हिमालयी क्षेत्रों की पर्यावरण संस्थाओं ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखकर पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना-2020 का विरोध करते हुए इस पर रोक लगाने की मांग की है.
नई दिल्ली: हिमालयी राज्यों के पर्यावरण संस्थाओं ने केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को पत्र लिखकर विवादास्पद पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) मसौदा अधिसूचना 2020 का विरोध किया है.
उन्होंने कहा है कि ईआईए में विभिन्न प्रावधानों को कमजोर करना जैसे कि सार्वजनिक सुनवाई के लिए समय कम करना या सार्वजनिक सुनवाई से कुछ परियोजनाओं को पूरी तरह से छूट देना या उद्योगों द्वारा काम शुरू करने बाद उन्हें पर्यावरणीय मंजूरी देने जैसे प्रावधान के कारण हिमालयी क्षेत्र में विनाशकारी परिणाम होंगे.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इस पत्र पर असम, नगालैंड, मणिपुर, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और लद्दाख के लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं और 2020 के मसौदा संशोधनों को तत्काल रद्द करने की मांग की है.
संगठनों ने अपने राज्यों के सांसदों को भी इसी तरह का पत्र लिखा है. हिमाचल प्रदेश स्थित हिमाद्रा एन्वायरन्मेंटल रिसर्च एंड एक्शन कलेक्टिव की मानशी अशर ने कहा है कि सरकार द्वारा किए गए अध्ययनों में ये बात सामने आई है कि ये क्षेत्र बेहद संवेदनशील हैं.
उन्होंने कहा, ‘आप हिमालय में पश्चिम से पूर्व की ओर वार्षिक मानसून के प्रभावों को देख सकते हैं, जहां हमने पिछले कुछ दशकों में विनाशकारी बाढ़ का अनुभव किया है. इसकी एक बड़ी वजह अनियंत्रित व्यापक विकास है.’
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अशर ने कहा कि साल दर साल सरकारें ईआईए अधिनियम में संशोधन करती आई हैं जो ठेकेदारों या उद्योगपतियों के लिए रास्ते तैयार करती है.
सिक्किम के एक कार्यकर्ता ग्यात्सो लेप्चा ने कहा कि पूर्वी हिमालय और सिक्किम ने हाल के वर्षों में अभूतपूर्व बादल फटने और भूस्खलन जैसी आपदाओं को देखा है.
उन्होंने कहा, ‘हिमालय में सबसे बड़े मुद्दों में से एक सरकार द्वारा पनबिजली परियोजना और पूरे क्षेत्र में कई बांध तैयार करना है. इस बिजली को ले जाने के लिए ट्रांसमिशन लाइनों की स्थापना, पहाड़ों में सड़कों और सुरंगों का निर्माण करने से भूस्खलन की संख्या में वृद्धि हुई है.’
इसके अलावा असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद मोदी को पत्र लिखकर गुजारिश की है कि वे मौजूदा ईआईए नोटिफिकेशन-2020 के ड्राफ्ट को वापस ले लें.
उन्होंने कहा कि इस नोटिफिकेशन से न सिर्फ असम और उत्तर पूर्व के लोग प्रभावित होंगे बल्कि इससे हिमाचल, उत्तराखंड, कश्मीर और लद्दाख समेत पूरा हिमालयी क्षेत्र को बहुत बड़े खतरों का सामना करना पड़ेगा.
गोगोई ने कहा कि इस अधिसूचना के कारण प्रशासन को असीमित शक्तियां मिल गई हैं कि वे किसी भी तरीके का कदम उठा सकते हैं जो कि हमारे प्राकृतिक संसाधनों के लिए हानिकारक होगा.
उन्होंने कहा कि इस तरह की शक्तियों का कॉरपोरेट जगत के लोगों द्वारा दुरुपयोग किए जाने की संभावना है.
मालूम हो कि देश के विभिन्न स्तरों पर मोदी सरकार के इस विवादित पर्यावरण कानून का विरोध हो रहा है. दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर इस अधिसूचना पर जनता से सुझाव प्राप्त करने की समयसीमा बढ़ाकर 11 अगस्त 2020 की गई है.
इससे पहले केंद्र के पर्यावरण मंत्रालय ने ईआईए नोटिफिकेशन, 2020 पर जनता से आपत्तियां या सुझाव प्राप्त करने की आखिरी तारीख 30 जून 2020 निर्धारित की थी.
इस विवादास्पद अधिसूचना में कुछ उद्योगों को सार्वजनिक सुनवाई से छूट देना, उद्योगों को सालाना दो अनुपालन रिपोर्ट के बजाय एक पेश करने की अनुमति देना और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में लंबे समय के लिए खनन परियोजनाओं को मंजूरी देने जैसे प्रावधान शामिल हैं.