‘थियेटर ओलंपिक्स’ ग्रीस का एक एनजीओ है जिसके सिर्फ 18 सदस्य हैं. जैसे भारत में कुछ लोगों के नाम दारोगा पांडे या सिपाही सिंह होते हैं लेकिन वे न दारोगा होते हैं और न सिपाही. उसी तरह ‘थियेटर ओलंपिक्स’ नाम की एक संस्था है जो ओलंपिक के नाम का इस्तेमाल कर रही है.
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, दिल्ली के प्रांगण में 12 जुलाई को शाम चार बजे के करीब एक अजीबोगरीब प्रेस कांफ्रेस की तैयारी हो रही थी. जो दृश्य था उससे लग रहा था कि किसी की शादी हो रही है. शहनाई बज रही थी. (जैसा कि शादियों में होता है प्रेस कांफ्रेंस में नहीं).
फिर केरल के नादस्वरम वाले कलाकार शरीर पर सिर्फ दक्षिण भारतीय धोती पहने, कुछ वाद्ययंत्र बजा रहे थे. उनके पीछे चल रहे थे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) के अध्यक्ष रतन थियम, केंद्रीय संस्कृति-पर्यटन राज्यमंत्री महेश शर्मा और एनएसडी के निदेशक वामन केंद्रे.
माहौल शादी का था लेकिन ये शादी नहीं थी. ये एक प्रेस कांफ्रेंस में था जिसमें महेश शर्मा ने घोषणा की कि अगले साल यानी 2018 में (17 फरवरी से 8 अप्रैल तक) राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में थियेटर ओलंपिक्स होगा.
इसमें 500 सौ नाटक और 700 एंबिएंस प्रस्तुतियां होंगी. ये आयोजन भारत के पंद्रह शहरों में होगा? पर इस प्रस्तावित आयोजन संबंधिक कई प्रश्न हैं जिनको सिलसिलेवार समझना होगा और जिनके जवाब प्रेस कांफ्रेंस में नहीं मिले.
- महेश शर्मा के बयान से लग रहा था कि भारत में ओलंपिक खेलों जैसा कोई अंतरराष्ट्रीय आयोजन होगा. लेकिन ऐसा है नहीं. वास्तविकता यह है कि ‘थियेटर ओलंपिक्स’ ग्रीस स्थित एक अंतराष्ट्रीय एनजीओ (यानी नॉन प्रोफिट ऑर्गनाइजेशन) है जिसके सिर्फ 18 सदस्य हैं. जैसे भारत में कुछ लोगों के नाम दारोगा पांडे या सिपाही सिंह होते हैं लेकिन वे न दारोगा होते हैं और न सिपाही. उसी तरह ‘थियेटर ओलंपिक्स’ नाम की एक संस्था है जो ओलंपिक के नाम का इस्तेमाल कर रही है. विकीपीडिया में दी गई जानकारी के मुताबिक भारत से सिर्फ रतन थियम (जो एनएसडी के अध्यक्ष भी हैं) इस एनजीओ के संदस्य हैं. थियम निजी रूप से इसके सदस्य हैं एनएसडी के प्रतिनिधि के रूप में नहीं. यानी थियेटर ओलंपिक्स दुनिया के अलग देशों के 18 रंगकर्मियो की सदस्यता वाली संस्था है और भारत सरकार या किसी देश की सरकार का उससे कोई लेना-देना नहीं है. इसलिए प्रश्न ये उठता है कि भारत सरकार के एक मंत्री विदेशी एनजीओ के आयोजन के बारे इतने उत्साह से प्रेस कांफ्रेंस क्यों कर रहे थे?
- पहला थियेटर ओलंपिक्स 1995 में ग्रीस के डेल्फी शहर में शुरू हुआ और उसके सात देशों की नाट्य प्रस्तुतियां हुईं. पिछला थियेटर ओलंपिक्स पोलैंड के 2016 में हुआ और उसमे 18 देशों के नाटक हुए और उसमें 80 नाटकों के अलावा 200 अन्य कार्यक्रम हुए. (इंटरनेट पर इसके बारे में पूरी जानकारी है.)
- प्रेस कांफ्रेंस मे जो जानकारी दी गई उसके मुताबिक भारत होने जा रहे थियेटर ओलंपिक्स में 500 नाटक होंगे और 700 अन्य प्रस्तुतियां होंगी. ये आयोजन देश के पंद्रह शहरों में होगा. इसमें पचास से अधिक विदेशी नाटक होंगे. लेकिन इस आयोजन में कितना खर्च होगा इसका जवाब सवाल पूछने पर भी नहीं मिला. न मंत्री ने दिया और न एनएसडी ने. पर मोटा-मोटी अनुमान लगाएं तो ये खर्चा कम से कम अस्सी से सौ करोड़ के बीच होगा. आखिर पंद्रह शहरों में होने वाले और इक्यावन दिनों तक चलने वाले इस आयोजन में इससे कम खर्च तो नहीं होगा. ज्यादा भी हो सकता है. किन पंद्रह शहरों में ये आयोजन होगा इसका भी जवाब नहीं मिला. ये रहस्य है.
