जन्मदिन विशेष: स्वतंत्रता सेनानी, गांधीवादी, तीन बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष रहे के. कामराज को स्वतंत्र भारत की राजनीति का पहला ‘किंगमेकर’ माना जाता है.
‘कठिनाईयों का सामना करो. इससे भागो मत. समाधान खोजिए भले ही वह छोटा हो. यदि आप कुछ करते हैं तो लोग संतुष्ट होंगे.’
कुमारासामी कामराज ने ये बात पहली बार मद्रास प्रोविन्स (अब तमिलनाडु) का मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने कैबिनेट के सहयोगियों को दी थी.
गांधीवादी के. कामराज को भारतीय राजनीति में कई कारणों से याद किया जाता है. हम जब भी स्वतंत्र भारत की चर्चा करेंगे तो मशहूर कामराज योजना, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी की प्रधानमंत्री के रूप में ताजपोशी करने समेत तमाम ऐसे दूसरे किस्से हैं जिनमें हमें कामराज का ज़िक्र मिलेगा.
15 जुलाई 1903 को कामराज का जन्म तमिलनाडु के विरदुनगर में एक व्यवसायी परिवार में हुआ था. 15 साल की उम्र में वे जलियावाला बाग हत्याकांड के चलते स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े.
जब वे 18 साल के हुए तब गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की थी. कामराज इस आंदोलन में ज़ोर-शोर से शामिल हुए. 1930 में कामराज ने नमक सत्याग्रह में हिस्सा लिया और पहली बार जेल गए.
इसके बाद तो उनके जेल जाने-आने का सिलसिला शुरू हो गया. ब्रिटिश सत्ता ने उन्हें करीब छह बार जेल भेजा और करीब 3,000 दिन जेल में बिताए.
राजनीति में आने के बाद उन्हें अपनी पढ़ाई की चिंता सताई. वो जेल में रहकर पढ़ाई पूरी करने लगे. जेल में रहते ही कामराज को म्युनिसिपल कॉरपोरेशन का चेयरमैन चुन लिया गया लेकिन जेल से बाहर आकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया.
उनका कहना था, ‘आपको ऐसा कोई भी पद स्वीकार नहीं करना चाहिए, जिसके साथ आप पूरा न्याय नहीं कर सकते हैं. ‘
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में
13 अप्रैल 1954 को कामराज पहली बार मद्रास के मुख्यमंत्री बने. इस दौरान उन्होंने हर गांव में प्राइमरी स्कूल और हर पंचायत में हाईस्कूल खोलने की मुहिम चलाई. उन्होंने 11वीं तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की योजना चलाई.
उन्होंने स्वतंत्र भारत में पहली बार मिडडे मील योजना चलाई. उनका कहना था कि राज्य के लाखों गरीब बच्चे कम से कम एक वक्त तो भरपेट भोजन कर सकें. उन्होंने मद्रास के स्कूलों में मुफ्त यूनिफॉर्म योजना की शुरुआत की.
इसी तरह मद्रास में तय समय के भीतर सिचाईं परियोजनाओं को पूरा करने और हर गांव में आजादी के महज 15 साल बाद बिजली पहुंचाने का श्रेय भी उन्हें जाता है. प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उनकी तारीफ करते हुए कहा था कि मद्रास भारत में सबसे अच्छा प्रशासित राज्य है.
कामराज प्लान
तीन बार मुख्यमंत्री बनने के बाद गांधीवादी कामराज ने 02 अक्टूबर 1963 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने की बात कही. उनका कहना था कि कांग्रेस के सब बुजुर्ग नेताओं में सत्ता लोभ घर कर रहा है. उन्हें वापस संगठन में लौटना चाहिए. लोगों से जुड़ना चाहिए.
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को कामराज की यह योजना बहुत पसंद आई. उन्होंने इसे पूरे देश में लागू करने का मन बनाया. इस योजना को भारतीय राजनीति में कामराज प्लान के नाम से जाना जाता है.
इस योजना के चलते छह कैबिनेट मंत्रियों और छह मुख्यमंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा. कैबिनेट मंत्रियों में मोरारजी देसाई, लाल बहादुर शास्त्री, बाबू जगजीवन राम और एसके पाटिल जैसे लोग शामिल थे. वहीं, उत्तर प्रदेश के चंद्रभानु गुप्त, एमपी के मंडलोई, ओडिशा के बीजू पटनायक जैसे मुख्यमंत्रियों ने अपने पद से इस्तीफा दिया.
कामराज को इसके बाद कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया.
