कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा केंद्र सरकार ने विवादित पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना के मसौदे को क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित करने का निर्देश दिया गया था. केंद्र ने इसका अनुपालन करने से मना कर दिया है, जिस पर हाईकोर्ट ने नाराज़गी जताई है.
नई दिल्ली: कर्नाटक हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार की इस दलील पर गहरी नाराजगी जाहिर की है कि वह विवादित पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना- 2020 के मसौदे को क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित नहीं कर सकती है.
अब कोर्ट पांच अगस्त को होने वाली सुनवाई पर इस मांग पर फैसला लेगी कि अधिसूचना पर रोक लगाई जाए या नहीं. पर्यावरण कार्यकर्ता और विशेषज्ञ इस नए कानून को पर्यावरण विरोधी बताकर इसका विरोध कर रहे हैं.
लाइव लॉ के मुताबिक, मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और जस्टिस एम. नागाप्रसन्ना ने कहा, ‘प्रथमदृष्टया हम सरकार की इस दलील से सहमत नहीं हैं कि राजभाषा अधिनियम के तहत उनके हाथ बंधे हुए हैं और वे इस अधिसूचना को राज्यों की राजभाषा में प्रकाशित नहीं कर सकते हैं.’
इससे पहले कोर्ट ने इस अधिसूचना को सभी क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित कर इसका खूब प्रचार करने को कहा था.
हफपोस्ट के मुताबिक कोर्ट ने कहा, ‘हम एकदम स्पष्ट करते हैं कि यदि हम क्षेत्रीय भाषाओं में पर्याप्त प्रचार से संतुष्ट नहीं हुए और इसकी समयसीमा नहीं बढ़ाई जाती है, तो हम इस नोटिफिकेशन पर रोक लगाने पर विचार करेंगे.’
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए वकील ने कहा, ‘मंत्रालय द्वारा जारी की गई अधिसूचना राजभाषा अधिनियम के अंतर्गत है. नियम के मुताबिक इसे भारत के राजपत्र में हिंदी और अंग्रेजी में प्रकाशित किया गया है. ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो हमारे मंत्रालय को इसे क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित करने के लिए कहता हो.’
उन्होंने आगे कहा, ‘भारत के संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के तहत केंद्र की राजभाषा हिंदी है. जहां तक अधिसूचना को राजपत्र में प्रकाशित करने का सवाल है तो यह सिर्फ हिंदी और अंग्रेजी है.’
इस पर पीठ ने कहा, ‘यदि केंद्र सरकार महामारी के दौरान ऐसे तकनीकी पहलुओं का सहारा लेगी तो हम कहेंगे कि फिर इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए.’
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि केंद्र द्वारा लिया गया ये स्टैंड, इस कोर्ट के सामने पहले उनके द्वारा पेश की गईं दलीलों से विपरीत है.
उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत बने नियमों में ये नहीं कहा गया है कि अधिसूचना को सिर्फ हिंदी और अंग्रेजी में प्रकाशित किया जाए.
ये पूछे जाने पर कि क्या इससे पहले कोई अधिसूचना क्षेत्रीय भाषा में प्रकाशित हुई है, केंद्र के वकील ने कहा, ‘केवल तटीय विनियमन क्षेत्र के मामले में नियमों को नौ तटीय भाषा में प्रकाशित किया गया था ताकि सभी स्टेकहोल्डर्स इसके प्रभावों को समझ सकें, लेकिन ये ड्राफ्ट से पहले का था, न कि जिसे आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित किया गया था.’
उन्होंने कहा कि मंत्रालय ने राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन अथॉरिटीज को निर्देश दिया है कि वे ड्राफ्ट अधिसूचना को क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित करें और इसका प्रचार-प्रसार करें.
हालांकि हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार ने ऐसा कोई रिकॉर्ड पेश नहीं किया है जो ये बता सके कि उनके द्वारा दिया गया निर्देश लागू किया गया है.
वहीं दूसरी तरफ इस अधिसूचना पर आपत्तियां दायर करने की समयसीमा सिर्फ 11 अगस्त तक ही है, जो कि काफी नजदीक आ गई है.
16 जुलाई के अपने एक आदेश में कोर्ट ने कहा था कि भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण नियमों के तहत ये फैसला लिया है कि वे ये सुनिश्चित करेंगे कि राज्यों की स्थानीय भाषाओं में इस अधिसूचना को प्रकाशित किया जाएगा, ताकि लोग अपनी आपत्तियां भेज सकें.
मालूम हो कि कर्नाटक हाईकोर्ट के अलावा दिल्ली हाईकोर्ट ने भी केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वे इस पर्यावरण अधिसूचना को संविधान की आठवीं अनुसूची में दी गईं 22 भाषाओं में प्रकाशित करें और लोगों तक इसकी जानकारी दी जाए, ताकि सभी भाषाओं के लोग अपनी राय इस पर भेज सकें.
मालूम हो कि देश में विभिन्न स्तरों पर मोदी सरकार के इस विवादित पर्यावरण कानून का विरोध हो रहा है. दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर इस अधिसूचना पर जनता से सुझाव प्राप्त करने की समयसीमा बढ़ाकर 11 अगस्त 2020 की गई है.
इससे पहले केंद्र के पर्यावरण मंत्रालय ने ईआईए नोटिफिकेशन, 2020 पर जनता से आपत्तियां या सुझाव प्राप्त करने की आखिरी तारीख 30 जून 2020 निर्धारित की थी.
इस विवादास्पद अधिसूचना में कुछ उद्योगों को सार्वजनिक सुनवाई से छूट देना, उद्योगों को सालाना दो अनुपालन रिपोर्ट के बजाय एक पेश करने की अनुमति देना और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में लंबे समय के लिए खनन परियोजनाओं को मंजूरी देने जैसे प्रावधान शामिल हैं.