पूर्व जज बीएस चौहान की अगुवाई वाली इस समिति को दो महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपनी होगी. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि वह इस मामले में जांच के लिए यूपी पुलिस द्वारा बनाई गई एसआईटी की निगरानी नहीं करेगा.
नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने विकास दुबे एनकाउंटर मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता में समिति गठित की है. ये समिति मामले के विभिन्न पहलुओं की जांच करेगी.
जस्टिस चौहान के नाम का सुझाव उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा दिया गया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया.
मेहता ने मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अगुवाई वाली पीठ को बताया कि जस्टिस चौहान समिति का हिस्सा होने के लिए तैयार हो गए हैं.
लाइव लॉ के मुताबिक इसके अलावा सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक केएल गुप्ता को भी समिति में शामिल करने को कहा, जिसे न्यायालय ने स्वीकार कर लिया.
मेहता ने कहा कि आयोग यह भी जांच करेगा कि किस तरह विकास दुबे को करीब 65 मामलों में जमानत/पैरोल दी गई थी. जस्टिस बोबडे ने कहा कि यह काफी महत्वपूर्ण कि इसकी जांच की जाए कि किस तरह दुबे को रिहा किया गया था.
तुषार मेहता द्वारा सुझाए गए नामों को शामिल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को निर्देश दिया कि एक हफ्ते के भीतर जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी वे अपना काम शुरू कर दें.
कोर्ट ने कहा कि समिति मामले की जांच कर दो महीने के भीतर इसकी रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय में पेश करेगी.
कोर्ट ने यह निर्देश भी दिया कि केंद्र द्वारा सचिव स्तर के अधिकारी मुहैया कराए जाएंगे या फिर आयोग के अध्यक्ष द्वारा जैसा निर्देश दिया जाता है, वैसा करना होगा.
कोर्ट ने याचिकाकर्ता घनश्याम उपाध्याय के सुझावों को शामिल नहीं किया. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर और आरएम लोढ़ा तथा पूर्व जज संतोष हेगड़े, अनिल दवे, कुरियन जोसेफ, एफएमआई कलीफुल्ला, एमवाई इकबाल, एके पटना, विक्रमजीत सिंह, केएसपी राधाकृष्णनन और एचएस गोखले में से किसी को चुनने की मांग की थी.
इस सूची में हाल ही में रिटायर हुए जस्टिस दीपक गुप्ता और आर. भानुमति का भी नाम शामिल था. जस्टिस चौहान की नियुक्ति की पैरवी करते हुए सीजेआई ने याचिकाकर्ता से कहा, ‘आपको जस्टिस चौहान की अगुवाई में समिति के गठन को लेकर कमी नहीं निकालनी चाहिए.’
याचिकाकर्ता ने स्पष्ट किया कि वे जस्टिस चौहान की योग्यता पर सवाल नहीं उठा रहे हैं, बल्कि समिति में हाईकोर्ट से भी एक जज शामिल करने की मांग कर रहे थे.
पीठ ने यह भी कहा कि आयोग का मुख्यालय कानपुर में स्थिति होगा. हालांकि याचिकाकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश में रहकर आयोग द्वारा कार्य करने को लेकर आपत्ति जाहिर की, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया.
इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में जांच के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा बनाई गई एसआईटी की निगरानी वो नहीं करेगा.
मालूम हो कि दो जुलाई की देर रात उत्तर प्रदेश में कानपुर के चौबेपुर थानाक्षेत्र के बिकरू गांव में पुलिस की एक टीम गैंगस्टर विकास दुबे को पकड़ने गई थी, तब विकास और उसके साथियों ने पुलिस पर हमला कर दिया था.
इस मुठभेड़ में डिप्टी एसपी सहित आठ पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी और दुबे फरार हो गया था. बाद में विकास दुबे को नौ जुलाई को मध्य प्रदेश के उज्जैन से गिरफ्तार किया गया.
उत्तर प्रदेश पुलिस के मुताबिक, अगले दिन 10 जुलाई को स्पेशल टास्क फोर्स दुबे को अपने साथ कानपुर ला रही थी कि पुलिस दल की एक गाड़ी पलट गई.
इस दौरान विकास दुबे ने भागने की कोशिश की तो पुलिस को गोली चलानी पड़ी, जिसके बाद दुबे को अस्पताल ले जाया गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया.
इस कथित मुठभेड़ में दुबे के मारे जाने से पहले उसके सभी पांच कथित सहयोगियों को अलग-अलग मुठभेड़ में मार गिराया गया था.