मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि क़ानूनी बिरादरी के लोग नियमों से बंधे हुए हैं कि वे क़ानून की प्रैक्टिस से जुड़े कार्य ही कर सकते हैं और उन्हें किसी अन्य माध्यम से आजीविका कमाने का विकल्प प्राप्त नहीं हैं.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बीते बुधवार को महामारी के कारण वकीलों की आजीविका के नुकसान के मामले पर संज्ञान लिया और यह जानने की कोशिश की कि उनकी मदद के लिए एक विशेष फंड क्यों नहीं बनाया जाना चाहिए.
भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्थिति को ‘अभूतपूर्व’ करार दिया और केंद्र तथा बार काउंसिल ऑफ इंडिया को नोटिस जारी किया.
पीठ ने कहा, ‘महामारी ने नागरिकों के जीवन को भारी नुकसान पहुंचाया है और कानूनी समुदाय पूरा चरमरा गया है.’
उन्होंने कहा कि कानूनी बिरादरी के लोग नियमों से बंधे हुए हैं कि वे कानूनी की प्रैक्टिस से जुड़े कार्य ही कर सकते हैं और उन्हें किसी अन्य माध्यम से आजीविका कमाने का विकल्प प्राप्त नहीं हैं.
लाइव लॉ के मुताबिक, कोर्ट ने केंद्र और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के अलावा राज्य बार काउंसिल, सभी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल और हाईकोर्ट बार एसोसिएशन को नोटिस जारी कर दो हफ्ते में जवाब मांगा है.
बीसीआई ने भी एक याचिका दायर कर कहा है कि उनके पास फंड नहीं है कि वे वकीलों की मदद कर पाएं.
उन्होंने मांग की है कि सरकार एक विशेष आर्थिक मदद पैकेज की घोषणा करे, जिसके जरिये सभी राज्यों के बार काउंसिल में नामांकित वकीलों को तीन लाख तक बिना ब्याज के लोन दिया जाए और कोर्ट का कामकाज सुचारू ढंग से चालू होने के बार महीना-वार किस्त के रूप में कम से कम 12 महीने में उनसे लोन वापस करने को कहा जाए.
वकील एसएन भट्ट द्वारा दायर याचिका में मांग किया गया है कि भारत सरकार एवं संबंधित राज्य सरकारों को ये निर्देश दिया जाए कि जरूरतमंद वकीलों के खाते में पैसा डालें, जिसकी जानकारी संबंधित बार एसोसिएशन से प्राप्त की जा सकती है.
याचिका में कहा गया है कि मार्च 2020 से देशव्यापी लॉकडाउन के चलते सभी कोर्ट और ट्रिब्यूनल बंद होने के चलते वकीलों की कमाई का एकमात्र जरिया छिन गया है. उन्होंने कहा कि ज्यादातर वकीलों, खासकर युवाओं, के पास बिल्कुल भी बचत नहीं है और वे अपनी आजीविका के लिए कोर्ट के कामकाज पर ही निर्भर हैं.
याचिकाकर्ता ने कहा, ‘स्थिति इतनी खराब है कि यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कई लोग भुगमरी का सामना कर रहे हैं और उन्हें तत्काल आर्थिक मदद की जरूरत है.’
मामले में नोटिस जारी करते हुए सीजेआई बोबडे ने कहा कि मौजूदा परिस्थितियों और मेडिकल सलाह की वजह से न्यायालयों को पुन: आरंभ अभी नहीं किया जा सकता है क्योंकि इससे जजों, वकीलों और कोर्ट के स्टाफ के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है.
पीठ ने कहा कि ऐसे संस्थानों की वित्तीय सहायता के मानदंडों को निर्धारित करना महत्वपूर्ण है.