सीएए विरोधी प्रदर्शन: लखनऊ जिला प्रशासन ने कुर्की की प्रक्रिया शुरू की

सदर तहसीलदार ने बताया कि सीएए विरोधी प्रदर्शनों के मामले में लखनऊ के चार थानों में दर्ज मामलों के सिलसिले में 54 लोगों के ख़िलाफ़ वसूली का नोटिस जारी किया था. उनमें से हसनगंज इलाके में दो संपत्तियां मंगलवार को कुर्क कर ली गई.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सीएए विरोधी प्रदर्शन के आरोपियों के पोस्टर बीते मार्च महीने में जगह-जगह लगाए गए थे. (फोटो: पीटीआई)

सदर तहसीलदार ने बताया कि सीएए विरोधी प्रदर्शनों के मामले में लखनऊ के चार थानों में दर्ज मामलों के सिलसिले में 54 लोगों के ख़िलाफ़ वसूली का नोटिस जारी किया था. उनमें से हसनगंज इलाके में दो संपत्तियां मंगलवार को कुर्क कर ली गई.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सीएए विरोधी प्रदर्शन के आरोपियों के पोस्टर बीते मार्च महीने में जगह-जगह लगाए गए थे. (फोटो: पीटीआई)
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सीएए विरोधी प्रदर्शन के आरोपियों के पोस्टर बीते मार्च महीने में जगह-जगह लगाए गए थे. (फोटो: पीटीआई)

लखनऊ: कोरोना वायरस के मद्देनजर लागू अनलॉक का दूसरा चरण शुरू होने के बाद लखनऊ जिला प्रशासन ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ पिछले साल दिसंबर में हुए हिंसक प्रदर्शनों के मामले में आरोपियों की संपत्ति कुर्क करने की प्रक्रिया यहां शुरू कर दी है.

सदर तहसीलदार शंभू शरण सिंह ने बुधवार को बताया कि सीएए विरोधी प्रदर्शनों के मामले में लखनऊ के चार थानों में दर्ज मामलों के सिलसिले में 54 लोगों के खिलाफ वसूली का नोटिस जारी किया था. उनमें से हसनगंज इलाके में दो संपत्तियां मंगलवार को कुर्क कर ली गई. साथ ही यह प्रक्रिया जारी रहेगी.

उन्होंने बताया कि जिन संपत्तियों को कुर्क किया गया, उनमें एनवाई फैशन सेंटर नाम की कपड़ों की दुकान और एक अन्य दुकान शामिल है. कुर्की की यह कार्रवाई अपर जिलाधिकारी ट्रांस गोमती विश्व भूषण मिश्रा के आदेश पर की गई.

कपड़ों की दुकान के सहायक भंडार प्रबंधक धर्मवीर सिंह और दूसरी दुकान के मालिक माहेनूर चौधरी सीएए विरोधी हिंसा के मामले में आरोपी हैं.

गौरतलब है कि पिछले साल 19 दिसंबर को सीएए और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी. प्रशासन ने इस मामले में लगभग 57 आरोपियों को कुल एक करोड़ 55 लाख रुपए का वसूली नोटिस जारी किया था.

उल्लेखनीय है कि बीते मार्च महीने में जिला प्रशासन ने आरोपियों के पोस्टर जगह-जगह लगवाए थे.

इस होर्डिंग में आरोपियों से सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में जुर्माना भरने को कहा गया थर. इन होर्डिंग्स में कहा गया था कि अगर ये लोग जुर्माना नहीं देते हैं तो इनकी सपंत्ति जब्त कर ली जाएगी.

उसके बाद कोविड-19 महामारी के मद्देनजर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सुझाव पर लखनऊ जिला प्रशासन ने 20 मार्च को तमाम वसूली और कुर्की की प्रक्रिया को अस्थाई तौर पर रोक दिया था. हाईकोर्ट ने योगी सरकार से आरोपियों के फोटो और निजी जानकारी वाले सभी होर्डिंग्स हटाने का भी आदेश दिया था.

दिसंबर महीने में हुई हिंसा को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक विवादित बयान देते हुए प्रदर्शनकारियों से बदला लेने की बात कही थी.

उन्होंने कहा था, ‘हम इस पर सख्ती से निपटेंगे. मैं खुद इसकी निगरानी कर रहा हूं. जो भी हिंसा में शामिल हैं, उनकी संपत्ति जब्त की जाएगी और कई चेहरों को वीडियोग्राफी और सीसीटीवी में पहचान लिया गया है. हम उनकी संपत्ति जब्त करेंगे और ऐसे लोगों से बदला लेंगे.’

इससे पहले नागरिकता संशोधन कानून को लेकर उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में हुई हिंसा के संबंध में विभिन्न शहरों की पुलिस और जिला प्रशासन ने लोगों को नोटिस भी भेजे थे.

सबसे अधिक 200 नोटिस मुरादाबाद में दिए गए. लखनऊ में 100, बिजनौर में 43, गोरखपुर में 33 और फिरोजाबाद में 29 लोगों को नोटिस दिए गए थे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)