एक जनहित याचिका के जवाब में राज्य सरकार ने हाईकोर्ट को बताया कि गर्भवती महिला के इलाज के साथ ही जांच हो सकती है. यदि जांच में कोरोना संक्रमण की पुष्टि होती है तो महिला को उपचार के लिए विशेष कोविड-19 अस्पताल में स्थानांतरित किया जाएगा.
नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी सरकार ने बीते बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट में कहा कि गर्भवती महिलाओं को सर्जरी और प्रसव आदि के लिए अस्पताल में भर्ती करने से पहले कोरोना वायरस की जांच अनिवार्य नहीं है.
इसके अलावा आपात स्थितियों में जांच परिणाम को लेकर इलाज से इनकार नहीं किया जाएगा.
दिल्ली सरकार ने अदालत से कहा कि इलाज के साथ ही जांच की जा सकती है और यदि जांच में कोरोना वायरस से संक्रमण की पुष्टि होती है तो गर्भवती महिला को आगे के इलाज के लिए विशेष कोविड-19 अस्पताल में स्थानांतरित किया जाएगा.
सरकार ने मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और जस्टिस प्रतीक जालान की पीठ के समक्ष यह भी कहा कि उसने अस्पतालों में ‘रैपिड एंटीजन’ परीक्षण के उपयोग को बढ़ावा दिया है ताकि जांच के परिणाम जल्दी उपलब्ध हो सकें.
सरकार ने अपने हलफनामे में यह भी कहा कि वह गर्भवती महिलाओं सहित अन्य मरीजों को होने वाली कठिनाइयों का ध्यान रखेगी. आप सरकार ने यह दलील एक वकील द्वारा दायर जनहित याचिका के जवाब में दी है.
याचिका में अनुरोध किया गया है कि गर्भवती महिलाओं की जांच के परिणामों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. उच्च न्यायालय ने 22 जून को कहा था गर्भवती महिलाओं को अस्पतालों में भर्ती करने से पहले कोरोना वायरस जांच परिणाम प्राप्त करने के लिए 5-7 दिनों का समय नहीं लिया जा सकता है.
अदालत ने आईसीएमआर और दिल्ली सरकार को इस संबंध में तेजी लाने को कहा था. भारतीय मेडिकल अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने केंद्र सरकार के स्थायी वकील विवेक गोयल के माध्यम से दायर अपने जवाब में कहा कि उसने कोविड-19 महामारी के दौरान गर्भवती महिलाओं के इलाज के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं और गर्भवती महिलाओं की जांच पर कोई प्रतिबंध नहीं है.
सुनवाई के दौरान गोयल ने कहा कि आईसीएमआर ये निर्णय नहीं ले सकता है कि किस श्रेणी के मरीजों को टेस्टिंग में प्राथमिकता दी जानी चाहिए.
दिल्ली सरकार के वकील ने गर्भवती महिलाओं की टेस्टिंग को प्राथमिकता देने के संबंध में हलफनामा दायर करने के लिए और समय मांगा. मामले में अगली सुनवाई आठ जुलाई को होगी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)