15 दिसंबर 2019 को जामिया मिलिया इस्लामिया परिसर में दिल्ली पुलिस द्वारा छात्रों को बर्बरता से पीटने की घटना पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इससे पहले विद्यार्थियों का सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन एक ‘ग़ैर क़ानूनी जमावड़ा’ था, जिसने पुलिसिया कार्रवाई को दावत दी.
![घटना के बाद जामिया कोऑर्डिनेशन कमेटी द्वारा जारी सीसीटीवी फुटेज में पुलिसकर्मी लाइब्रेरी में बैठे छात्रों को लाठी से मारते दिख रहे थे. (साभार: ट्विटर/वीडियोग्रैब)](https://hindi.thewire.in/wp-content/uploads/2020/06/Jamia-Violence-Library-Twitter-videograb.jpg)
नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस द्वारा जामिया मिलिया इस्लामिया की लाइब्रेरी में घुसकर विद्यार्थियों पर हमला करने करने की खबर के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियों में आने के सात महीने के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने आखिरकार इस घटना पर अपनी रिपोर्ट जारी कर दी है.
लेकिन एसएसपी मंजिल सैनी के नेतृत्व वाली आयोग की टीम द्वारा तैयार रिपोर्ट का पूरा ध्यान इस बात पर है कि इसे क्यों लगता है कि 15 दिसंबर, 2019 को जामिया के विद्यार्थियों द्वारा नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) के खिलाफ किया गया विरोध प्रदर्शन एक ‘गैरकानूनी जमावड़ा’ था और इसने खुद ही अपने ख़िलाफ़ पुलिसिया कार्रवाई को दावत देने का काम किया.
रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि प्रदर्शनकारी हिंसक हो गए और उन्होंने सरकारी और निजी संपत्तियों को नष्ट किया और पुलिस अधिकारियों पर पत्थर और पेट्रोल बम फेंके और ऐसा करते हुए उन्होंने खुद ही संविधान द्वारा दिए गए एकत्र होने के मौलिक अधिकार के दायरे से खुद को बाहर कर लिया.
एक व्यापक साजिश की ओर इशारा करते हुए, एनएचआरसी की रिपोर्ट का यह भी कहना है कि ‘जामिया मिलिया इस्लामिया में हुए प्रदर्शनों, जो चालाकी से और कथित तौर पर विद्यार्थियों की आड़ में आयोजित किए गए, के पीछे के वास्तविक सूत्रधारों और उसकी असली मंशा का पर्दाफ़ाश करने की जरूरत है.’
हालांकि एनएचआरसी ने इस मामले का संज्ञान पुलिस द्वारा विश्वविद्यालय परिसर में विद्यार्थियों के ख़िलाफ़ गैरआनुपातिक बल का इस्तेमाल करने के आरोपों के बाद लिया था, लेकिन इसकी रिपोर्ट में लाइब्रेरी के भीतर छात्रों से मारपीट को लेकर बस इतना कहा गया है कि इससे ‘बचा जा सकता था.’
इसमें लाइब्रेरी के भीतर आंसू गैस के गोले के खोलों की बरामदगी को दर्ज किया है और कहा है कि ‘यह एक गैर जिम्मेदाराना कदम था और इससे बचा जा सकता था.’
लेकिन इस हल्की-सी आलोचना से पहले भी एक पूरी भूमिका तैयार की गई है और इसके बाद इस बात का विस्तार से ब्योरा दिया गया है कि कैसे जो हुआ, उसका दोष खुद विद्यार्थियों के ऊपर है.
हालांकि ‘सिफारिश’ वाले हिस्से में एनएचआरसी की रिपोर्ट में यह जरूर कहा गया है कि अधिकारियों को जामिया मिलिया इस्लामिया की रीडिंग रूम के भीतर गैर-जरूरी तरीके से लाठी चलाने और लाइब्रेरी के बंद परिसर के भीतर आंसू गैस के गोलों का इस्तेमाल- जिसका कानून-व्यवस्था बहाल करने के हिसाब से कोई जरूरत नहीं थी- करने वाले वाले पुलिसकर्मियों की पहचान की जानी चाहिए और संबंधित पुलिस संगठनों के कानूनों के हिसाब से उनके खिलाफ ‘उपयुक्त कार्रवाई’ की जानी चाहिए.
