राजस्थान के किसानों ने 45 हजार गांवों में रखा बंद

फसलों के उचित मूल्य और कर्ज माफी को लेकर राजस्थान के किसान सड़क पर उतरे. मध्य प्रदेश में आत्महत्याओं का आंकड़ा पहुंचा 60 के पार.

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फसलों के उचित मूल्य और कर्ज माफी को लेकर राजस्थान के किसान सड़क पर उतरे. मध्य प्रदेश में आत्महत्याओं का आंकड़ा पहुंचा 60 के पार.

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प्रतीकात्मक फोटो (रॉयटर्स)

राजस्थान के किसान संगठनों ने रविवार को फसलों के उचित दाम, किसानों की कर्ज माफी आदि मांगों को 45 हजार गांवों में बंद बुलाया था. इस दौरान किसानों ने प्रदेश के कई हिस्सों दूध, सब्जी समेत अन्य कृषि उत्पादों की आपूर्ति रोक दी. किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने दावा किया कि प्रदेश के 45 हजार गांवों में बंद सफल रहा.

हालांकि, मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया कि बंद का मिला जुला असर रहा. श्रीगंगानगर, प्रतापगढ़ और उदयपुर जैसे शहरों में बंद का असर देखा गया.

जयपुर में नौ जुलाई को किसानों की विभिन्न मांगों को लेकर रैली निकाल रहे 16 किसान प्रतिनिधियों को पुलिस ने खदेड दिया. गांधीनगर थानाधिकारी सुरेंद्र कुमार ने बताया कि किसान रैली विवेकानंद हास्टल से गांधी सर्किल तक प्रस्तावित थी. प्रशासन की ओर से रैली निकालने की अनुमति नहीं दिए जाने के कारण किसानों को सीआरपीसी की धारा 129 के तहत खदेड़ कर प्रतापनगर पुलिस थाने ले जाया गया.

22 जून को 26 किसान संगठनों ने किसानों की विभिन्न मांगों को लेकर प्रदेश के 45 हजार गांवों को बंद करने और जयपुर में एक किसान रैली आयोजन करने की घोषणा की थी.

किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा कि हमने प्रशासन से गत 30 जून को जयपुर में किसान रैली की अनुमति मांगी थी, लेकिन प्रशासन ने रैली आयोजित करने की अनुमति से इनकार कर दिया. यह किसानों की आवाज को दबाने के लिए किया गया है. हम शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे थे, लेकिन हमें हिरासत में ले लिया गया.

उन्होंने कहा कि किसानों की जब तक मांगें नहीं मानी जाएंगी तब तक किसानों का विरोध जारी रहेगा. किसान संगठन किसानों के सभी तरह के कर्ज से मुक्ति, किसान आयोग की रिपोर्ट को लागू करने, किसान सुरक्षा अधिनियम, और एमएस स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग कर रहे हैं.

मध्य प्रदेश में जून से अब तक 60 किसानों ने की खुदकुशी

कृषि में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए पांच बार कृषि कर्मण पुरस्कार पाने वाला मध्य प्रदेश किसानों की आत्महत्या के मामले में भी आगे निकलता दिख रहा है. लगातार हो रही आत्महत्याओं पर लगाम लगा पाने में नाकाम सरकार ने स्पष्ट रूप से किसानों का कर्ज माफ करने से इनकार कर दिया है, वहीं प्रदेश में हर दिन किसानों की आत्महत्या के मामले सामने आ रहे हैं.

मध्य प्रदेश में जून से लेकर अब तक 60 किसान कर्ज, फसल खराब होने और खेती में नुकसान उठाने जैसे कारणों के चलते आत्महत्या कर चुके हैं. रविवार को कर्ज से परेशान एक और किसान ने आत्महत्या कर ली. पुलिस रिपोर्ट के अनुसार पिछले 24 घंटों में सागर जिले के गढ़ाकोटा थानांतर्गत ग्राम पचारा-पिपरिया निवासी किसान तेजराम कुर्मी (48) ने खुदकुशी कर ली.

समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक, गढ़ाकोटा पुलिस थाना प्रभारी महेंद्र सिंह जगैत ने बताया कि उसका शव सागर-दमोह रेल ट्रैक पर लिथौरा स्टेशन से पहले निहोरा पुल के पास रविवार की सुबह मिला. मृतक के बेटे अवधी ने बताया, मेरे पिताजी ने शनिवार शाम मुझे फोन किया और बताया कि वे कर्ज से परेशान हैं, इसलिए आत्महत्या करने जा रहे हैं.

