उत्तरी दिल्ली नगर निगम के कस्तूरबा अस्पताल की एक नर्स का कहना है, ‘बीते कई सालों से समय पर तनख़्वाह नहीं आती थी, इस बार तीन महीनों से नहीं मिली है. अगर हमें सैलरी ही नहीं मिलती है, तो हम अपनी जान जोखिम में क्यों डाल रहे हैं?’
उत्तरी नगर निगम के हिंदू राव अस्पताल के डॉक्टर्स और पैरामेडिकल स्टाफ के वेतन में देरी को लेकर हड़ताल करने के बाद अब दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के कस्तूरबा अस्पताल की नर्सेज ने इसी बात को लेकर प्रदर्शन किया है.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, उत्तरी दिल्ली नगर निगम द्वारा संचालित इस अस्पताल की नर्सेज ने सोमवार को दो घंटे का प्रदर्शन किया था.
अस्पताल की नर्स यूनियन के अध्यक्ष बीएल शर्मा ने बताया कि उन्हें पिछली तनख्वाह मार्च महीने की मिली है- जिसका भुगतान मई में किया गया था. उनका कहना है कि यह प्रदर्शन तब तक चलेगा, जब तक उन्हें प्रशासन द्वारा आश्वासन नहीं दिया जाता.
निगम के अस्पतालों का यह हाल तब है जब दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा हस्तक्षेप कर एमसीडी को वेतन देने के लिए कहा था.
कस्तूरबा अस्पताल की एक नर्स मंजू लता ने बताया कि प्रदर्शन में अस्पताल के करीब 60 कर्मचारियों ने हिस्सा लिया था.
उन्होंने कहा, ‘बीते चार सालों से सैलरी लगातार देर से आती रही है, लेकिन हर बात की एक हद होती है. हमें तीन महीनों से तनख्वाह नहीं मिली है. हम अपनी जान जोखिम में क्यों डाल रहे हैं अगर हमें तनख्वाह ही नहीं मिलती?’
वे आगे कहती हैं, ‘हम पैसे उधार लेकर अपना काम चला रहे हैं, लेकिन कुछ लोगों का ऐसा हाल हो गया है कि वे अपने बच्चों की स्कूल की फीस नहीं दे पा रहे हैं और सारा पैसा राशन खरीदने में खर्च कर चुके हैं… अगर वे हमें पैसे नहीं दे सकते, तो अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे पास खाना हो… ‘
एक अन्य नर्स अलका कौशिक ने बताया, ‘हमने महामारी और मरीजों को ध्यान में रखते हुए यह मसला पहले नहीं उठाया. रोज कई नर्सेज सार्वजनिक परिवहन से अस्पताल आने-जाने में अपनी जान जोखिम में डाल रही हैं… तनख्वाह मिलने में देरी से ये नौबत आ गयी है कि मेरे पास होम लोन और क्रेडिट कार्ड के बिल चुकाने के लिए बैंक का नोटिस आ चुका है…’
हालांकि उत्तरी दिल्ली नगर निगम के मेयर जय प्रकाश का कहना है कि निगम ने सभी खर्चों पर रोक लगा दी है और केवल वेतन देने पर ध्यान दिया जा रहा है.
वे कहते हैं, ‘कोविड संकट के चलते प्रॉपर्टी टैक्स, पार्किंग और अन्य संसाधनों से धन नहीं आने के चलते फंड की कमी हो गई है… जिसके चलते वेतन में देरी हुई है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हम प्रयास कर रहे हैं कि उन्हें जल्द से जल्द पैसे दिए जाएं, साथ ही हमारी कोशिश है कि संसाधनों के लिए नए रास्ते खुलें.’
उत्तरी एमसीडी की मेडिकल सुविधाओं में हजार के करीब सीनियर डॉक्टर्स, 500 रेजीडेंट डॉक्टर्स और 1,500 नर्सिंग अफसर हैं. इन सभी के वेतन में देरी हुई है.
इसके अंतर्गत 21 डिस्पेंसरी, 63 जच्चा-बच्चा केंद्र, 17 पॉलीक्लीनिक, 7 मैटरनिटी होम के साथ हिंदू राव, महर्षि वाल्मीकि संक्रामक रोग, कस्तूरबा अस्पताल, गिरधारी लाल मैटरनिटी अस्पताल और राजन बाबू इंस्टिट्यूट ऑफ पल्मोनरी मेडिसिन एंड टीबी आते हैं.
इससे पहले द वायर द्वारा अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि नॉर्थ एमसीडी के तहत आने वाले दो अस्पतालों- कस्तूरबा और हिंदू राव के 350 से अधिक रेजिडेंट डॉक्टरों ने तीन से चार महीने तक का वेतन न मिलने की बात कहते हुए सामूहिक इस्तीफा देने की धमकी दी थी.
इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा इस मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए नॉर्थ एमसीडी को छह अस्पतालों के डॉक्टरों का वेतन देने का आदेश दिया गया था.
बीते महीने ही कोविड-19 मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टर्स को तनख्वाह न मिलने के मामलों पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाते हुए केंद्र से कहा था, ‘कोरोना से जंग में हम योद्धाओं को असंतुष्ट नहीं कर सकते हैं. डॉक्टरों को पेमेंट नहीं किया जा रहा, ऐसी चीजें सामने आ रही हैं, ये सब क्या है? हमें नहीं लगता कि जो हो रहा है वो होना चाहिए. स्वास्थ्यकर्मियों की चिंताओं का समाधान जरूर किया जाना चाहिए.’
कोर्ट ने कहा था, ‘ऐसी रिपोर्ट आ रही हैं कि कई क्षेत्रों के डॉक्टरों को भुगतान नहीं किया जा रहा है. हमने रिपोर्ट देखी कि डॉक्टर हड़ताल पर चले गए. दिल्ली के डॉक्टरों को तीन महीने से भुगतान नहीं किया गया है. ये चिंताएं हैं जिन पर सरकार को कदम उठाना चाहिए था. इसके लिए अदालत के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं होनी चाहिए.’
हिंदू राव अस्पताल की रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के महासचिव सागरदीप सिंह ने बताया कि उन्हें मार्च माह का वेतन जून के आखिरी सप्ताह में मिला है. वे कहते हैं कि यह स्थिति तब है जब हम कोविड-19 की ड्यूटी पर हैं.
स्वास्थ्यकर्मियों के अलावा उत्तरी दिल्ली नगर निगम द्वारा शिक्षकों को भी समय से वेतन नहीं दिया गया है.
बीते हफ्ते निगम के स्कूलों के लगभग 9,000 शिक्षकों को मार्च महीने से वेतन न देने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने उसे फटकारते हुए कहा था कि इसके लिए अकेले दिल्ली सरकार को निशाना नहीं बनाया जा सकता, निगम को भी अपनी ज़िम्मेदारी लेनी पड़ेगी.