77 वर्षीय पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी और 44 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता सदफ़ जाफ़र उन 57 लोगों में शामिल हैं, जो 19 दिसंबर, 2019 के सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान लखनऊ में 1.55 करोड़ रुपये की सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान के आरोपी हैं.
नई दिल्ली: भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईपीएस) के पूर्व अधिकारी एवं सामाजिक कार्यकर्ता एसआर दारापुरी और सदफ़ जाफ़र के परिवारों ने आरोप लगाया है कि लखनऊ प्रशासन के अधिकारी उनके घर आए थे और धमकी दी कि अगर वे 19 दिसंबर, 2019 के सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान नुकसान हुई सार्वजनिक संपत्ति की भरपाई करने में असफल रहे तो उनकी संपत्ति जब्त कर ली जाएगी.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, प्रशासन के अधिकारियों ने जाफ़र और दारापुरी के परिवारों के इस दावे को खारिज कर दिया. उन्होंने सफाई दी कि उनके घर जाने का उद्देश्य नुकसान की भरपाई करने की समयसीमा खत्म हो जाने की याद दिलाना था.
बता दें कि दोनों सामाजिक कार्यकर्ता उन 57 लोगों में शामिल हैं, जो लखनऊ में सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान के आरोपी हैं और इन सभी से 1.55 करोड़ के नुकसान की भरपाई करने के लिए कहा गया है जिसमें असफल होने पर उनकी संपत्तियां जब्त कर ली जाएंगी.
जाफ़र को 19 दिसंबर और दारापुरी को 20 दिसंबर को गिरफ्तार किया गया था. फिलहाल दोनों जमानत पर बाहर हैं. जाफ़र कांग्रेस कार्यकर्ता भी हैं.
दारापुरी के पोते सिद्धार्थ ने कहा, ‘बीते शुक्रवार को करीब 20 अधिकारी हमारे घर पर आए और हमें धमकाना शुरू कर दिया. उन्होंने हमसे पूछा कि दारापुरी जी कहां हैं. मेरे दादाजी यहां नहीं थे. उन्होंने कहा कि हम जहां रहते हैं वे उस संपत्ति को सील कर देंगे. उन्होंने हमारे घर, कारों के अलावा अधिकारियों के साथ हमारे चाचा की बातचीत का वीडियो बनाया.’
उन्होंने आगे कहा, ‘अगले दिन एक अन्य टीम हमारे घर आई और मेरे दादाजी के बारे पूछने लगी. उन्होंने कहा कि अगर दारापुरीजी उनसे नहीं मिलते हैं तो वे हमारे घर को जब्त कर लेंगे. हमने सभी नोटिसों का जवाब दिया जबकि प्रशासन ने हमारे किसी भी जवाब के बारे में कुछ नहीं कहा. मेरी दादी बहुत बीमार हैं. अगर वे हमें निकाल देंगे तो इस महामारी के दौरान हम कहां जाएंगे?’
वहीं, जाफ़र ने कहा कि पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की एक टीम चार जुलाई की दोपहर गोमती नगर इलाके में स्थित उनके घर आई. उन्होंने कहा, ‘उन्होंने मेरे बच्चों को डराया-धमकाया और पूरी बातचीत का वीडियो बनाया.’
दोनों घरों पर जाने वाली नायब तहसीलदार (काकोरी) महिमा मिश्रा ने कहा कि अधिकारियों ने परिवारों के साथ न तो दुर्व्यवहार किया और न ही धमकी दी.
उन्होंने कहा, ‘हम वहां गए क्योंकि उन्हें नोटिस दिया गया था और उन्हें दिया गया समय अब खत्म हो गया है. हमने बातचीत का वीडियो बनाया है ताकि कोई भी हम पर किसी भी तरह का आरोप न लगा सके.’
बता दें कि इस साल फरवरी में दिए गए आदेश में लखनऊ प्रशासन ने 28 लोगों को 19 दिसंबर, 2019 को सीएए-विरोधी प्रदर्शन के दौरान हजरतगंज इलाके में 6,337,637 रुपये के नुकसान की भरपाई के लिए कहा था.
लखनऊ जिला प्रशासन ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ पिछले साल दिसंबर में हुए हिंसक प्रदर्शनों के मामले में आरोपियों की संपत्ति कुर्क करने की प्रक्रिया बीते एक जुलाई से शुरू कर दी है.
सदर तहसीलदार शंभू शरण सिंह ने बताया था कि सीएए विरोधी प्रदर्शनों के मामले में लखनऊ के चार थानों में दर्ज मामलों के सिलसिले में 54 लोगों के खिलाफ वसूली का नोटिस जारी किया गया था. उनमें से हसनगंज इलाके में दो संपत्तियां कुर्क भी कर ली गई. उन्होंने कहा था यह प्रक्रिया जारी रहेगी.