दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने नई शिक्षा नीति को ‘प्रगतिशील दस्तावेज़’ बताते हुए कहा कि इसमें मौजूदा शिक्षा प्रणाली की ख़ामियों की पहचान तो की गई है, लेकिन यह पुरानी परंपराओं के दबाव से मुक्त नहीं हो पा रहा है.
नई दिल्ली: दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने बीते गुरुवार को कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) एक अत्यधिक विनियमित और कमजोर वित्त पोषित शैक्षिक मॉडल की सिफारिश करती है.
उन्होंने कहा कि यह नीति या तो भ्रमित करती है या इसमें यह नहीं बताया गया है कि इसमें उल्लिखित सुधार कैसे किए जाएंगे.
आम आदमी पार्टी (आप) के नेता ने नई शिक्षा नीति को ‘प्रगतिशील दस्तावेज’ बताते हुए कहा कि इसमें मौजूदा शिक्षा प्रणाली की खामियों की पहचान की गई है, लेकिन यह पुरानी परंपराओं के दबाव से मुक्त नहीं हो पा रहा है.
सिसोदिया ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘एनईपी एक प्रगतिशील दस्तावेज है लेकिन इसके कार्यान्वयन के लिए कोई रूपरेखा नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘राष्ट्र 34 वर्षों से एक नई शिक्षा नीति की प्रतीक्षा कर रहा था, जो अब आ चुकी है. यह एक दूरदर्शी दस्तावेज है, जो आज की शिक्षा प्रणाली की खामियों को स्वीकार करता है, लेकिन इसके साथ दो मुद्दे हैं- यह शिक्षा की पुरानी परंपराओं के दबाव से मुक्त होने में असमर्थ है और इसमें यह नहीं बताया गया है कि इन सुधारों को कैसे लागू किया जाएगा. नीति या तो इन मुद्दों पर चुप है या भ्रमित करती है.’
Hon'ble Deputy CM & Education Minister @msisodia addressing an important press conference on The New Education Policy https://t.co/SkpW1DTLXB
— Manish Sisodia (@msisodia) July 30, 2020
उन्होंने कहा, ‘नीति एक अत्यधिक विनियमित और कमजोर वित्त पोषित शिक्षा मॉडल की सिफारिश करती है. यह नीति सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के सरकार के दायित्व से बचने का प्रयास है.’
उपमुख्यमंत्री ने कहा, ‘पांचवी कक्षा तक मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषाओं में मौलिक शिक्षण प्रदान करना एक प्रगतिशील कदम है. हम बच्चों की शुरुआती शिक्षा पर ध्यान देने की बात का भी स्वागत करते हैं.’
दिल्ली के शिक्षा मंत्री सिसोदिया ने कहा, ‘अगर विश्वविद्यालयों में संयुक्त प्रवेश परीक्षाएं होने जा रही हैं, तो हमें बोर्ड परीक्षाओं की आवश्यकता क्यों है?’
उन्होंने कहा कि पिछली चीजों को दोहराने की आवश्यकता क्या है? एक नीति, जो अब अगले कुछ दशकों तक लागू होने जा रही है, वह खेल-कूद की गतिविधियों पर पूरी तरह से मौन है.
गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बीते बुधवार को नई शिक्षा नीति(एनईपी) को मंजूरी दे दी, जिसमें स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव किये गए हैं. साथ ही, शिक्षा क्षेत्र में खर्च को सकल घरेलू उत्पाद का 6 प्रतिशत करने तथा उच्च शिक्षा में साल 2035 तक सकल नामांकन दर 50 फीसदी पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.
नई नीति में बचपन की देखभाल और शिक्षा पर जोर देते कहा गया है कि स्कूल पाठ्यक्रम के 10 + 2 ढांचे की जगह 5 + 3 + 3 + 4 की नई पाठयक्रम संरचना लागू की जाएगी, जो क्रमशः 3-8, 8-11, 11-14, और 14-18 साल की उम्र के बच्चों के लिए होगी. इसमें 3-6 साल के बच्चों को स्कूली पाठ्यक्रम के तहत लाने का प्रावधान है, जिसे विश्व स्तर पर बच्चे के मानसिक विकास के लिए महत्वपूर्ण चरण के रूप में मान्यता दी गई है.
