मद्रास उच्च न्यायालय ने पतंजलि को ‘कोरोनिल’ ट्रेडमार्क के इस्तेमाल से रोका

चेन्नई की कंपनी अरुद्रा इंजीनियरिंग लिमिटेड ने मद्रास हाईकोर्ट में एक याचिका दाख़िल कर कहा गया है कि ‘कोरोनिल’ साल 1993 से उसका ट्रेडमार्क है. यह कंपनी भारी मशीनों और कंटेनमेंट इकाइयों को साफ़ करने के लिए रसायन एवं सैनेटाइज़र बनाती है.

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हरिद्वार में कोरोनिल दवा लॉन्च करते योग गुरु रामदेव और आचार्य बालकृष्ण (फोटो: ट्विटर/पतंजलि आयुर्वेद)

चेन्नई की कंपनी अरुद्रा इंजीनियरिंग लिमिटेड ने मद्रास हाईकोर्ट में एक याचिका दाख़िल कर कहा गया है कि ‘कोरोनिल’ साल 1993 से उसका ट्रेडमार्क है. यह कंपनी भारी मशीनों और कंटेनमेंट इकाइयों को साफ़ करने के लिए रसायन एवं सैनेटाइज़र बनाती है.

हरिद्वार में कोरोनिल दवा लॉन्च करते योग गुरु रामदेव और आचार्य बालकृष्ण (फोटो: ट्विटर/पतंजलि आयुर्वेद)
हरिद्वार में कोरोनिल दवा लॉन्च करते योग गुरु रामदेव और आचार्य बालकृष्ण (फोटो: ट्विटर/पतंजलि आयुर्वेद)

चेन्नई: कोरोना वायरस के इलाज के रूप में पेश की गई बाबा रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड की दवा कोरोनिल को मद्रास उच्च न्यायालय से झटका लगा है और उसने कंपनी को ट्रेडमार्क ‘कोरोनिल’ का इस्तेमाल करने से रोक दिया है.

जस्टिस सीवी कार्तिकेयन ने चेन्नई की कंपनी अरुद्रा इंजीनियरिंग लिमिटेड की अर्जी पर 30 जुलाई तक के लिए यह अंतरिम आदेश जारी किया. अरुद्रा इंजीनियरिंग लिमिटेड ने कहा कि ‘कोरोनिल’ 1993 से उसका ट्रेडमार्क है.

कंपनी के अनुसार उसने 1993 में ‘कोरोनिल-213 एसपीएल’ और ‘कोरोनिल -92बी’ का रजिस्ट्रेशन कराया था और वह तब से उसका नवीकरण करा रही है.

यह कंपनी भारी मशीनों और निरूद्ध (कंटेनमेंट) इकाइयों को साफ करने के लिए रसायन एवं सैनेटाइजर बनाती है.

कंपनी ने कहा, ‘फिलहाल इस ट्रेडमार्क पर 2027 तक हमारा अधिकार वैध है.’

कंपनी ने यह भी दावा किया है कि इस ट्रेडमार्क के साथ उसकी वैश्विक उपस्थिति है और उसके ग्राहकों में भेल और इंडियन ऑयल भी शामिल हैं. अपने इस दावे की पुष्टि के लिए याचिकाकर्ता ने अदालत में अपने उत्पाद के पिछले पांच साल के बिल को भी पेश किया.

कंपनी की ओर से कहा गया, ‘पतंजलि द्वारा अपनी दवाओं के लिए अपनाए गए चिह्न स्पष्ट रूप से कंपनी (अरुद्रा) द्वारा रजिस्टर चिह्नों के समान हैं. हालांकि, कंपनी द्वारा बेचे गए उत्पाद अलग-अलग हैं, फिर भी समान ट्रेडमार्क का उपयोग अभी भी हमारी बौद्धिक संपदा अधिकार का उल्लंघन है.’

याचिकाकर्ता ने कहा, ‘पतंजलि को इस ट्रेडमार्क का इस्तेमाल जारी रखने की अनुमति सीधे तौर पर हमारी प्रतिष्ठा और अंतरराष्ट्रीय और घरेलू दोनों बाजारों में 26 से अधिक वर्षों के लिए बनी हमारी अच्छी छवि को प्रभावित करेगा.’

पतंजलि द्वारा कोरोनिल पेश किए जाने के बाद आयुष मंत्रालय ने एक जुलाई को कहा था कि कंपनी प्रतिरोधक वर्धक के रूप में यह दवा बेच सकती है न कि कोविड-19 के इलाज के लिए.

बीते 23 जून को बाबा रामदेव ने कोरोनिल नामक दवा लांच की थी और इससे कोरोना वायरस का शत-प्रतिशत इलाज होने का दावा किया था.

हरिद्वार स्थित पतंजलि योगपीठ में संवाददाताओं से रामदेव ने कहा था, ‘यह दवाई शत-प्रतिशत (कोविड-19) मरीजों को फायदा पहुंचा रही है. 100 मरीजों पर नियंत्रित क्लीनिकल ट्रायल किया गया, जिसमें तीन दिन के अंदर 69 प्रतिशत और चार दिन के अंदर शत-प्रतिशत मरीज ठीक हो गये और उनकी जांच रिपोर्ट नेगेटिव आई.’

बहरहाल, इसके कुछ ही घंटे बाद आयुष मंत्रालय ने पतंजलि को इस औषधि में मौजूद विभिन्न जड़ी-बूटियों की मात्रा एवं अन्य ब्योरा यथाशीघ्र उपलब्ध कराने को कहा था. मंत्रालय ने मामले की जांच-पड़ताल होने तक कंपनी को इस उत्पाद का प्रचार भी बंद करने का आदेश दिया था.

इसके बाद बीते 27 जून को चंडीगढ़ जिला अदालत में रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के खिलाफ मिलावटी दवा और धोखाधड़ी सें संबंधित आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था.

इससे पहले बीते 26 जून को जयपुर के ज्योतिनगर थाने में आईपीसी की धारा 420 सहित विभिन्न धाराओं के तहत एक एफआईआर दर्ज की गई थी.

इसमें भ्रामक प्रचार के आरोप में रामदेव और बालकृष्ण के अलावा वैज्ञानिक अनुराग वार्ष्णेय, इस प्रोजेक्ट में साझीदार जयपुर की निम्स यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष डॉ. बलबीर सिंह तोमर और निदेशक डॉ. अनुराग तोमर को आरोपी बनाया गया है.

इसके बाद इस महीने की शुरुआत में बाबा रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के सीईओ आचार्य बालकृष्ण ने कहा था कि पतंजलि ने कभी नहीं कहा था कि कोरोनिल दवा से कोरोना वायरस का इलाज हो सकता है.

कंपनी ने अपनी सफाई में ‘कोरोना किट’ नामक किसी भी दवा का उत्पादन करने और उसे घातक वायरस के खिलाफ इलाज के रूप में प्रचारित करने से भी इनकार किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)