संविधान के अनुच्छेद 164 (1ए) के मुताबिक किसी राज्य में मंत्रिपरिषद में कुल मंत्रियों की संख्या मुख्यमंत्री समेत उस राज्य के विधानसभा सदस्यों की कुल संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती. मध्य प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने अपनी याचिका में कहा है कि राज्य में इसका उल्लंघन हुआ है.
नई दिल्ली: शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा 28 मंत्रियों की नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस नेता की उस आपत्ति पर संज्ञान लिया कि यह संविधान के तहत तय मंत्रियों की अधिकतम सीमा का उल्लंघन है.
सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना एवं वी. रामासुब्रमणियन की पीठ ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार को नोटिस जारी कर विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एनपी प्रजापति की याचिका पर उनका जवाब मांगा.
प्रजापति की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, विवेक तनखा और अधिवक्ता वरुण तनखा तथा सुमीर सोढ़ी ने कहा कि मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल में 28 मंत्रियों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 164 (1ए) का स्पष्ट उल्लंघन है.
पीठ ने कहा कि वह नोटिस जारी कर रही है और इस मामले की सुनवाई करेगी.
संविधान के अनुच्छेद 164 (1ए) के मुताबिक किसी राज्य में मंत्रिपरिषद में कुल मंत्रियों की संख्या मुख्यमंत्री समेत उस राज्य के विधानसभा सदस्यों की कुल संख्या के 15 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकती.
मुख्यमंत्री चौहान ने दो जुलाई को अपने मंत्रिमंडल का बड़ा विस्तार किया था और 28 नए सदस्यों को इसमें शामिल किया था जिनमें से एक दर्जन पूर्व कांग्रेसी विधायक थे, जिनके विद्रोह की वजह से प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिरी थी.
दरअसल, राज्यसभा टिकट न मिलने से नाराज होकर 10 मार्च को कांग्रेस इस्तीफा देने के बाद सिंधिया ने 11 मार्च को भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी.
इसके बाद 22 कांग्रेस विधायकों के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के कारण ही बीते 20 मार्च को प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिर गई थी.
इसके बाद शिवराज सिंह चौहान ने 23 मार्च को राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी और 21 अप्रैल को उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में पांच कैबिनेट मंत्रियों को शामिल किया था.
प्रजापति ने कहा कि 28 मंत्रियों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 164 (1ए) का स्पष्ट उल्लंघन है जिसके तहत मुख्यमंत्री समेत मंत्रिपरिषद के सदस्यों की संख्या विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या के 15 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकती.
उन्होंने कहा कि 28 मंत्रियों की नियुक्ति के साथ ही मंत्रिपरिषद के कुल सदस्यों की संख्या मुख्यमंत्री समेत 34 हो गई है.
प्रजापति ने याचिका में कहा, ‘हालांकि मौजूदा मामलों में फिलहाल मध्य प्रदेश विधानसभा में सिर्फ 206 सदस्य हैं, प्रतिवादी (राज्यपाल, शिवराज सिंह चौहान और मध्य प्रदेश सरकार) सरकार मंत्रिपरिषद में 30.9/31 सदस्यों से ज्यादा की नियुक्ति नहीं कर सकते.’
राज्य की गोटेगांव विधानसभा सीट से विधायक प्रजापति ने अपनी याचिका में एक वैधानिक सवाल उठाया है कि क्या मंत्रिपरिषद के कुल सदस्यों की अधिकतम सीमा विधानसभा में सीटों की कुल संख्या से तय होगी या विधानसभा में सदस्यों की मौजूदा संख्या से.
याचिका में कहा गया, ‘अगर सीटों की संख्या निर्णायक होगी तो 15 प्रतिशत के हिसाब से मंत्रिपरिषद में अधिकतम सीमा 34.5 होगी. अगर यह विधानसभा के मौजूदा सदस्यों की संख्या के अधिकतम 15 प्रतिशत से निर्धारित होगी तो मंत्रिपरिषद में अधिकतम 30.9/31 सदस्य हो सकते हैं.’
प्रजापति ने कहा कि निर्विवाद स्थिति है कि दो विधायकों के निधन और 22 विधायकों के विधानसभा से इस्तीफा देने के बाद विधानसभा में अभी 206 सदस्य हैं और 24 सीटें खाली हैं जिन पर नए सिरे से चुनाव होगा.
प्रजापति की इस याचिका पर न्यायालय ने शिवराज सिंह चौहान और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)