पंजाब: आइसोलेशन वार्ड में हुई डॉक्टर की मौत, बाद में कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आई

मृतक की डॉक्टर पत्नी ने बताया कि हल्के बुखार और खांसी के बाद उनके पति का कोविड-19 टेस्ट करवाया गया. तबियत बिगड़ने पर उन्हें एक अस्पताल द्वारा आइसोलेशन वार्ड में भर्ती कर दिया गया, जहां बिना उचित देखरेख के उनकी मौत हो गई. उनके गुज़रने के बाद उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आई.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

मृतक की डॉक्टर पत्नी ने बताया कि हल्के बुखार और खांसी के बाद उनके पति का कोविड-19 टेस्ट करवाया गया. तबियत बिगड़ने पर उन्हें एक अस्पताल द्वारा आइसोलेशन वार्ड में भर्ती कर दिया गया, जहां बिना उचित देखरेख के उनकी मौत हो गई. उनके गुज़रने के बाद उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आई.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)
(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

पंजाब के एक अस्पताल में इलाज के दौरान लापरवाही बरतने की वजह से मरीज की मौत का मामला सामने आया है.

इंडियन एक्सप्रेस को लिखे एक पत्र में एक डॉक्टर ने अपनी आपबीती साझा की है. डीएवी कॉलेज ऑफ एजुकेशन के प्रोफेसर डॉ. परविंदर कांबोज की पत्नी डॉ. नीता पंधु का आरोप है कि अस्पतालों की लापरवाही की वजह से उनके पति की मौत हुई है.

डॉ. नीता पांधु में बताया है, ‘मेरे पति को 16 जुलाई को हल्का बुखार आया और 18 जुलाई को उनका गला खराब हुआ. उन्हें खांसी नहीं थी और उनके सूंघने और चखने की क्षमता सामान्य थी. हम 20 जुलाई को अबोहर के सिविल अस्पताल गए, जहां हमने उनका कोरोना टेस्ट कराया लेकिन मुझे अब लगता है कि यह मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती थी.’

वह आगे कहती हैं, ‘हमें कहा गया कि कोरोना के लिए सैंपल्स 20 जुलाई के बजाए 21 जुलाई को भेजे गए हैं और इसलिए हमें 22 जुलाई को रिपोर्ट मिल जाएगी. मेरे पति की हालत खराब होती जा रही थी और वह कुछ भी सही तरीके से खा नहीं पा रहे थे.’

उन्होंने कहा, ’22 जुलाई की दोपहर मेरे पति की तबियत बिगड़ने पर मैं उन्हें सिविल अस्पताल ले गई, जहां मुझे इमरजेंसी वॉर्ड के एंट्रेंस पर रोक लिया गया.’

डॉ. नीता कहती हैं, ‘कुछ सामान्य जांच के बाद  मुझे बताया गया कि उन्हें फरीदकोट के गवर्मेंट मेडिकल कॉलेज रेफर किया जाएगा. मेरे पास ऐसा कोई प्रमाण नहीं था कि मेरे पति कोरोना नेगेटिव हैं. मैंने अस्पताल से उन्हें प्राथमिक उपचार मुहैया कराने को कहा इसलिए उन्होंने मेरे पति को ड्रिप लगा दी और ऑक्सीजन सपोर्ट दिया.’

इसके बाद डॉक्टर ने कहा कि वह मेरे पति को फरीदकोट मेडिकल कॉलेज रेफर कर रहे हैं.

वह कहती हैं, ‘डॉक्टर ने कहा कि कोई भी निजी अस्पताल बिना कोरोना रिपोर्ट के उनके पति का इलाज नहीं करेगा. उन्होंने कहा कि जीएमसी के डॉ. अंकित से उनकी बात हुई है और वह तुरंत इलाज करेंगे. हम उन्हें एंबुलेंस से फरीदकोट ले गए.’

नीता कहती हैं, ‘मैंने डॉ अंकित को अपने पति के लक्षणों के बारे में बताया और उनसे कहा कि उनमें कोरोना के लक्षण नहीं हैं, जिस पर उन्होंने कहा कि मैं कुछ नहीं कर सकता क्योंकि सिविल अस्पताल से आपके पति कि रेफरल स्लिप में उन्हें कोरोना संदिग्ध बताया गया है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘उन्होंने कोरोना रिपोर्ट मांगी. मैंने उन्हें बताया कि रिपोर्ट फरीदकोट में तैयार हो रही है, लेकिन उन्होंने मुझसे रिपोर्ट लाने और यह सिद्ध करने को कहा कि मेरे पति को कोरोना नहीं है.’

वह बताती हैं कि इमरजेंसी उपचार देने पर अस्पताल ने उनसे उनके पति को भर्ती कराने को कहा.

डॉ. नीता कहती हैं, ‘यह कहकर मेरे पति कोरोना आइसोलेशन वॉर्ड में भर्ती किया गया कि यह सामान्य आइसोलेशन वॉर्ड हैं, जहां मरीजों को उनकी कोरोना रिपोर्ट आने तक रखा जाता है.’

वह कहती हैं, ‘हम शाम साढ़े पांच बजे अस्पताल पहुंचे थे लेकिन सात बजे तक भी इलाज शुरू नहीं किया गया. मुझे कहा गया कि फाइल तैयार हो रही है लेकिन इलाज शुरू नहीं हुआ. हमें पानी, ग्लूकोज और थर्मामीटर लाने को कहा गया, जो मैं लेकर आई. मुझे बताया गया कि मेरे पति को ड्रिप लगाई गई है और कुछ समय में डॉक्टर उन्हें देखेंगे.’

वह कहती हैं, ‘मेरे एक रिश्तेदार अंदर गए और देखा कि मेरे पति वॉर्ड में अकेले हैं और उनकी सांस तेजी से चल रही थी. उनके इलाज के लिए अनुरोध और कहासुनी के बाद उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया. इसके बाद मैं घर चली गई.’

वह कहती हैं, ‘मुझे बाद में पता चला कि मेरे पति की मौत हो गई और आइसोलेशन वॉर्ड में उन्हें किसी ने देखा नहीं. डॉक्टरों को उनकी मौत के समय का भी पता नहीं है.’

डॉ. नीता कहती हैं, ‘सैंपल इकट्ठा करने के पांच दिन बाद 24 जुलाई की शाम को मुझे मेरे पति की कोरोना रिपोर्ट मिली, जिसमें वह कोरोना संक्रमित नहीं पाए गए.’

वहीं, अबोहर के सिविल अस्पताल के एसएमओ डॉ. गगनदीप सिंह का कहना है,’ परविंदर कांबोज का पूरा चेकअप करने के बाद जब उनकी हालत बिगड़ने लगी तो उन्हें सरकारी एंबुलेंस से फरीदकोट रेफर किया गया. उनकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई है. उनकी 16 जुलाई को हालत बिगड़ने लगी थी, वह घर पर ही इलाज करते रहे और 20 जुलाई को उनके पास आए थे. इसमें सिविल अस्पताल की कोई लापरवाही नहीं है.’