आयोग ने कहीं भी दोषी पुलिसकर्मियों पर मुकदमा चलाने की सिफारिश नहीं की है.
गतिविधियों पर ‘लगाम लगाना पुलिस का दायित्व’
उन घटनाओं का जिक्र करते हुए, जिसका नतीजा जामिया में पुलिस हिंसा के तौर पर निकला, एनएचआरसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि सीएए विरोधी ‘आंदोलन का समन्वय और उसका नेतृत्व स्थानीय राजनीतिक नेताओं द्वारा किया गया, जिन्होंने समय-समय पर आंदोलनकारियों को संबोधित किया.
इस जमावड़े को पुलिस द्वारा ‘गैरकानूनी’ करार दिया गया था. ‘कानून एवं व्यवस्था को बहाल रखने के लिए इन गैरकानूनी जमावड़ों पर नियंत्रण करना पुलिस की जिम्मेदारी थी.
![जामिया में हुई हिंसा के बाद लाइब्रेरी में मिला आंसू गैस का शेल. (फोटो: पीटीआई)](https://hindi.thewire.in/wp-content/uploads/2019/12/Jamia-Library-Violence-PTI.jpg)
पुलिस ने आंसू गैस के गोलों और लाठीचार्ज का इस्तेमाल किया. जब इन प्रदर्शनकारियों को पीछे धकेला गया, उन्होंने सड़क के किनारे-किनारे संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया.’
रिपोर्ट में इसके बाद कहा गया है कि दिल्ली पुलिस के पास विश्वविद्यालय परिसर के भीतर दाखिल होने के अलावा कोई चारा नहीं था क्योंकि उस पर पत्थरबाजी कर रहे विद्यार्थियों द्वारा हमला किया जा रहा था.
‘इस गैरकानूनी जमावड़े के सदस्य जामिया मिलिया के पास पहुंच गए और उन्होंने ट्रैफिक के आवागमन को रोक दिया और कैंपस के भीतर दाखिल हो गए. वहां से उन्होंने पुलिस पार्टी पर पत्थरबाजी जारी रखी. कोई और चारा न देखकर पुलिस भी हिंसक/उपद्रवी भीड़ को काबू करने के लिए और उन्हें बाहर करने के लिए परिसर के भीतर दाखिल हो गई. लेकिन ये प्रदर्शनकारी लाइब्रेरी के भीतर दाखिल हो गए और उन्होंने पुलिस को रोकने के लिए रास्ता बंद कर दिया. उन्हें वहां से निकालने के लिए पुलिस को लाइब्रेरी का दरवाजा तोड़कर उनमें दाखिल होना पड़ा.’
सीसीटीवी फुटेज और पुलिस पर यूनिवर्सिटी परिसर में तोड़-फोड़ करने का आरोप लगाने वाले विद्यार्थियों गवाहियों को लगभग पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अगर प्रदर्शन शांतिपूर्ण था, तो इस बात का कोई जवाब नहीं मिलता है कि कैसे बड़ी संख्या में निजी और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया और कई गाड़ियों में आग लगायी गई.’
रिपोर्ट में आगे बढ़ते हुए यह भी कहा गया है कि यूनिवर्सिटी गेट पर पहचान पत्रों की सही तरह से जांच नहीं होने के कारण ‘इस बात की काफी शंका है कि बाहरी लोग भी यूनिवर्सिटी में दाखिल हुए थे.’
सबसे अहम बात, रिपोर्ट में जामिया प्रशासन पर आरोप लगाया गया है कि वे ‘स्थानीय पुलिस को लेकर विद्यार्थियों के असंतोष’ के बारे में जानकारी देने में ‘नाकाम’ रहे और ‘विद्यार्थियों से बात कर उन्हें शांत कराने में अक्षम साबित हुए.’