अवधी ने कहा कि उसके पिता पर लगभग तीन लाख रूपये का कर्ज था. इसके अलावा, पिछले साल छह एकड़ जमीन पर बोई गई सोयाबीन की फसल भी चौपट हो गई, जिससे उनकी चिंताएं बढ गई थी. हालांकि, पुलिस का कहना है कि जांच के बाद ही खुदकुशी के कारण के बारे में कुछ कहा जा सकता है.

लगातार किसानों की आत्महत्या के मुद्दे पर लामबंद मध्य प्रदेश कांग्रेस ने दावा किया है कि प्रदेश में जून से लेकर अब तक 60 किसानों ने कर्ज एवं अपनी उपज के वाजिब दाम न मिलने से तंग आकर आत्महत्या की है. इसी बीच, मध्यप्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता के के मिश्रा ने बताया कि पिछले महीने से अब तक प्रदेश में विशेष रूप से कर्ज से परेशान 60 किसानों ने खुदकुशी की है. सरकार को इन आत्महत्याओं पर लगाम लगाने के लिए किसानों के कर्ज को फौरन माफ कर देना चाहिए.

देशबंधु की वेबसाइट पर प्रकाशित एक ख़बर में कहा गया है कि विगत 28 दिनों में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या बढ़कर 43 हो गई है.

समाचार एजेंसी आइएएनस की एक रिपोर्ट मे भी कहा गया है कि ‘मध्य प्रदेश में किसानों की खुदकुशी का सिलसिला रुक नहीं रहा है. प्रदेश में 28 दिनों में 43 किसानों ने आत्महत्या की है. 5 जुलाई को तीन किसानों ने आत्महत्या की थी.

एक अन्य न्यूज वेबसाइट खास खबर ने दाव किया है कि बीते 28 दिनों में 45 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. नौ जुलाई को प्रकाशित इस रिपोर्ट के कहा है कि ‘बीते दो दिनों में तीन किसानों ने कर्ज और साहूकारों से परेशान होकर आत्महत्या कर ली. इसके साथ ही 28 दिनों में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या बढक़र 45 हो गई है.’

मध्य प्रदेश के मुरैना में भी कर्ज से परेशान एक किसान मनीराम बघेल (50) ने आत्महत्या कर ली. पत्रिका के अनुसार, ‘दिमनी विधानसभा के तहत घुसगवां में रहने वाले किसान पर साहूकारों, बैंक व बिजली बिल का तकरीबन पांच लाख रुपए बकाया था. हर तरफ से कर्ज चुकाने का दबाव भी था. इसलिए उसने शुक्रवार को जहर खाकर आत्महत्या कर ली.

दैनिक भास्कर ने लिखा है कि ‘कर्ज में डूबे किसान मनीराम को बैंक का कर्ज चुकाने के लिए नोटिस मिला तो उसने सल्फॉस खाकर जान दे दी. किसान ने करीब 8 लाख का कर्ज लेकर आलू की खेती की थी, लेकिन फसल अपनी लागत भी नहीं निकाल सकी. कुछ दिन पहले बैंक ने नोटिस भेज कर्ज चुकाने का अल्टीमेटम दिया तब से किसान डिप्रेशन में था. 7 बच्चों के पिता मनीराम बघेल के पास पांच बीघा जमीन थी. उसमें से तीन बीघा जमीन तीन साल पहले कर्ज चुकाने में बिक गई थी. मनीराम पर गांव के सूदखोरों का चार लाख रुपए से अधिक का कर्ज बकाया था.’

महाराष्ट्र, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में किसानों ने आत्महत्या की

मध्य प्रदेश के अलावा पूरे देश से लगातार किसान आत्महत्या कर रहे हैं. पिछले दो दिनों में महाराष्ट्र, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से किसानों के आत्महत्या की खबरें हैं.

महाराष्ट्र के बारामती में कर्ज में डूबे हुए एक मवेशी कारोबारी और किसान ने एक पेड़ से लटककर कथित तौर पर आत्महत्या कर ली. मृतक की पहचान गांव कोलोली सुपा निवासी किशन नारायण जाधव के रूप में हुई है. पुलिस के अनुसार जाधव ने रविवार को आत्महत्या कर ली.

