भीमा-कोरेगांव: नवलखा मामले में एनआईए को रिकॉर्ड पेश करने संबंधी दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश निरस्त

भीमा कोरेगांव हिंसा में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा दिल्ली से मुंबई ले जाने के संबंध में दिल्ली हाईकोर्ट ने एनआईए को दस्तावेज़ पेश करने को कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह मामला हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता. शीर्ष अदालत ने एनआईए के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट की टिप्पणी को भी रिकॉर्ड से हटा दिया है.

गौतम नवलखा. (फोटो साभार: विकिपीडिया)

भीमा-कोरेगांव हिंसा में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा दिल्ली से मुंबई ले जाने के संबंध में दिल्ली हाईकोर्ट ने एनआईए को दस्तावेज़ पेश करने को कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह मामला हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता. शीर्ष अदालत ने एनआईए के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट की टिप्पणी को भी रिकॉर्ड से हटा दिया है.

गौतम नवलखा. (फोटो साभार: विकिपीडिया)
गौतम नवलखा. (फोटो साभार: विकिपीडिया)

नई दिल्लीः भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को दिल्ली से मुंबई ट्रांसफर करने पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को रिकॉर्ड पेश करने को लेकर दिए गए दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है.

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि नवलखा की जमानत याचिका पर सुनवाई करना दिल्ली हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं है.

जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट को नवलखा की जमानत याचिका पर विचार करने का अधिकार नहीं है.

पीठ ने कहा कि यह मामला मुंबई की अदालतों के अधिकार क्षेत्र का है.

बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने कहा था कि एनआईए ने गौतम नवलखा की जमानत अर्जी लंबित रहने के दौरान उन्हें दिल्ली की अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर ले जाने के लिए बेवजह जल्दबाजी में काम किया था.

अदालत का कहना है कि नवलखा की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई से एक दिन पहले उन्हें मुंबई ले जाया गया था.

इस पर एनआईए ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश का पालन करने के बजाय इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.

वहीं, दो जून को जस्टिस अरुण मिश्रा के नेतृत्व में जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मामले में सोमवार को हुई सुनवाई में न सिर्फ दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ एनआईए को दोबारा अपील करने की मंजूरी दी बल्कि एनआईए के खिलाफ जस्टिस भंभानी द्वारा की गई टिप्पणी को भी रिकॉर्ड से हटा दिया.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के 27 मई के फैसले पर रोक लगी दी थी.

दरअसल 27 मई को दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में गौतम नवलखा को दिल्ली की तिहाड़ जेल से मुंबई ले जाने में दिखाई गई जल्दबाजी के लिए एनआईए को आड़े हाथ लिया था.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सोमवार को अदालत में सुनवाई के दौरान कहा था, ‘सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जब नवलखा ने आत्मसमर्पण किया था, उस समय दिल्ली में लॉकडाउन था. एनआईए ने बाद में मुंबई की विशेष अदालत में आवेदन कर दिल्ली की तिहाड़ जेल में न्यायिक हिरासत में बंद गौतम नवलखा को पेश करने के लिए आवश्यक वॉरंट जारी करने का अनुरोध किया था.’

मेहता ने कहा कि इस वारंट के आधार पर नवलखा को मुंबई की अदालत में पेश किया गया और दिल्ली हाईकोर्ट को इसकी जानकारी भी दी गई थी.

उन्होंने कहा कि दिल्ली में लॉकडाउन खत्म होने के बाद नवलखा को मुंबई ले जाया गया.

वहीं, नवलखा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा है कि हाईकोर्ट ने क्या किया था? उसने न तो कोई जमानत दी और न ही किसी तरह की राहत दी. हाईकोर्ट ने तो सिर्फ संबंधित अधिकारी को हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा था.

हालांकि, पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट को इस याचिका पर विचार ही नहीं करना चाहिए था.

पीठ ने सिब्बल से कहा, इस तरह के मामले में कोई हाईकोर्ट हस्तक्षेप कैसे कर सकता है? आप हमारे पास आ सकते थे या फिर मुंबई में एनआईए की संबंधित अदालत में जा सकते थे.

सुप्रीम कोर्ट ने 19 जून को नाराजगी जताते हुए हाईकोर्ट द्वारा नवलखा की जमानत याचिका पर विचार करने पर सवाल उठाए थे, जबकि इस तरह की राहत के लिए उनकी याचिका पहले ही खारिज की जा चुकी थी और उन्हें निश्चित तारीख के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया गया था.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 16 मार्च को नवलखा की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए उन्हें तीन सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया था.

इस आदेश का पालन करते हुए नवलखा ने 14 अप्रैल को आत्मसमर्पण कर दिया था और इसके बाद से वह तिहाड़ जेल में बंद थे. उन्हें 26 मई को ट्रेन से दिल्ली से मुंबई ले जाया गया था. वह फिलहाल मुंबई की तलोजा जेल में हैं.

मालूम हो कि गौतम नवलखा को भीमा-कोरेगांव में एक जनवरी, 2018 को हुई हिंसा के सिलसिले में पुणे पुलिस ने अगस्त, 2018 को गिरफ्तार किया था.

पुणे पुलिस का आरोप था कि उन्होंने 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एलगार परिषद में भड़काऊ भाषण दिया था, जिसकी वजह से अगले दिन भीमा-कोरेगांव में हिंसा भड़की थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)