डाक-मतपत्र से वोट देने की आयु सीमा कम करने का फैसला वापस ले चुनाव आयोग: कांग्रेस

कोरोना वायरस से वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा का हवाला देते हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों में डाक-मतपत्र के लिए मतदाताओं की आयु सीमा 80 साल से घटाकर 65 साल कर दी गई है. विपक्षी दलों का कहना है कि चुनाव आयोग बिना विमर्श चुनावी प्रक्रिया बदलने के लिए एकतरफ़ा क़दम उठा रहा है.

महाराष्ट्र में डाक मतपत्र का इस्तेमाल करते मतदाता. (फोटो: पीटीआई)

कोरोना वायरस से वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा का हवाला देते हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों में डाक-मतपत्र के लिए मतदाताओं की आयु सीमा 80 साल से घटाकर 65 साल कर दी गई है. विपक्षी दलों का कहना है कि चुनाव आयोग बिना विमर्श चुनावी प्रक्रिया बदलने के लिए एकतरफ़ा क़दम उठा रहा है.

महाराष्ट्र में डाक मतपत्र का इस्तेमाल करते मतदाता. (फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: कांग्रेस ने कोरोना महामारी के चलते वरिष्ठ नागरिकों के लिए डाक-मतपत्र से मतदान की सुविधा देने के संदर्भ में आयु सीमा घटाकर 65 साल करने के फैसले का विरोध करते हुए शुक्रवार को निर्वाचन आयोग से आग्रह किया कि वह इस निर्णय एवं इससे जुड़े संशोधन को वापस लेने का निर्देश दे.

बता दें कि कोरोना वायरस से वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा का हवाला देते हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों में डाक-मतपत्र के लिए मतदाताओं की आयु सीमा 80 साल से घटाकर 65 साल कर दी गई है.

कानून मंत्रालय ने अक्टूबर 2019 में चुनाव कराने के नियमों में संशोधन किया था और दिव्यांगों तथा 80 साल या इससे अधिक उम्र के लोगों को लोकसभा और विधानसभा चुनावों में डाक-मतपत्र से मतदान की अनुमति प्रदान की थी.

अब मंत्रालय ने 19 जून को जारी ताजा संशोधन में 65 वर्ष या इससे अधिक उम्र के लोगों को डाक-मतपत्र के इस्तेमाल की अनुमति दी है.

फैसले का विरोध करते हुए कांग्रेस ने शुक्रवार को निर्वाचन आयोग से आग्रह किया कि वह इस निर्णय एवं इससे जुड़े संशोधन को वापस लेने का निर्देश दे.

विपक्षी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं अहमद पटेल, केसी वेणुगोपाल, कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और रणदीप सुरजेवाला की ओर से आयोग को दिए गए प्रतिवेदन में यह दावा किया गया है कि इस निर्णय को लेकर विधि मंत्रालय ने चुनाव कराने संबंधी नियम-1961 में जो संशोधन किया है उसमें कई कानूनी खामियां हैं.

कांग्रेस ने कहा, ‘जिस तरह से ये निर्णय लिया गया है उससे साफ जाहिर होता है कि इसमें कोई दिमाग नहीं लगाया गया और संबंधित पक्षों के साथ कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया.’

पार्टी ने यह आरोप भी लगाया कि इस व्यवस्था से मतदान की गोपनीयता भंग होने का खतरा है, जबकि किसी भी संवैधानिक लोकतंत्र में मतदान की गोपनीयता बहुत महत्वपूर्ण है.

विपक्षी पार्टी ने कहा कि बेहतर विकल्प यह होगा कि वरिष्ठ नागरिकों के लिए अलग मतदान बूथ बनाए जाएं जिससे संक्रमण का न्यूनतम खतरा होगा.

उसने आग्रह किया, ‘निर्वाचन आयोग संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत दी गईं शक्तियों का उपयोग करे और इस निर्णय तथा नियम में संशोधन को वापस लेने का निर्देश दे.’

इससे पहले बीते 29 जून को माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने इस फैसले पर आपत्ति जताई थी और इस संबंध में निर्वाचन आयोग को पत्र लिखा था.

येचुरी ने पूछा था कि क्या इतनी जल्दबाजी बिहार विधानसभा चुनाव की वजह से है. उन्होंने पत्र में कहा है कि निर्वाचन आयोग राजनीतिक दलों से विमर्श किए बिना चुनावी प्रक्रिया को बदलने के लिए एकतरफा कदम उठा रहा है.

येचुरी ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त को लिखे पत्र में कहा था, ‘हम मीडिया में आईं इन खबरों से काफी व्यथित हैं कि निर्वाचन आयोग राजनीतिक दलों से विमर्श की स्थापित परंपरा का उल्लंघन कर 65 साल से अधिक उम्र के मतदाताओं को डाक के जरिये मतदान का विकल्प उपलब्ध कराने के लिए एकतरफा कदम उठा रहा है.’

बता दें कि भारत में कोरोना वायरस के प्रकोप के बाद बिहार पहला राज्य है जहां विधानसभा चुनाव होने हैं और इस राज्य के मतदाता उक्त संशोधित नियम का सबसे पहले लाभ उठाएंगे.

येचुरी ने कहा कि विगत में निर्वाचन आयोग ने चुनाव नियंत्रण और देख-रेख के लिए अनुच्छेद 324 के तहत व्यापक और समग्र शक्तियां होने के बावजूद सदैव इस बात पर जोर दिया है कि वह इस शक्ति का इस्तेमाल एकतरफा ढंग से नहीं करेगा.

उन्होंने कहा कि विगत की परंपरा के विपरीत नियमों में वर्तमान बदलावों के लिए राजनीतिक दलों से विमर्श नहीं किया गया.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)