भाषा के मुताबिक, पुलिस ने बताया कि जाधव किसान और मवेशी कारोबारी था. प्रारंभिक सूचना के मुताबिक जाधव ने लोगों और सहकारी बैंकों से कर्ज लिया हुआ था. ऐसा प्रतीत होता है कि कर्ज में डूबे होने की वजह से उसने आत्महत्या जैसा कदम उठाया. जाधव शनिवार को रात में घर से निकला था लेकिन वापस नहीं लौटा.

उत्तर प्रदेश में झांसी के मऊरानीपुर के गांव रूपाधमना में कर्ज से परेशान एक किसान ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. हिंदुस्तान अखबार की खबर के अनुसार, ‘गांव रूपाधमना निवासी गौरीशंकर ने साहूकारों से काफी कर्ज ले रखा था. कर्ज न चुका पाने के कारण वह परेशान रहता था. शनिवार की शाम गौरीशंकर ने खाना खाया और खेत में बनी झोपड़ी में सोने चला गया. सुबह देर तक घर न आने पर परिजन खेत की तरफ गए तो उसका शव बबूल के पेड़ से झूलता मिला.’

रिपोर्ट में कहा गया है कि गौरीशंकर ने बैंक से 70 हजार और साहूकारों से ढाई लाख रुपये रुपये कर्ज लिया था. उनके बेटे सोबरन सिंह ने बताया कि पिता बैंक का कर्ज नहीं चुका पा रहे थे इस कारण पेरशान रह रहे थे.

उत्तर प्रदेश के महोबा जिला अंतर्गत चरखारी क्षेत्र में भी एक किसान ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. पंजाब केसरी ने पुलिस के हवाले से लिखा है कि स्वासा माफ गांव निवासी 35 वर्षीय किसान जयसिंह पारिवारिक जरूरतों की पूर्ति के लिए तीन कुंतल गेंहू बाजार में बेचने को गया था. देर रात तक घर वापस न लौटने पर परिवारीजनों ने उसकी तलाश शुरू की लेकिन उसका कोई पता नहीं चल सका. ग्रामीणों ने सुबह गांव के बाहर खेत में स्थित पेड़ पर एक शव लटका देखा. पुलिस मामले की छानबीन कर रही है.’

उधर, हरियाणा के हिसार में भी एक किसान ने आत्महत्या कर ली. नवभारत टाइम्स की एक खबर में कहा है कि ‘सिरसा के गांव खारी सुरेरा में कर्ज से परेशान एक 28 वर्षीय किसान बलविंदर सिहाग ने जहर पीकर आत्महत्या कर ली. बलविंदर काफी समय से कर्ज को लेकर परेशान था. किसान के शव का रविवार को सामान्य अस्पताल में पोस्टमॉर्टम हुआ. किसान नेताओं ने कहा कि किसान कर्जदार था इसलिए आत्महत्या कर ली.’

इसी बीच छह जुलाई को मंदसौर से निकली किसान मुक्ति यात्रा फिलहाल महाराष्ट्र पहुंच गई है. यह यात्रा गुजरात, राजस्थान, हरियाणा होते हुए 18 जुलाई को दिल्ली के जंतर मंतर पहुंचेगी.

योजनाएं सिर्फ कागज पर न हों

हाल ही सुप्रीम कोर्ट ने किसानों की आत्महत्या के बढ़ते मामलों पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था कि सरकार की कल्याणकारी योजना कागज पर नहीं रहनी चाहिए और ग्रामीण कर्ज की समस्या से निपटने के लिए मुआवजा कोई समाधान नहीं है.

प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर के अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि किसानों की आत्महत्या से निपटने के लिए मुआवजा समाधान नहीं है क्योंकि कर्ज और कर्ज चुकाने में अक्षमता इन आत्महत्याओं का महत्वपूर्ण कारण है. पीठ ने कहा कि कर्ज के बुरे प्रभावों को नरम करने और कम करने की आवश्यकता है और इसका एक तरीका उनके कर्जों पर बीमा कवर देना हो सकता है.

पीठ ने यह भी कहा, हमारा मानना है कि किसानों की आत्महत्या के मसले से रातोंरात नहीं निबटा जा सकता है. केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि सरकार द्वारा उठाए गए किसान समर्थक तमाम उपायों के नतीजे सामने आने के लिए सरकार को पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए.