भारत विभाजन के पहले भी ऐसी ही भीड़-मानसिकता पैदा की गई थी

भीड़-मानसिकता को जब कोई सांप्रदायिक विचारधारा नियंत्रित करती है तो निश्चित रूप से नारे भले ही अखंड भारत के लगें, भीतर ही भीतर विभाजन की पूर्वपीठिका तैयार की जा रही होती है.

//

भीड़-मानसिकता को जब कोई सांप्रदायिक विचारधारा नियंत्रित करती है तो नारे भले ही अखंड भारत के लगें, भीतर ही भीतर विभाजन की पूर्वपीठिका तैयार होती जाती है.

Calcutta Riot 1946
1946 में कलकत्ता में हिंदू-मुस्लिम दंगे की तस्वीर. (फोटो http://www.spiritualeducation.org/ से साभार)

इलाहाबाद में एक हिंदू और उसके घर काम कर रहे मुस्लिम राजमिस्त्री का मामूली झगड़ा हो गया. झगड़ा एकदम व्यक्तिगत क़िस्म का था लेकिन इसकी वजह से शहर में फ़साद जैसे हालात बन गए.

कानपुर में एक मुस्लिम इक्का वाले का एक हिंदू औरत के साथ किराये को लेकर शुरू हुआ झगड़ा दोनों समुदायों के बीच का दंगा बन गया.

पीलीभीत के बिलासपुर में एक पान वाले के साथ कुछ मुस्लिम ख़रीददारों की कहासुनी हो गई. इस पर हिंदू पान वाले ने अपने निजी झगड़े को सांप्रदायिक रंग देकर तमाम हिंदू इकट्ठा कर लिए और शहर में अच्छा-ख़ासा सांप्रदायिक उपद्रव हो गया.

इसी शहर के एक बाज़ार में आम की ख़रीद-फ़रोख्त को लेकर शुरू हुए विवाद के बाद पूरा बाज़ार दंगे का मैदान बन गया.

मिर्ज़ापुर ज़िले में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एक कबड्डी मैच की गर्मजोशी दंगों में तब्दील हो गई. दोनों समुदाय के लोगों ने एक-दूसरे समुदाय की ‘भीड़’ के ऊपर देशी मिसाइलें तक दागीं.

अमरोहा में जब एक मुस्लिम लड़का एक हिंदू लड़के से कुश्ती में हार गया तो शहर में लूटपाट शुरू हो गई.

आजमगढ़ में एक भैंस के घायल होने की ख़बर पर दोनों समुदाय एक-दूसरे के ख़िलाफ़ अघोषित तैयारियों में जुट गए जबकि किसी को नहीं पता था कि भैंस कैसे घायल हुई.

इसी ज़िले में हुए एक दंगे के दौरान मुस्लिम भीड़ ने जब हिंदू इलाक़ों पर हमला किया तो न सिर्फ़ इंसानों बल्कि भैसों के भी सिर कलम कर दिए गए.

घबराइए नहीं, यह आपके समाज की ख़बरें नहीं हैं. यह भारत के विभाजन से तकरीबन एक दशक पहले की घटनाएं हैं. दरअसल 1937 के अंत से मुस्लिम लीग ने यह तय कर लिया था कि भारत के मुसलमानों और हिंदुओं के बीच पहले से मौजूद दरार को एक खाई में तब्दील कर देना है. इसलिए उसने समाज और राजनीति के घोर सांप्रदायीकरण की नीति अपनाई और लोगों के भीतर एक भय का माहौल पैदा कर दिया.

मुसलमानों के अंदर यह डर बिठाया गया कि इस्लाम ख़तरे में है और आज़ाद भारत में मुसलमान हिंदुओं के ग़ुलाम बना दिए जाएंगे. आज के भारत में यह डर तथाकथित रूप से मुसलमानों की बढ़ती आबादी और उनकी पाकिस्तान-परस्ती के चलते आरएसएस जैसे हिंदू सांप्रदायिक दल पैदा कर रहे हैं.

कहा जा रहा है कि फ़लां-फ़लां साल तक इस देश में हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएंगे और मुसलमान बहुसंख्यक होकर उन्हें अपना ग़ुलाम बना लेंगे. यह ग़ुलाम बनाए जाने का भय ही दूसरों को ग़ुलाम बना लेने की मानसिकता पैदा करता है. यानी इससे पहले कि आपको ग़ुलाम बनाया जाए आप दूसरों को ग़ुलाम बना लीजिए.

