प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते 18 जून को 41 कोयला ब्लॉक के वाणिज्यिक खनन को लेकर नीलामी प्रक्रिया की शुरुआत की थी. इस क़दम के साथ देश के कोयला क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया गया है.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार के वाणिज्यिक कोयला खनन की इजाजत देने के विरोध में कोल इंडिया के मजदूर संगठनों की तीन दिवसीय हड़ताल बृहस्पतिवार से शुरू हुई. इससे करीब 40 लाख टन कोयला उत्पादन प्रभावित हो सकता है.
एचएमएस से संबद्ध हिंद खदान मजदूर संघ के अध्यक्ष नाथूलाल पांडेय ने कहा कि मजदूर संगठन बृहस्पतिवार को सुबह छह बजे शुरू होने वाली पहली पाली से हड़ताल पर चले गए.
उन्होंने बताया कि कोल इंडिया हर दिन औसतन 13 लाख टन कोयला उत्पादन करता है, इस तरह तीन दिनों तक चलने वाली हड़ताल से उत्पादन में 40 लाख टन का नुकसान होने का अनुमान है.
यह हड़ताल ऐसे समय में हो रही है, जब सरकार ने कोल इंडिया (सीआईएल) के लिए एक अरब टन कोयला उत्पादन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है, जो घरेलू कोयला उत्पादन का 80 प्रतिशत से अधिक है.
पांडेय ने बताया कि पूर्वी कोलफील्ड्स के झांझरा इलाके में पांच व्यक्तियों- एक सीटू सदस्य, एक इंटक और तीन एचएमएस के- जो हड़ताल पर थे, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है.
इसके अलावा कोल इंडिया शाखा बीसीसीएल में कार्यरत कर्मचारी काम पर नहीं गए हैं, जिसके चलते खदानों में अस्पताल जैसी आपातकालीन सेवाएं ठप पड़ गई हैं.
इसके अलावा कोल इंडिया की शाखा एसईसीएल के सोहागपुर क्षेत्र के महाप्रबंधक ने बाहरी लोगों को खदान में काम करने के लिए बुलाया है, जो एक असाधारण स्थिति है और ऐसा कोल इंडिया में कभी नहीं हुआ है.
कोल इंडिया के मजदूर संगठनों और सरकार के बीच बीते एक जुलाई को वाणिज्यिक कोयला खनन के मुद्दे पर बातचीत विफल रही. कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी और ट्रेड यूनियनों के प्रतिनिधियों के बीच बुधवार को एक वर्चुअल बैठक हुई थी.
उन्होंने कहा कि बैठक के दौरान कोयला मंत्री ने यूनियनों को बताया कि वाणिज्यिक खनन केंद्र सरकार का नीतिगत निर्णय है और कोयला उत्पादन बढ़ाने का एकमात्र तरीका है. दूसरी ओर मजदूर संगठनों के प्रतिनिधियों ने वाणिज्यिक खनन का विरोध करते हुए अपना रुख दोहराया.
उन्होंने बताया कि अंत में मंत्री ने वाणिज्यिक खनन के निर्णय को वापस लेने की मांग को स्वीकार नहीं किया, जिसके बाद मजदूर संगठनों के पास दो से चार जुलाई तक तीन दिनों की हड़ताल पर जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा.
मैं @CoalIndiaHQ एवं सिंगरेनी कोलियरी परिवार के हर कामगार से अपील करता हूं कि वे हड़ताल पर ना जाएं और देश को कोयले में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में आदरणीय पीएम श्री @NarendraModi जी के प्रयासों को सशक्त करें। हड़ताल से आपका, आपकी कंपनी का और सबसे ऊपर देश का भारी नुकसान होगा। pic.twitter.com/fdj5ELYkpQ
— Pralhad Joshi (@JoshiPralhad) July 1, 2020
बीते एक जुलाई को कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी ने कहा था, ‘मैं कोल इंडिया एवं सिंगरेनी कोलियरी परिवार के हर कामगार से अपील करता हूं कि वे हड़ताल पर न जाएं और देश को कोयले में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में आदरणीय पीएम नरेंद्र मोदी के प्रयासों को सशक्त करें. हड़ताल से आपका, आपकी कंपनी का और सबसे ऊपर देश का भारी नुकसान होगा.’
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते 18 जून को 41 कोयला ब्लॉक के वाणिज्यिक खनन को लेकर नीलामी प्रक्रिया की शुरुआत की थी. इस कदम के साथ देश के कोयला क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया गया है.
इसके बाद कोयला क्षेत्र से जुड़े श्रमिक संगठनों ने सरकार के फैसले के विरोध में कोल इंडिया और सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (एससीसीएल) में दो जुलाई से तीन दिन की देशव्यापी हड़ताल पर जाने का निर्णय करते हुए बारे में नोटिस दिया था.
श्रमिक संगठनों की प्रमुख मांगों में कोयला खदानों में वाणिज्यिक खनन के लिए नीलामी पर रोक, कोल इंडिया की परामर्श इकाई सीएमपीडीआईएल के कंपनी से अलगाव पर रोक, संविदा कर्मचारियों को उच्च शक्ति प्राप्त समिति द्वारा तय वेतन को देना और एक जनवरी 2017 से 28 मार्च 2018 के बीच सेवानिवृत्त लोगों के लिए ग्रेच्युटी राशि को 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख रुपये किया जाना शामिल है.
इधर, कोल इंडिया ने मजदूरों से हड़ताल पर नहीं जाने की अपील की है. बृहस्पतिवार को एक ट्वीट में कोल इंडिया ने कहा है, ‘आश्वस्त रहे… वाणिज्यिक कोयला खनन से कोल इंडिया के लिए कोई चिंताजनक बात नहीं.’
आश्वस्त रहे … कोल इंडिया के लिए कोई चिन्ताजनक बात नहीं l pic.twitter.com/CyHVJOqij6
— Coal India Limited (@CoalIndiaHQ) July 2, 2020
कंपनी की ओर से कहा गया है, ‘किसी कर्मचारी की छंटनी नहीं होगी. सीएमपीडीआई को कोल इंडिया से अलग नहीं किया जाएगा. कोल इंडिया का विनिवेश या निजीकरण करने की कोई योजना नहीं है.’
केंद्र सरकार के इस फैसले को लेकर छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य क्षेत्र के नौ सरपंचों ने नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर खनन नीलामी पर गहरी चिंता जाहिर की थी और कहा था कि यहां का समुदाय पूर्णतया जंगल पर आश्रित है, जिसके विनाश से यहां के लोगों का पूरा अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा.
ग्राम प्रधानों ने कहा था कि एक तरफ प्रधानमंत्री आत्मनिर्भरता की बात करते हैं, वहीं दूसरी तरफ खनन की इजाजत देकर आदिवासियों और वन में रहने वाले समुदायों की आजीविका, जीवनशैली और संस्कृति पर हमला किया जा रहा है.
झारखंड सरकार कोयला खदानों की वाणिज्यिक नीलामी के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है और उसने नीलामी में राज्य सरकार को विश्वास में लेने की जरूरत बताते हुए इस पर रोक लगाने की मांग की है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)