‘नई शिक्षा नीति पर विशेषज्ञों की मिश्रित प्रतिक्रिया’
नई शिक्षा नीति में पांचवीं कक्षा तक मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई, बोर्ड परीक्षा के भार को कम करने, विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में परिसर खोलने की अनुमति देने, विधि और मेडिकल को छोड़कर उच्च शिक्षा के लिये एकल नियामक बनाने, विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिये साझा प्रवेश परीक्षा आयोजित करने सहित स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक अनेक सुधारों की बात कही गई है.
इसे लेकर लेकर शिक्षाविदों और विशेषज्ञों की मिश्रित प्रतिक्रिया आई है. उनमें से कई ने जहां इसे बहुप्रतीक्षित और महत्वपूर्ण सुधार बताया है, वहीं कुछ ने इसकी आलोचना भी की है.
दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति दिनेश सिंह ने कहा कि यह नीति कौशल और ज्ञान के मिश्रण से स्वस्थ माहौल सृजित करेगी.
उन्होंने कहा कि नीति में कुछ ऐसे सुधार हैं जिनकी लंबे समय से प्रतीक्षा की जा रही थी. यह विभिन्न संकायों और विषयों के मेल का मार्ग प्रशस्त करेगी और इससे पठन-पाठन एवं विचारों तथा वास्तविक दुनिया में इनके उपयोग को बढ़ावा मिलेगा.
ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन की महानिदेशक रेखा सेठी ने कहा, ‘नई शिक्षा नीति शिक्षा के क्षेत्र में आपूर्ति और देश में उच्च शिक्षा के नियमन संबंधी जटिलताओं को दूर करेगी और सभी छात्रों के लिये समान अवसर प्रदान करेगी. कोविड-19 के बाद के समय में डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देने का कदम महत्वपूर्ण है.’
जामिया मिलिया इस्लामिया की कुलपति नजमा अख्तर ने नई शिक्षा नीति को महत्वपूर्ण करार देते हुए कहा कि भारत में उच्च शिक्षा का स्वरूप अब समग्र एवं बहु-विषयक होगा, जिसमें विज्ञान, कला और मानविकी पर साझा ध्यान दिया जायेगा .
उन्होंने कहा, ‘सभी उच्च शिक्षण संस्थानों के लिये एकल नियामक का होना अच्छा विचार है और इससे सामंजस्य बेहतर होगा. इससे भारत में शिक्षा का उद्देश्य हासिल करने में मदद मिलेगी.’
वहीं, कुछ विशेषज्ञों ने कहा कि बारीकी से विश्लेषण करने पर ही इसके गुण-दोष का पता चलेगा और इस नीति को जमीन पर उतारने के लिये केंद्रित दृष्टिकोण अपनाए जाने की जरूरत बताई.
शिव नाडर विश्वविद्यालय की कुलपति रूपामंजरी घोष ने कहा कि नीति में शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार की बात कही गई है लेकिन इसे जमीन पर कैसे और कितना उतारा जाता है, यह देखना होगा.
उन्होंने कहा कि सुधार की सच्ची भावना देश के छात्रों के सशक्तिकरण में निहित होती है ताकि वे अपनी पूरी क्षमता को प्राप्त कर सकें.
हेरिटेज स्कूल के निदेशक विष्णु कार्तिक ने कहा कि नीति में इस बात का ध्यान होना चाहिए कि सुधार इनपुट आधारित होने की बजाय परिणाम आधारित हों.
जेके लक्ष्मीपत विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. रोशन लाल रैना ने कहा कि नई शिक्षा नीति एक महत्वपूर्ण निर्णय है और इससे अगली पीढ़ी के छात्रों को काफी लाभ होगा तथा शिक्षा के क्षेत्र में भविष्य की जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी .
सेव द चिल्ड्रेन के प्रवक्ता ने कहा कि प्रौद्योगिकी की पृष्ठभूमि में यह नीति अच्छी है लेकिन इसमें इन आदर्श लक्ष्यों को हासिल करने का मार्ग स्पष्ट नहीं है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)