केंद्र द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर किए गए हलफनामे में कहा गया है कि मौजूदा इमारत में सुरक्षा संबंधी कई समस्याएं हैं और साल 2026 में सांसदों की संख्या बढ़ने के बाद अतिरिक्त जगह की ज़रूरत होगी इसलिए इस प्रोजेक्ट की ज़रूरत है.
नई दिल्ली: मोदी सरकार की बेहद महत्वाकांक्षी और विवादित सेंट्रल विस्टा परियोजना को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिकाओं पर केंद्र सरकार ने कहा है कि मौजूदा और भविष्य की जरूरतों को देखते हुए यह प्रोजेक्ट महत्वपूर्ण है.
उन्होंने जवाबी हलफनामा दायर कर कहा कि संसद, मंत्रालयों और विभागों की वर्तमान और आने वाले समय की जरूरतों और बेहतर सार्वजनिक तथा पार्किंग सुविधाएं को पूरा करने के लिए सेंट्रल विस्टा परियोजना की परिकल्पना की गई थी.
अग्नि सुरक्षा, ध्वनि संबंधी चिंताओं का उल्लेख करते हुए सरकार ने कहा कि करीब एक शताब्दी पहले बने इन निर्माणों की स्थिति बहुत खराब हो गई है, इसलिए इसे पुनर्विकास की जरूरत है.
लाइव लॉ के मुताबिक, केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया, ‘अग्नि सुरक्षा एक बड़ी चिंता है, क्योंकि इस बिल्डिंग को मौजूदा अग्नि नियमों के हिसाब से डिजाइन नहीं किया गया था. इस अलावा अन्य कई सुरक्षा संबंधी चिंताएं हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘संसद का ऑडियो-विजुअल सिस्टम भी काफी पुराना हो गया है. हॉल में ध्वनि संबंधी व्यवस्था प्रभावी नहीं है. इलेक्ट्रिकल, एयर कंडीशनिंग और प्लंबिंग सिस्टम अपर्याप्त, अक्षम, संचालित और रखरखाव में काफी महंगे हैं. चूंकि ये सारे सिस्टम मूल डिजाइन का हिस्सा नहीं थे और इन्हें बाद में लगाया गया है, इसलिए कार्यक्षमता अच्छी नहीं है.’
सीपीडब्ल्यूडी ने कहा कि चूंकि आने वाले साल 2026 के बाद लोकसभा में सीटों की संख्या बढ़ने वाली है, इसलिए संसद के दोनों सदनों में सभी सीट भरे होने के कारण अतिरिक्ट सीटों को जोड़ने की जगह खाली नहीं है.
उन्होंने कहा कि सदन में बैठने की व्यवस्था तंग है, दूसरी पंक्ति के बाद कोई डेस्क नहीं हैं और आवाजाही प्रभावित होती है.
विभाग ने कहा, ‘इस प्रोजेक्ट से न सिर्फ अतिरिक्त जगह की जरूरतें पूरी होगीं बल्कि एक जीवंत लोकतंत्र के प्रतीक के रूप में मौजूदा प्रतिष्ठित इमारत को भी बनाए रखा जाएगा.’
सीपीडब्ल्यूडी ने कहा, ‘पूर्ण स्वदेशी तकनीक, ज्ञान और विशेषज्ञता के साथ बना देश का नया संसद भवन पूरी दुनिया के लिए एक प्रदर्शन होगा. इस भवन का निर्माण बेहतर संरचनात्मक व्यवस्था के साथ किया जाएगा, जो सदियों तक चलेगा. इसलिए, यह परियोजना राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बन जाएगी और नागरिकों को भारत की लोकतांत्रिक परंपराओं में भाग लेने के लिए प्रेरित करेगी.’
हलफनामे में उन आरोपों को खारिज कर दिया गया है कि सेंट्रल विस्टा समिति पारदर्शी नहीं है क्योंकि सभी सदस्यों की सहमति के बिना ही बैठक की गई थी.
उन्होंने कहा कि महामारी के कारण कुछ सदस्य बैठक में शामिल नहीं हो पाए थे. लेकिन यदि किसी के विचार भिन्न या विपरीत थे, तो उन्हें अपनी बात रखने की पूरी आजादी है.
कोर्ट राजीव सूरी द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें करीब 20,000 करोड़ रुपये के लागत वाले सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के लिए निर्धारित लैंड यूज को चुनौती दी गई है.
इसमें आरोप लगाया है कि इस काम के लिए लुटियंस जोन की 86 एकड़ भूमि इस्तेमाल होने वाली है और इसके चलते लोगों के खुले में घूमने का क्षेत्र और हरियाली खत्म हो जाएगी.
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय की विशेष मूल्यांकन समिति (ईएसी) ने 22 अप्रैल को मौजूदा संसद भवन के विस्तार और नवीकरण को पर्यावरण मंजूरी देने की सिफारिश की थी.
हालांकि इस योजना का विभिन्न स्तरों पर विरोध हो रहा है. देश के 60 पूर्व नौकरशाहों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर केंद्र की सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना पर चिंता व्यक्त की थी.
उन्होंने कहा कि ऐसे वक्त में जब जन स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने के लिए भारी भरकम धनराशि की जरूरत है तब यह कदम ‘गैर-जिम्मेदारी’ भरा है.
पूर्व नौकरशाहों ने कहा कि संसद में इस पर कोई बहस अथवा चर्चा नहीं हुई. पत्र में कहा गया है कि कंपनी का चयन और इसकी प्रक्रियाओं ने बहुत सारे प्रश्न खड़े किए हैं जिनका उत्तर नहीं मिला है.
लेकिन सरकार की दलील है कि वे सभी तय प्रक्रियाओं का पालन कर रहे हैं और इस योजना को बनाते वक्त कई लोगों से राय-सलाह की गई है.
इस मामले की अगली सुनवाई 23 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में होगी.