबरदस्त अभाव था.

सिएरा लियोन, गिनिया और लाइबेरिया में इस टीम द्वारा सबसे बड़ा चिकित्सकीय अभियान हाथ में लिया गया था.

निश्चित ही कोरोना का कहर अभी जारी है और जैसा कि जानकार बता रहे हैं कि आने वाला समय समूचे विश्व की मानवता के लिए जबरदस्त चुनौतियों का समय है, कितने लोग इसमें कालकवलित होंगे और कितने बच निकलेंगे इसका अनुमान लगाना संभव नहीं.

लेकिन एक बात तो तय है कि महामारी के ऐसे समय में इस आपदा का लाभ उठाने में कॉरपोरेट सम्राटों की क्या कारगुजारियां चल रही हैं, वह भी साफ दिख रहा है, लेकिन उसी वक्त चिकित्सकीय अंतरराष्ट्रीयतावाद की भावना से आगे बढ़ रहे क्यूबा के डॉक्टर भी दिखते हैं.

क्यूबाई इंकलाब के महान नेता चे ग्वेरा- जो 1967 में सीआईए के गुर्गों के हाथों शहीद हुए थे- ने अपनी जनता को लिखे अंतिम पत्र में लिखा था ‘अनटिल विक्ट्री, ऑलवेज’ ((Hasta la victoria siempre, Cuba! विजयी होने तक हमेशा).

क्या यह कहना गैरवाजिब होगा कि क्यूबा की जनता आज भी उनके संदेश को दिलों में संजोए है.

(सुभाष गाताडे वामपंथी एक्टिविस्ट, लेखक और अनुवादक हैं.)