सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं को पांच जजों की पीठ द्वारा अयोध्या भूमि विवाद मामले में दिए गए फैसले को लागू करने से रोकने की कोशिश के रूप में देखा. कोर्ट ने एक महीने के भीतर जुर्माने की राशि जमा करने को कहा है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल पर खुदाई के दौरान मिलीं कलाकृतियों को संरक्षित करने के लिए दायर दो जनहित याचिकाएं सोमवार को खारिज कर दीं.
जस्टिस अरुण मिश्रा, बीआर गवई और कृष्ण मुरारी की पीठ ने इन याचिकाओं को गंभीरता से विचार करने योग्य नहीं पाया और इसे अयोध्या भूमि विवाद मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को लागू करने से रोकने की कोशिश के रूप में देखा.
पीठ ने याचिकाकर्ताओं पर एक-एक लाख रुपये का अर्थदंड लगाते हुए उन्हें एक महीने के भीतर यह राशि जमा करने का निर्देश दिया है.
कोर्ट ने कहा कि पांच सदस्यीय पीठ इस मामले में अपना फैसला सुना चुकी है और यह इन जनहित याचिकाओं के माध्यम से इस निर्णय से आगे निकलने का प्रयास है.
याचिकाकर्ताओं की ओर पेश वकील ने कहा कि राम जन्मभूमि न्यास ने भी स्वीकार किया है कि इस क्षेत्र में ऐसी अनेक कलाकृतियां हैं, जिन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है.
पीठ ने याचिकाकर्ताओं से जानना चाहा कि उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत शीर्ष अदालत में याचिका क्यों दायर की.
पीठ ने कहा, ‘आपको इस तरह की तुच्छ याचिका दायर करना बंद करना चाहिए. इस तरह की याचिका से आपका तात्पर्य क्या है? क्या आप यह कहना चाहते हैं कि कानून का शासन नहीं है और इस न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ के फैसले का कोई पालन नहीं करेगा.’
केंद्र की ओर से पेश सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि न्यायालय को याचिकाकर्ता पर अर्थदंड लगाने के बारे में विचार करना चाहिए.
पीठ ने कहा कि प्रत्येक याचिकाकर्ता पर एक-एक लाख रुपये का अर्थदंड लगाया जाता है जिसका भुगतान एक महीने के भीतर किया जाना चाहिए.
ये याचिकाएं सतीश चिंधूजी शंभार्कर और डॉ. आम्बेडकर फाउंडेशन ने दायर की थीं. इनमें इलाहाबाद उच्च न्यायालाय में सुनवाई के दौरान अदालत की निगरानी में हुई खुदाई के समय मिलीं कलाकृतियों को संरक्षित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.
इन याचिकाओं में नए राम मंदिर के लिए नींव की खुदाई के दौरान मिलने वाली कलाकृतियों को भी संरक्षित करने तथा यह काम पुरातत्व सर्वेक्षण की निगरानी में कराने का अनुरोध किया गया था.
लाइव लॉ के मुताबिक याचिकाकर्ताओं ने इस तथ्य पर भी ध्यान आकर्षित किया कि बिना किसी वैज्ञानिक शोध या विश्लेषण के बरामद कलाकृतियों को हिंदू संस्कृति और धर्म के अवशेषों के रूप में पेश किया जा रहा है.
याचिकाकर्ताओं ने कहा, ‘ये कलाकृतियां प्राचीन भारतीय संस्कृतियों के अवशेष हैं, इसलिए इन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए और इस पर वैज्ञानिक एवं पुरातात्विक शोध किया जाना चाहिए.’
इसके अलावा यह आरोप लगाया गया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के महानिदेशक की देखरेख में खुदाई और समतल करने की गतिविधियां नहीं की जा रही हैं, जो कि प्राचीन स्थलों और स्मारकों को सुरक्षित और संरक्षित करने वाला विभाग है.
याचिकाकर्ताओं ने यह भी दावा किया कि खुदाई और समतल करने के दौरान स्थानीय अधिकारी और सक्षम एएसआई अधिकारी भी साइट पर मौजूद नहीं रहते हैं, इसलिए पता लगाई गईं कलाकृतियों और मूर्तियों को बरामद नहीं किया जा रहा है.
अपनी दलीलों पुख्ता करने के लिए उन्होंने कहा कि हैदराबाद के दलित अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष ने दावा किया था कि इन कलाकृतियों का प्राचीन बौद्ध संस्कृति और साहित्य से गहरा संबंध है. उन्होंने कहा कि इसे लेकर सम्यक विश्व संघ ने एएसआई के डीजी को पत्र लिखकर कहा था कि इन्हें वे अपने कस्टडी में लें और इसको संरक्षित करें.
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्होंने इस मामले को लेकर एएसआई के डीजी और अन्य स्थानीय विभागों को पत्र लिखकर गुजारिश की थी लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया.
निर्माण प्रक्रिया को रोकने के प्रयास के किसी भी विचार से इनकार करते हुए याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया जाना चाहिए कि वे राम मंदिर बनाने के लिए की जा रही खुदाई और उत्खनन का वीडियो बनाएं.
शीर्ष अदालत ने पिछले साल नौ नवंबर को अपने ऐतिहासिक फैसले में अयोध्या में राम जन्म भूमि स्थल पर राम मंदिर निर्माण के लिए एक न्यास गठित करने का निर्णय दिया था. न्यायालय ने इसके साथ ही मस्जिद के लिए पांच एकड़ भूमि आवंटित करने का निर्देश भी सरकार को दिया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)