यह मामला हैदराबाद के गांधी अस्पताल का है. अस्पताल का कहना है कि यहां ऐसे क़रीब 35 लोग हैं, जिन्हें उनका परिवार वापस घर ले जाने से बच रहा है.
हैदराबादः तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद के खैरताबाद में 58 साल की एक महिला 14 जून को कोरोना संक्रमित पाई गई थीं. पूरी तरह से ठीक हो जाने के बाद उन्हें 30 जून को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया. हालांकि डिस्चार्ज करने के कई घंटे बाद भी उनके परिवार का कोई भी सदस्य उन्हें लेने नहीं आया.
यह मामला हैदराबाद के गांधी अस्पताल का है. अस्पताल का कहना है कि परिवार के किसी सदस्य के नहीं आने पर महिला को दोबारा आइसोलेशन वॉर्ड में भेज दिया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, गांधी अस्पताल में कोविड-19 के नोडल अधिकारी डॉ. प्रभाकर रेड्डी ने कहा, ‘जब हमने परिवार के सदस्यों को फोन किया तो यह संदेह जताया गया कि क्या यह वह पूरी तरह से ठीक हो चुकी हैं. जब हमने उन्हें बताया कि अब वह कोरोना संक्रमित नहीं हैं तो उनके परिवार के एक सदस्य ने कहा कि वह शायद पूरी तरह से ठीक नहीं हुई हैं और फोन काट दिया. तब से उनका परिवार फोन नहीं उठा रहा है. हमने महिला को दोबारा भर्ती कर लिया है.’
डॉ. रेड्डी का कहना है कि यह ऐसा पहला मामला नहीं है.
डॉ. रेड्डी ने कहा, ‘गांधी अस्पताल में ऐसे 35 मरीज हैं. जब कोई व्यक्ति ठीक होकर डिस्चार्ज के लिए तैयार हो जाता है तो हम परिवार को सूचना देते हैं. कुछ मामलों में परिवार कहता है कि उनके घर पर छोटे बच्चे हैं तो वे जोखिम नहीं उठा सकते, इसलिए वे ठीक हो चुके अपने परिजन को वापस घर नहीं लाते. वे हमसे कुछ और दिनों के लिए मरीज को अस्पताल में ही रखने को कहते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘ऐसे परिवारों द्वारा सबसे अधिक इस्तेमाल में लाया गया बहाना ‘घर में छोटे बच्चे हैं’ का होता है. कुछ लोग कहते हैं कि उनका फ्लैट और घर बहुत छोटा है, सिर्फ एक छोटा बाथरूम है, इसलिए वे ठीक हो चुके मरीज को कुछ दिनों तक आइसोलेशन में नहीं रख सकते.’
अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि परिवार के सदस्य कोरोना से ठीक हो चुके मरीज से रोजाना वीडियो या वॉयस कॉल करते हैं, लेकिन जैसे ही उन्हें बताया जाता है कि मरीज को डिस्चार्ज किया जा रहा है, उनमें से कुछ कॉल करना बंद कर देते हैं.
डॉ. प्रभाकर ने कहा, ‘कुछ परिवार कहते हैं कि उनके पड़ोसी वापस मरीज को अस्पताल से घर लाने के खिलाफ हैं. यहां तक कि अगर वे पूरी तरह से ठीक हो जाएं या जांच में उनकी रिपोर्ट निगेटिव आए तो भी उन पर कोविड-19 मरीज होने का ठप्पा लगा रहता है, इसलिए उन्हें वापस आसानी से घर में एंट्री नहीं मिलती. इनमें से कुछ लोग (मरीज) तो रात में रोते हैं.’
मेडचल के 55 साल के शख्स 30 जून को कोरोना निगेटिव पाए गए थे लेकिन वे अभी तक अस्पताल में हैं.
वह कहते हैं, ‘जब मेरा बेटा और बेटी मुझे लेने नहीं आए तो मुझे अनाथ जैसा महसूस हुआ. उन्होंने मुझे फोन करना बंद कर दिया. मैं उनकी चिंता समझता हूं. हम एक संकरी गली के छोटे से घर में रहते हैं. मेरा पोता दो साल का है. पड़ोसी भी असुरक्षित महसूस करते होंगे, लेकिन उन्हें मुझसे बात करनी बंद नहीं करनी चाहिए थी.’
अधिकारियों का कहना है कि इनमें से कई मरीज, जिन्हें इस मुश्किल समय में रिकवरी के बाद परिवार की मदद की जररूत है, ये लोग अनाथ महसूस करते हैं, जबकि कुछ में तो डिप्रेशन के लक्षण हैं.
अस्पताल के अधीक्षक डॉ. राजा राव ने कहा, ‘गांधी अस्पताल कोरोना केयर सेंटर है. जब तक कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों का परिवार उन्हें वापस घर ले जाने को तैयार नहीं हो जाता, हमने ऐसे कुछ लोगों को नेचर क्योर हॉस्पिटल या आयुर्वेदिक अस्पताल के आइसोलेशन वॉर्ड में रखे जाने को लेकर रेफर किया है. इससे उनमें भी आत्मविश्वास आएगा कि वे पूरी तरह से ठीक हो गए हैं और मेडिकली फिट हैं.’