लेकिन इस देश में पिछले कुछ समय से जो कुछ हो रहा है, वह इसी दिशा की तरफ बढ़ने का संकेत है. जैसे इसी साल अप्रैल में राजस्थान के सीकर में बच्चों को लेकर शुरू हुए एक छोटे से झगड़े ने दंगे का रूप ले लिया. लोग बिना सोचे-समझे ‘समुदाय’ की भीड़ में तब्दील हो गए और बच्चों की जगह समुदाय आपस में टकरा बैठे.

हाल ही में बंगाल के बशीरहाट में एक 16 साल के बच्चे द्वारा पैगंबर मोहम्मद को लेकर की गई फेसबुक पोस्ट के बाद गुस्साई भीड़ लड़के को पत्थर मारने की सज़ा देने की मांग करने लगी.

मार्च के महीने की शुरुआत में उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में एक बच्चे द्वारा हिंदू देवी-देवताओं पर आपत्तिजनक टिप्पणियों वाली वीडियो क्लिप के बाद वहां भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कर्फ़्यू तक लगाना पड़ा. लाउडस्पीकर और धार्मिक जुलूस-जलसों को लेकर हुए सांप्रदायिक तनाव के तो जाने कितने छोटे-बड़े वाकये गिनाये जा सकते हैं.

अख़लाक से लेकर पहलू ख़ान और जुनैद तक को भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मारे जाने की घटनाएं इसी भीड़-मानसिकता के पनपने के सबूत दे रही हैं जहां भीड़ या तो सक्रिय रूप से हत्या में शामिल है या मुस्कुराते हुए अपने मोबाइल कैमरे से वीडियो बना रही है.

सांप्रदायिकता भय और अफ़वाह के रथ पर सवार होकर आगे बढ़ती है. यदि कोई भीतर से डरा नहीं है तो आसानी से सांप्रदायिक योजना का हिस्सा नहीं बन सकता. अगर कोई अफ़वाह समाज के किसी हिस्से में तेज़ी से असुरक्षा पैदा करने में सफल हो जाए तो समझिए समाज किसी कृत्रिम भय के साए में जी रहा है.

एक-दूसरे के प्रति भय दरअसल एक आत्मविश्वासहीन समाज की बीमारी है. इसलिए सांप्रदायिक विचारधारा सबसे पहले लोगों के दिल में भय पैदा करती है. भय लोगों को अनर्गल व्यवहार करने वाली एक ‘भीड़’ में तब्दील कर देता है.

किसी भी मामूली-सी लगने वाली घटना पर यह ‘भीड़’ उकसाए जाने पर इकट्ठा होती है और अपने चिन्हित दुश्मन के ख़िलाफ़ हिंसा पर उतारू हो जाती है. सांप्रदायिक चेतना के प्रभाव में आए लोगों का यह असामान्य व्यवहार ही सांप्रदायिक राजनीति के लिए उपयुक्त ‘भीड़’ तैयार करता है.

‘भीड़’ को उकसाने के लिए सांप्रदायिक तर्क पहले से तैयार होते हैं और सांप्रदायिक दलों के कार्यकर्ता ख़ुद इस भीड़ का हिस्सा बनकर उसको नियंत्रित करते हैं.

लेकिन जैसे सांप्रदायिक राजनीति एक दुश्मन के बिना ज़िंदा नहीं रह सकती, वैसे ही भीड़-मानसिकता को भी हर हाल में शिकार चाहिए. अगर आप उसे शिकार बनाने के लिए 16 साल के जुनैद जैसे मुसलमान मुहैया नहीं करा सके तो वह अपने आप शिकार तलाश लेती है.

इस बात के साक्ष्य भी हाल की कुछ और घटनाओं में मिलने लगे हैं. हाल ही में झारखंड के सरायकेला-खर्सवान ज़िले में दो अलग-अलग जगहों पर ग्रामीणों ने सात लोगों को पीट-पीटकर मार डाला.

एक वॉट्सऐप संदेश के मार्फ़त लोगों के बीच यह अफ़वाह उड़ी कि इलाके में बच्चे उठाने वालों का एक गिरोह सक्रिय है. इसी की प्रतिक्रया स्वरूप बागबेरा और राजनगर में कुछ लोगों को बिना पूछताछ किए भीड़ जान से मार देती है.