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह ‘प्रॉक्टोरल टीम की भी नाकामी है, जो पुलिस के परिसर में आने तक गेट नंबर 7 पर मौजूद थी, लेकिन वे यह कहते हुए उसके सदस्य अपने दफ्तरों चले गए कि वे वहां से सीसीटीवी से पूरी हालात पर नजर रखेंगे, जो उनकी तरफ से एक बड़ी चूक थी. उन्हें अपने दफ्तरों में जाने की जगह गेट नंबर 7 पर ही रहना चाहिए था. ऐसा होता तो शायद पुलिस और विद्यार्थियों को उनके द्वारा शांत कराया जा सकता था और हालात को सामान्य बनाने में उनकी बड़ी भूमिका हो सकती थी.’
मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ‘प्रकट तौर पर यह स्थानीय पुलिस की भी नाकामी है, जो छात्रों के आक्रोश और 15.12.2019 की उनकी योजना के बारे में समय पर सूचना हासिल नहीं कर सकी. 13.12.2019 को कैंपस के गेट नंबर 1 के पास नाकाबंदी (बैरिकेडिंग) थी और किसी तरह से भीड़/विरोध प्रदर्शन को उसी जगह पर समय रहते काबू में कर लिया गया था. हालांकि, एनएचआरसी टीम को कैंपस से 1.5 किलोमीटर दूर जुलेना (सूर्या होटल के पास) पर बैरिकेडिंग समझ से परे लगी, जहां कई अगल-बगल के रास्ते हैं और किसी के लिए भी वहां से बचकर निकल जाना आसान है और बड़ी भीड़ पर नियंत्रण करना मुश्किल है.’
एनएचआरसी ने न केवल विरोध प्रदर्शन के हिंसक होने की पुलिस की दलील को स्वीकार कर लिया, बल्कि यह देखने में भी नाकाम रहा कि असल में विद्यार्थियों का विरोध प्रदर्शन क्या था: वे कुछ शिक्षित नौजवान थे, जो कुछ दिन पहले संसद द्वारा पारित किए गए एक भेदभावपूर्ण कानून के खिलाफ आवाज उठा रहे थे.
इसके बजाय रिपोर्ट कहती है कि ‘इन विरोध प्रदर्शनों के पीछे के वास्तविक सूत्रधारों और इरादे पर से परदा उठाने की जरूरत है.’
‘आजादी की सीमा’
एनएचआरसी की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘बोलने/अभिव्यक्ति और शांतिपूर्ण सम्मेलन की आजादी के साथ-साथ संवैधानिक सीमाएं/पाबंदियां भी जुड़ी हुई हैं.’
अनुच्छेद 19 के तहत दिए गए मौलिक अधिकार असीमित नहीं हैं और ‘संवैधानिक सुरक्षा का फायदा उठाने के लिए सम्मेलन का शांतिपूर्ण होना जरूरी है.’
रिपोर्ट का निष्कर्ष है,’ कानून प्रवर्तक एजेंसियां हालात का आकलन करने और उस हालात के हिसाब से क्या कार्रवाई की जाए, इसका फैसला लेने के हिसाब से सर्वश्रेष्ठ निर्णायक हैं.
एनएचआरसी ने इसके बाद निम्नलिखित सिफारिशें की हैं:
- दिल्ली सरकार जख्मी विद्यार्थियों को मुआवजा दे.
- दिल्ली पुलिस कमिश्नर और डायरेक्टर जनरल सीआरपीएफ (फॉर आरएएफ) सुरक्षा बलों के (दिल्ली पुलिस और आरएएफ दोनों के) उन सदस्यों की पहचान करे, जिन्हें सीसीटीवी फुटेज में सीसीटीवी कैमरों को नुकसान पहुंचाते, बिना वजह लाइब्रेरी के रीडिंग रूम्स के अंदर जाते और पुस्तकालय के बंद परिसर के भीतर आंसू गैस के गोलों का इस्तेमाल करता देखा गया. उनके खिलाफ उपयुक्त कार्रवाई भी की जा सकती है.
- दिल्ली पुलिस कमिश्नर और डायरेक्टर जनरल सीआरपीएफ (फॉर आरएएफ) यह सुनिश्चित करें कि कानून-व्यवस्था की ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए पुलिस बल को विशेष तौर पर शिक्षित किया जाए (संवेदनशील बनाया जाए) और उनमें पेशेवर रवैया विकसित करने के लिए विशेष ट्रेनिंग मॉड्यूल चलाए जाएं.
