यमुना सफ़ाई को लेकर एनजीटी के विशेषज्ञ सदस्य बीएस साजवान और दिल्ली की पूर्व मुख्य सचिव शैलजा चंद्रा की दो सदस्यीय यमुना निगरानी समिति ने एनजीटी को सौंपी अपनी अंतिम रिपोर्ट में बीते 23 महीनों के दौरान अपने अनुभव को साझा किया है.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा गठित एक समिति ने कहा है कि यमुना की सफाई की निगरानी में सबसे बड़ी चुनौती ‘आधिकारिक उदासीनता’ है, क्योंकि वैधानिक प्रावधानों और काफी उपदेशों के बावजूद जल प्रदूषण प्राथमिकता नहीं है.
एनजीटी के विशेषज्ञ सदस्य बीएस साजवान और दिल्ली की पूर्व मुख्य सचिव शैलजा चंद्रा की दो सदस्यीय यमुना निगरानी समिति ने एनजीटी को सौंपी अपनी अंतिम रिपोर्ट में बीते 23 महीनों के दौरान अपने इस अनुभव के बारे में जिक्र किया.
समिति ने कहा, ‘आधिकारिक उदासीनता पर काबू पाना सबसे बड़ी चुनौती है. यह एनजीटी के निर्देशों को पूरा करने या यमुना निगरानी समिति के प्रयासों को विफल करने के लिए किसी अवज्ञा या अनिच्छा की वजह से नहीं बल्कि इसलिए है क्योंकि जल प्रदूषण तमाम वैधानिक प्रावधानों और उपदेशों के बावजूद प्राथमिकता में नहीं है.’
समिति के अनुसार, ‘दूसरी बात यह कि रखरखाव के काम को राजनीतिक स्तर पर नई आधारभूत परियोजनाओं या योजनाओं के मुकाबले कम महत्व दिया जाता है. यह अधिकारियों और अभियंताओं के दिमाग में बैठ गया है कि जिस मानक पर उनके प्रदर्शन को आंका जाएगा, वह मुख्य रूप से अधिकारी की नई परियोजनाओं को मंजूरी दिलाने, उसके लिए कोष हासिल करने और समय पर सामान व सेवाएं हासिल करने की उसकी क्षमता पर निर्भर करता है.’
यमुना निगरानी समिति ने अधिकरण को बताया कि नागरिकों को प्रभावित करने वाले जीवन की गुणवत्ता संबंधी मुद्दे अकसर पीछे छूट जाते हैं और दैनिक रखरखाव के मामलों को निपटाने के लिए कनिष्ठ लोगों पर छोड़ दिया जाता है.
समिति ने कहा कि स्वच्छ यमुना के लिए ज्यादा बड़े स्तर पर जनता की भागीदारी जरूरी है और इसे हासिल करने के लिए नागरिकों को सक्रिय भूमिका निभानी होगी.
समिति की ओर से कहा गया है, ‘नदी को साफ करने को सरकार के चुनावी वादों की सूची में इस साल शामिल किया गया था और समिति को बताया गया था कि राजनीतिक स्तर पर भी इस पर ध्यान दिया जाना शुरू हो चुका है. लेकिन मौजूदा स्वास्थ्य संकट की वजह से यह एक बार फिर पीछे छूट गया है.’
समिति ने कहा कि जहां तक यमुना निगरानी समिति के अनुभव के संबंध की बात है तो शुरुआत में बैठकें अनिश्चित रहीं और प्रगति धीमी रही और हर बार समाधान खोजने की आवश्यकता पर अंतर-विभागीय और विभागीय मुद्दों को वरीयता दी गई. इसके साथ ही अधिकतर अधिकारी एनजीटी के आदेश या एजेंडा को पढ़े बिना बैठक में आते थे.
यह कोई शिकायत नहीं है बल्कि यह बताने की कोशिश है कि सिस्टम किस तरह से काम कर रहा है. एनजीटी ने दिल्ली के मुख्य सचिव को आदेश दिया है कि वे एक हफ्ते के अंदर यमुना निगरानी समिति को क्रियाशील बनाएं.
इंफ्रास्ट्रक्चरल और लॉजिस्टिक सहायता की कमी पर टिप्पणी करते हुए समिति ने कहा कि उसे सौंपे गए कार्य को पूरा करने के लिए बुनियादी कर्मचारियों और कार्यालय उपकरणों की आवश्यकता थी.
समिति ने कहा, ‘दिल्ली जल बोर्ड के सीईओ को समिति को स्थान और लॉजिस्टिक सहायता प्रदान करने का काम सौंपा गया था, लेकिन यमुना निगरानी समिति के साथ अपनी पहली बातचीत पर तत्कालीन सीईओ ने असहायता व्यक्त की और अनुरोध किया कि सदस्य खुद सुझाव दें कि कैसे आगे बढ़ना है.’
समिति ने बताया कि उन्हें काम करने के लिए जगह भी नहीं मुहैया कराई गई और उन्हें खुद ही उसकी व्यवस्था करनी पड़ी. समिति ने कहा कि सरकारी प्रक्रियाओं के कारण कंप्यूटर, प्रिंटर और स्कैनर जैसे उपकरणों की खरीददारी में काफी देरी हुई और उन्होंने निजी उपकरणों से काम शुरू करना पड़ा था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)