यह कोई छोटी-मोटी भीड़ नहीं थी; इसमें तकरीबन पांच सौ से हज़ार लोग शामिल थे और पीटे जाने वाले लोगों में दो वृद्ध महिलाएं भी थीं. जबकि राज्य के डीजीपी के मुताबिक़ पूरे राज्य में बच्चा उठाने की ऐसी कोई घटना दरअसल घटी ही नहीं.

एक बार फ़िर आज़ादी और विभाजन से पहले के दौर की एक घटना को ऊपर वाली घटना के साथ जोड़कर पढ़िए. हाथरस में एक अफ़वाह फैली कि हैदराबाद के निज़ाम ने बच्चे उठाने वाले साधू भेजे हैं. यह वो समय था जब हैदराबाद में निज़ाम के ख़िलाफ़ आर्य समाज एक अभियान छेड़े हुए था.

निज़ाम भी अपनी सांप्रदायिक सोच के चलते ख़ासा अलोकप्रिय था. लोगों को उकसाने वाली यह अफ़वाह किसने और कब उड़ाई, यह किसी को नहीं पता. किसी ने नहीं सोचा कि जो साधू ख़ुद हैदराबाद के निज़ाम के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं, वो हिंदुओं के बच्चों को उठाने क्यों आएंगे.

इसी अफवाह के बीच एक दिन जब एक जाट का बच्चा गायब हो गया तो आनन-फानन में तीन हज़ार की भीड़ इकट्ठा हो गई. अब जब भीड़ इकट्ठा हो गई थी तो उसे शिकार चाहिए था क्योंकि भीड़ हमेशा जल्दबाजी में और घबराई होती है.

उसी समय एक साधू उधर से गुज़रा और भीड़ ने उसे पकड़ा और ज़िंदा जलाकर मार डाला. बाद में वो बच्चा सुरक्षित मिला और उसके गायब होने में उस शिकार किए गए साधु का कोई हाथ नहीं था. लेकिन ऐसे तीन और मामले उसके बाद पूरे ज़िले में दर्ज हुए जहां लोगों की पगलाई भीड़ ने निर्दोष साधुओं को अपना निशाना बनाया.

यह भीड़ एक सांप्रदायिक आधार पर तैयार की गई अफ़वाह से उत्तेजित हुई थी. ज़ाहिर है इसमें ‘दुश्मन’ हैदराबाद का निज़ाम और उसके बहाने मुसलमान थे. लेकिन जब भीड़ तैयार हो गई तो हिंदुओं को निशाना बनाने में भी उसका दिल रत्ती भर न पसीजा.

यानी कोई ख़ास विचारधारा जब भीड़ को इकट्ठा कर उसे हिंसा के माध्यम से मुद्दों का समाधान करने का विकल्प दे देती है तो ज़रूरी नहीं कि भीड़ के सामने कोई मुसलमान ही हो. ग्रेटर नोएडा के जेवर में भूप सिंह और जबर सिंह का मामला भी इस बात की पुष्टि करता है.

भीड़ जब उन दोनों को एक गाय और बछड़े के साथ पकड़कर पीटना शुरू करती है तो बार-बार यह चिल्लाने के बावजूद कि ‘हम हिंदू हैं’, उन्हें बख्शा नहीं जाता. क्योंकि भीड़ के कान नहीं होते और एक बार जब उसे किसी ख़ास अफ़वाह के तहत उकसा दिया जाता है तो वो ख़ुद में बेहद असुरक्षित मानसिकता से काम करती है.

सत्य की खोज उसका उद्देश्य नहीं होता बल्कि जो भी झूठ या अफ़वाह उस तक पहुंचाई जाती है उसके अलावा वो हर बात पर अविश्वास करती है. इसलिए कहा जा सकता है कि आज जो कुछ हमारी आंख के सामने हो रहा है, वो अनोखा नहीं है.

आधुनिक भारत के पहले विभाजन की शुरुआत भी ऐसी ही भीड़-मानसिकता को पैदा करने के साथ हुई थी. विभाजन के पहले का एक दशक हमें यह सबक देता है कि सामाजिक विभाजन के क्रम में सांप्रदायिक ताक़तों का सबसे पहला और महत्वपूर्ण कार्यभार भीड़-मानसिकता पैदा करना है. और, भीड़-मानसिकता को जब कोई सांप्रदायिक विचारधारा नियंत्रित करती है तो निश्चित रूप से नारे भले ही अखंड भारत के लगें, भीतर ही भीतर विभाजन की पूर्वपीठिका तैयार की जा रही होती है.

(लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में शोधछात्र हैं.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq