मामला छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले का है. 18 ग्राम पंचायतों और 50 गांवों के हजारों आदिवासी कलेक्ट्रेट पहुंचे थे. आदिवासियों का कहना है कि तेंदू पत्ता प्रमुख आय स्रोतों में से एक है और बैंक से नकद लेने के लिए शहर में आना अक्सर उस राशि की तुलना में अधिक महंगा होता है.
बीजापुर: छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में सोमवार को अपनी कई मांगें लेकर हजारों आदिवासी 50 किलोमीटर से अधिक की दूरी पैदल तय कर विरोध करने जिलाधिकारी के दफ्तर पहुंच गए थे.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, 18 ग्राम पंचायतों और 50 गांवों के ये आदिवासी धनुष-बाण और अपने आराध्यों की मूर्तियां लेकर पहुंचे थे. उनकी कई मांगों में से एक मांग यह थी कि तेंदू पत्ते का भुगतान बैंक ट्रांसफर के बजाय नकद किया जाए.
इसके बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने फैसला किया कि सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर जिलों में वन उत्पादन के लिए नकद भुगतान किया जाएगा.
अधिकारियों के अनुसार, छत्तीसगढ़ सरकार ने यह फैसला वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री कवासी लखमा के उस अनुरोध के बाद किया जिसमें कहा गया था कि नक्सल प्रभावित तीन जिलों में बैंकों तक पहुंचना संभव नहीं है.
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, बड़ी संख्या में आदिवासियों को देखकर जिला प्रशासन ने उच्चस्तरीय अधिकारियों को सूचना दी. इसके बाद बात मुख्यमंत्री तक पहुंची और उन्होंने लोगों की भावनाओं को देखते हुए उनकी मांगें पूरी करने और तत्काल नकद भुगतान करने की घोषणा की.
इससे पहले सोमवार की सुबह बीजापुर पुलिस को सूचना मिली कि चेरपाल से बड़ी संख्या में लोग पैदल शहर की ओर आ रहे हैं. उन्हें रोकने के लिए पुलिस ने अलग-अलग मार्गों पर बैरिकेडिंग कर दी, लेकिन जिलाधिकारी के दफ्तर पहुंचने के लिए उन्होंने बैरिकेड को तोड़ दिया और पुलिसकर्मियों को पीछे धकेल दिया.
#WATCH Chhattisgarh: Residents of 50 villages in Bijapur break Police barricading to enter Collector Office with their demands, including cash payment to them for collection of Tendu leaves. They had walked to the office from Cherpal village, covering 25 km on foot. (29.06) pic.twitter.com/gYZnbMoQZG
— ANI (@ANI) June 29, 2020
इसके बाद लोगों की मांगों को देखते हुए उनके एक दल को जिलाधिकारी, क्षेत्रीय वन अधिकारी (डीएफओ) और अन्य अधिकारियों से मिलने की मंजूरी दी गई.
दल के एक प्रतिनिधि 35 वर्षीय राजू कल्मू ने कहा, ‘हमारी मुख्य मांग यह है कि खरीदे और बेचे गए तेंदू पत्तों के लिए पैसे सीधे बैंक में न भेजे जाएं बल्कि नकद भुगतान किया जाए. यह प्रमुख आय स्रोतों में से एक है और नकद वापस लेने के लिए शहर में आना अक्सर वापस ली जाने वाली राशि की तुलना में अधिक महंगा होता है. कुछ लोगों के पास बैंक खाते भी नहीं हैं.’
एक अन्य प्रतिनिधि रमेश पुनेम ने कहा, ‘हम 2018-2019 में तेंदू पत्ता के लिए वादा किए गए बोनस के साथ गांवों में आदिवासी छात्रों, स्कूलों और अस्पतालों के लिए बढ़ी हुई छात्रवृत्ति चाहते हैं. आदिवासियों को पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया जाता है, उसे भी रोकने की जरूरत है.’
इस बीच सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी ने जब पुलिस को विरोध प्रदर्शन में शामिल होने की अपनी योजना के बारे में बताया तो रविवार को ही उन्हें घर से निकलने से रोक दिया गया.
सोनी सोरी ने कहा, ‘मैं सरकेगुडा भी जाना चाहता थी, जहां 2012 में एक फर्जी मुठभेड़ में मारे गए लोगों के लिए स्मारक बनाने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. हालांकि, मुझे पुलिस द्वारा उन स्थानों पर जाने की अनुमति नहीं थी. उन्होंने मुझे यह कहते हुए नोटिस दिया कि चूंकि मुझे सुरक्षा प्रदान की गई है इसलिए मैं नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नहीं जा सकती. यह मेरे अधिकारों का उल्लंघन है और आदिवासी आवाजों को दबाने का एक तरीका है.’
इस पर बस्तर के पुलिस महानिरीक्षक पी. सुंदरराज ने कहा, ‘हम किसी को भी सार्वजनिक कार्यक्रम के लिए जाने की अनुमति नहीं दे सकते हैं, क्योंकि कोविड-19 के कारण सभी सार्वजनिक समारोहों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.’