- दिल्ली के पुलिस कमिश्नर यह सुनिश्चित करें कि दिल्ली पुलिस के क्राइम बांच की एसआईटी सभी संबंधित मामलों की उनके गुणों के आधार पर और एक निश्चित मियाद के भीतर जांच करे और हिंसक प्रदर्शन के वास्तविक सूत्रधारों की पहचान करके उन्हें गिरफ्तार करे.
- दिल्ली के पुलिस कमिश्नर 15.12.2019 को जामिया मिलिया इस्लामिया की लाइब्रेरी बिल्डिंग के भीतर कथित पुलिस बर्बरता को लेकर एडिशनल सीपी/साइबर एंड टेक्नोलॉजी द्वारा की जा रही प्रशासनिक जांच को तेज करे. इसके निष्कर्षों और सिफारिशों पर तत्परता से कार्रवाई की जाए.
- दिल्ली के पुलिस कमिश्नर और अन्य वरिष्ठ अधिकारी भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने लिए बेहतर तरीके से तैयार रहने के लिए इंटेलीजेंस इकट्ठा करने के तंत्र को बेहतर और मजबूत बनाएं.
- जामिया मिलिया के वाइस चांसलर, रजिस्ट्रार और अन्य अधिकारी छात्र समुदाय के साथ बेहतर संवाद की प्रणाली विकसित करें ताकि वे बाहरियों और स्थानीय गुंडों या छुटभैये नेताओं से प्रभावित न हों.
NHRC Report on Jamia Violence by The Wire on Scribd
रिपोर्ट से निराशा
एनएचआरसी की रिपोर्ट को देखनेवाले जामिया के विद्यार्थियों ने इसकी तीखी आलोचना की है. पुलिस के हमले के दौरान स्नातकोत्तर के छात्र मोहम्मद मुस्तफ़ा की दोनों हाथों की हड्डियां टूटी थीं.
उनका कहना है कि वे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से काफी निराश हैं. वे कहते हैं, ‘इतने सारे लोगों की पुलिस ने बर्बर तरीके से पिटाई की. मुझ पर तब हमला किया गया, जब मैं लाइब्रेरी में बैठा हुआ था. पुलिस लाइब्रेरी में घुसने और हमारी पिटाई करने के लिए किस चीज ने मजबूर किया, यह जानने के लिए हम एक एक स्वतंत्र जांच चाहते हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘छात्र न केवल मुआवजे के हकदार हैं, बल्कि वे रिटायर्ड जजों की एक स्वतंत्र कमेटी के द्वारा एक स्वतंत्र जांच का भी हक रखते हें. इस मामले में आरोपी पुलिस है और कानून का तकाजा यही कहता है कि आपको अपनी ही जांच करने के लिए नहीं कहा जा सकता है. पुलिस से खुद अपनी जांच करने और एक निष्पक्ष रिपोर्ट देने की उम्मीद नहीं की जा सकती है.’
पेशेवरों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के एक समूह- द कैंपेन अगेंस्ट विच-हंट ऑफ एंटी सीएए एक्टिविस्ट्स ने भी एनएचआरसी की रिपोर्ट को हास्यास्पद करार देते हुए खारिज कर दिया है.
सोशल मीडिया पर उनके द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है, ‘आप यह महसूस किए बगैर नहीं रह पाएंगे कि यह एनएचआरसी की भाषा नहीं, बल्कि गृह मंत्रालय की भाषा है… पुलिस हमेशा अपनी जांच करने से बचती है, और इस मामले में जहां वीडियो साक्ष्य की मौजूदगी के बावजूद पुलिस प्रशासन ने अपनी किसी गलती मानने से साफ इनकार किया है, एनएचआरसी को ऐसी जांच से क्या उम्मीद है?’
द वायर ने जामिया मिलिया की वाइस चांसलर नजमा अख्तर से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने संदेशों और कॉल्स का जवाब नहीं दिया. इस रिपोर्ट पर यूनिवर्सिटी की प्रतिक्रिया आने पर खबर को अपडेट किया जाएगा.
(सीमी पाशा स्वतंत्र पत्रकार हैं.)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)