- वैसे इतना बड़ा आयोजन करने में सिद्धांतत: कोई हर्ज नहीं है. लेकिन ये सब भारत रंग महोत्सव (भारंगम) के तहत क्यों नहीं हो रहा जो 19 साल पुराना भारतीय ब्रांड है? आखिर ‘थियेटर ओलंपिक्स’ विदेशी ब्रांड है. वो भी गैरसरकारी. जबकि भारंगम भारत सरकार का अंतरराष्ट्रीय ब्रांड है. इसमें विदेशी नाटक भी होते हैं.
- वामन केंद्रे ने जो कहा उसके मुताबिक भारगंम (भारत रंग महोत्सव) को इसमें यानी थियेटर ओलंपिक्स में मिला दिया गया है. क्या इसका मतलब ये निकाला जाए कि अगले साल भारंगम नही होगा? देशी ब्रांड को छोड़कर विदेशी ब्रांड क्यों? ‘मेक इन इंडिया’ का क्या हुआ? सवाल ये भी है कि क्या ‘थियेटर ओलंपिक्स’ नाम के विदेशी एनजीओ को धन दिया जाएगा? आखिर वे मुफ्त में अपने नाम का इस्तेमाल क्यों करने देंगे? संस्कृति मंत्रालय किस खुशी में शहनाई बजा-बजा के ऐसा कर रहा है?
- विकीपीडिया में दी गई जानकारी के मुताबिक जो ‘थियेटर ओलंपिक्स’ के आयोजन का जो अतिथि देश होता है उसका सदस्य (य़ानी ‘थियेटर ओलंपिक्स’ नाम के एनजीओ के अठारह सदस्यों में से एक) अपने यहां के आयोजन का क्रिएटिव डाइरेक्टर होता है. इस लिहाज के रतन थियम भारत में होने वाले थियेटर ओलंपिक्स इसके क्रिएटिव डाइरेक्टर होंगे. हर क्रिएटिव डाइरेक्टर की फीस होती है. रतन थियम को फीस के रूप में कितनी राशि मिलेगी? दस लाख, पचास लाख, एक करोड़? प्रेस कांफ्रेंस में इसके बारे में भी कुछ नहीं बताया गया. शायद ये आरटीआई के माध्यम से पता चले क्यों एनएसडी इसके बारे में मौन ही रहा.
- भारत रंग महोत्सव बीस-बाईस दिनों का होता है उस दौरान एनएसडी में कक्षाएं नहीं होतीं. एनएसडी मूल रूप से एक अकादमिक संस्थान हैं और इसका काम रंगमंच के लिए प्रशिक्षण देना है. 2018 में थियेटर ओलंपिक्स होने पर एनएसडी में कम से कम दो महीने कक्षाएं नहीं होंगी? छात्रों के भविष्य के साथ ये खिलवाड़ क्यों?
- एक तरफ सरकार अकादमियों के बजट में कटौती कर रही है और उनसे कहा गया है कि वे खुद ही अपना संसाधन विकसित करे. लेकिन दूसरी तरफ एनएसडी पर कम के अतिरिक्त 80 से 100 करोड़ (कम से कम) खर्च करने की तैयारी है. आखिर सरकार इस तरह के दोहरे मानदंड क्यों अपना रही है? साहित्य अकादेमी, ललित कला अकादेमी और संगीत नाटक अकादेमी को संसाधन की समस्या झेलनी पड़ रही है. फिर एनएसडी पर इतनी कृपा दृष्टि क्यों?
- एनएसडी पिछले कुछ बरसों से इस कारण कुख्यात रहा है कि इसके पदाधिकारी खुद ही चयन समिति में होते हैं और खुद के ही नाटकों का चय़न कर लेते हैं. वो भी एक नहीं, दो- दो, तीन-तीन. 2017 के भारंगम में एनएसडी के अध्यक्ष रतन थियम, निदेशक वामन केंद्रे और एनएसडी की फैकल्टी की सबसे वरिष्ठ सदस्य त्रिपुरारी शर्मा के दो- दो नाटक हुए. ऐसे लोगों को लगभग सौ करोड़ का धन देना कहां तक वाजिब है? आखिर संस्कृति मंत्रालय इसकी अनदेखी क्यों कर रहा है?
- क्या वित्त मंत्रालय ने इतना बड़ा आयोजन करने के लिए मंजूरी दे दी है? अभी तक ऐसा लगता नहीं है. ऐसा होता तो संस्कृति मंत्री प्रेस कांफ्रेंस में ये बताते कि इस आयोजन पर कुल कितना खर्चा हो रहा है. उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि जितना खर्च होगा, सरकार उसे वहन करेगी.
(रवीन्द्र त्रिपाठी टेलीविजन और प्रिंट मीडिया के वरिष्ठ पत्रकार, साहित्य-फिल्म-कला-रंगमंच के आलोचक, स्क्रिप्ट लेखक और डॉक्यूमेंट्री फिल्मकार हैं)