मुंबई के बीवाईएल नायर अस्पताल में रेजिडेंट डॉक्टर पायल तड़वी ने कथित तौर पर अपनी सीनियर डॉक्टरों की प्रताड़ना से तंग आकर मई 2019 में आत्महत्या कर ली थी. आरोपियों के मेडिकल लाइसेंस बहाल होने पर पायल के परिवार ने आपत्ति जताई है.
मुंबईः महाराष्ट्र के बीवाईएल नायर अस्पताल में रेजिडेंट डॉ. पायल सलमान तड़वी आत्महत्या मामले में महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल (एमएमसी) ने तीन आरोपी डॉक्टरों में से दो के रद्द किए गए मेडिकल लाइसेंस बहाल कर दिए हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, फरवरी में बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बाद एमएमसी ने इन आरोपी डॉक्टरों के रद्द किए गए मेडिकल लाइसेंस बहाल करने का आदेश दिया.
तड़वी की मां आबेदा को पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इस बारे में जानकारी दी गई.
इस हफ्ते की शुरुआत में आबेदा ने राज्य के चिकित्सा शिक्षा मंत्री अमित देशमुख को पत्र लिखकर आरोपी डॉक्टरों के निलंबित किए गए लाइसेंस मामले की सुनवाई पूरी होने तक रद्द रहने की ही मांग की.
पत्र में कहा गया, ‘हमने आरोपी डॉक्टरों के मेडिकल रजिस्ट्रेशन लाइसेंस रद्द करने के लिए एमएमसी के सामने कई बार आग्रह किया. मामले की सुनवाई पूरी होने तक इनके लाइसेंस रद्द रखना जरूरी है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘मेरी बेटी की मौत को एक साल से अधिक हो गया है लेकिन अभी तक मामले की सुनवाई शुरू नहीं हुई है और न ही आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए गए हैं. हमें आरोपियों के लाइसेंस निलंबन के फैसले को एमएमसी द्वारा वापस लिए जाने के बारे में भी नहीं बताया गया, जो मेरी बेटी के साथ अन्याय है.’
मालूम हो कि 22 मई 2019 को डॉ. पायल तड़वी ने हॉस्टल के अपने कमरे में आत्महत्या कर ली थी. डॉक्टर पायल तड़वी बीवाईएल नायर हॉस्पिटल से एमडी की पढ़ाई कर रही थीं.
मालूम हो कि पायल ने अपने सुसाइड नोट में हेमा आहूजा, भक्ति मेहारे और अंकिता खंडेलवाल का नाम लिया था और इन तीनों डॉक्टरों पर उन्हें प्रताड़ित करने का आरोप लगाया था.
परिजनों का आरोप है कि आरोपी डॉक्टर्स उनकी बेटी का मानसिक उत्पीड़न के साथ ही जातिसूचक टिप्पणी भी करते थे. सीनियर्स के इस व्यवहार से पायल बेहद परेशान रहती थी और इसी वजह से उसने ये कदम उठाया.
इस मामले के बाद महाराष्ट्र एसोसिएशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स (मार्ड) ने तीनों आरोपी डॉक्टरों की सदस्यता निरस्त कर दी थी.
इन तीनों आरोपियों को पिछले साल गिरफ्तार किया गया था और इन पर अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, महाराष्ट्र प्रोहिबिशन ऑफ रैगिंग एक्ट, आत्महत्या के लिए उकसाने, साक्ष्य नष्ट करने के लिए आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया गया था.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले साल अगस्त में तीनों को जमानत देते हुए कई शर्तें लगाई थी, जिसमें मामले की सुनवाई पूरी होने तक एमएमसी द्वारा जारी किए गए लाइसेंस को रद्द करना भी शामिल था.
हालांकि, इसके बाद तीनों आरोपियों ने इन शर्तों में ढील दिए जाने को लेकर पिछले साल अदालत के समक्ष याचिका दायर की थी.
इस पूरे मामले पर एमएमसी के अध्यक्ष शिवकुमार उत्तर ने कहा, ‘हमने बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्देश के बाद इनके लाइसेंस रद्द कर दिए थे लेकिन अब अदालत के ही निर्देश पर इनके लाइसेंस बहाल कर दिए हैं. इन तीनों आरोपियों के खिलाफ जांच जारी है, इन्हें नोटिस जारी किए गए हैं और इसके जवाब भी मिल गए हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘कोरोना के मद्देनजर लॉकडाउन की वजह से परिषद के सदस्यों की बैठक नहीं हो पाई. एक बार बैठक बुलाए जाने पर जांच की जाएगी और नियमों के अनुरूप फैसला लिया जाएगा.’