सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका दायर में कहा गया था कि निजी अस्पताल कोरोना इलाज के लिए अत्यधिक शुल्क वसूल रहे हैं, जिस पर लगाम लगाने के लिए इलाज की अधिकतम लागत तय की जानी चाहिए.
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के निजी अस्पतालों में कोरोना इलाज के लिए कीमतों को रेग्युलेट करने से इनकार कर दिया.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने कहा कि देश के विभिन्न राज्यों में स्थितियां अलग-अलग हैं.
चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा, ‘हम पूर्ण रूप से सहमत हैं कि मेडिकल उपचार तक पहुंच बनाने में इसकी कीमत को बाधा नहीं बनना चाहिए विशेष रूप से मौजूदा समय में. किसी भी मरीज को अस्पताल के दरवाजे से इसलिए वापस नहीं लौटना चाहिए कि उपचार की लागत बहुत अधिक है.’
हालांकि अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी की उन आपत्तियों से सहमति जताई कि देशभर में स्वास्थ्य सेवाओं की लागत को कम करना संभव नहीं है, विशेष रूप से मौजूदा परिस्थितियों में.
अदालत दरअसल उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि निजी अस्पताल कोरोना इलाज के लिए अत्यधिक शुल्क वसूल रहे हैं.
याचिका में निजी अस्पतालों में कोरोना इलाज के लिए कीमतें निर्धारित करने की मांग की गई थी.
अदालत ने केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से 16 जुलाई को स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों के साथ याचिकाकर्ताओं की एक बैठक की व्यवस्था करने को कहा ताकि वे अपने सुझाव दे सकें.
कुछ निजी अस्पतालों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि कोरोना इलाज की लागत को लेकर बीमा कंपनियों ने अविश्वास फैलाया हुआ है. अगर मरीज के पास बीमा है तो बीमा कंपनियां इलाज के खर्चे का भुगतान क्यों नहीं कर सकती.
साल्वे ने कहा कि कोरोना के लिए एक सीधा-सा फॉर्मूला नहीं हो सकता. हर राज्य में अलग स्थिति है और हर राज्य अपना अलग मॉडल बनाने की कोशिश कर रहा है.
चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता से कहा, ‘आपका आग्रह है कि इसे (लागत) रेग्युलेट किया जाना चाहिए लेकिन वे कह रहे हैं कि हर राज्य में अलग-अलग परिस्थितियां हैं. ये सभी आर्थिक वास्तविकताएं हैं. इलाज की लागत वकील की फीस की तरह है. मान लीजिए हमने वकील से एक उचित राशि वसूलने को कहा है तो आप जानते हैं कि वे अलग-अलग राज्यों में इसे कैसे करेंगे.’
याचिकाकर्ता की ओर से अदालत में पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने अदालत से इस मामले को हाईकोर्ट में न भेजने और केंद्र सरकार से इस संबंध में दिशानिर्देश बनाने को कहा है.
इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, ‘हम यह नहीं कह रहे कि केंद्र सरकार को कुछ नहीं करना चाहिए. अगर गुजरात मॉडल अच्छा काम कर रहा है तो इसका कोई कारण नहीं है कि केंद्र सरकार को आपदा प्रबंधन अधिनियम का पालन नहीं करना चाहिए.’
दरअसल याचिकाकर्ता सचिन जैन ने दलील दी थी कि केंद्र सरकार ने आयुष्मान भारत योजना लागू की है, निजी अस्पतालों पर भी लागू होती है.
याचिकाकर्ता ने कहा कि आयुष्मान भारत के लिए तय कीमत पर ही सबका इलाज होना चाहिए. केंद्र सरकार को नागरिकों के लिए खड़ा होना चाहिए न कि कॉरपोरेट अस्पतालों का स्टैंड लेना चाहिए.