किंगमेकर की भूमिका
1964 में नेहरू का देहांत हो गया. प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस में दो दावेदारों के बीच संघर्ष शुरू हुआ. अब सारा दारोमदार कामराज पर आ गया. कामराज के सामने अगला प्रधानमंत्री चुनने की चुनौती थी.
उनसे यह सवाल पूछा जाने लगा कि नेहरू के बाद कौन? मोरारजी देसाई और लाल बहादुर शास्त्री इसके प्रबल दावेदारों में थे. शास्त्री को नेहरू का शिष्य माना जाता था.
कामराज ने इस समय सर्वसम्मति की बात कर मोरारजी देसाई के तेवर ठंडे कर दिए. कामराज के नेतृत्व में सिंडीकेट ने शास्त्री का समर्थन किया. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नीलम संजीव रेड्डी, निजा लिंगाप्पा, अतुल्य घोष, एसके पाटिल जैसे ग़ैर-हिंदी भाषी नेताओं के गुट को तब के प्रेस रिपोर्टर सिंडीकेट कहा करते थे, जिसकी अगुआई कामराज किया करते थे.
कामराज के समर्थन से शास्त्री प्रधानमंत्री बन गए.
फिर लाल बहादुर शास्त्री की जनवरी 1966 में मौत हो गई. इस बार मोरारजी देसाई सर्वसम्मति की बात नहीं माने.
वह मतदान कराने की बात पर अड़ गए. कामराज ने इंदिरा गांधी के लिए लामबंदी की. हालांकि सिंडीकेट ने इस बार कामराज के नाम का भी प्रस्ताव प्रधानमंत्री पद के लिए दिया, लेकिन उन्होंने इसके लिए साफ मना कर दिया. उन्होंने पश्चिम बंगाल के नेता अतुल्य घोष से कहा जिसे ठीक से हिंदी और अंग्रेजी न आती हो, उसे इस देश का पीएम नहीं बनना चाहिए.
इस बार उन्होंने नेहरू की बेटी इंदिरा का समर्थन प्रधानमंत्री पद के लिए किया. इंदिरा कांग्रेस संसदीय दल में 355 सांसदों का समर्थन पाकर प्रधानमंत्री बन गईं.
चुनावी हार
किंगमेकर के रूप में कामराज ने आखिरी बड़ा फैसला इंदिरा की नियुक्ति का किया था. इसके बाद 1967 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस कई राज्यों में बुरी तरह हारी. लोकसभा में भी उसे महज 285 सीटें मिलीं. खुद कामराज तमिलनाडु में अपनी गृह विधानसभा विरदुनगर से चुनाव हार गए.
इस बार दांव इंदिरा ने चला. उन्होंने कहा कि हारे हुए नेताओं को पद छोड़ना चाहिए. कामराज ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ दिया. हालांकि नए कांग्रेस अध्यक्ष निजा लिंगाप्पा बने. मगर अंदरखाने संगठन के फैसले अभी भी कामराज ही ले रहे थे.
लेकिन ऐसा लंबे समय तक चलने वाला नहीं था. संगठन और सरकार के बीच दूरी बढ़ती जा रही थी. बैंकों के राष्ट्रीयकरण समेत ऐसे तमाम मसले थे जिसपर वरिष्ठ नेता अपनी अनदेखी से नाराज़ थे.
वो राष्ट्रपति चुनाव जिसे आज भी याद किया जाता है
कांग्रेस के भीतर जल्द ही संगठन और सरकार के नेता खुलकर आमने-सामने आ गए. यह मौका ज़ाकिर हुसैन के बाद होने वाले राष्ट्रपति चुनाव ने दिया.
संगठन ने आंध्र प्रदेश के नेता नीलम संजीव रेड्डी को प्रत्याशी घोषित किया तो वहीं इंदिरा ने उपराष्ट्रपति वीवी गिरि को पर्चा दाखिल करने को कहा.
इंदिरा ने चुनाव के एक दिन पहले कांग्रेसजनों से अंतरआत्मा की आवाज पर वोट डालने की अपील कर डाली. कांग्रेस के कैंडिडेट रेड्डी चुनाव हार गए और वीवी गिरि राष्ट्रपति बन गए.
संगठन के वरिष्ठ नेता इस बात से तिलमिला गए. उन्होंने नवंबर 1969 में पार्टी की एक मीटिंग बुलाई और इंदिरा गांधी को पार्टी से निकाल दिया और कांग्रेस संसदीय दल को नया नेता चुन लेने का हुक्म दिया.
मगर इंदिरा इसके लिए तैयार थीं. संसदीय दल की मीटिंग में उन्हें 285 में 229 सांसदों का समर्थन मिला. बचे वोट उन्होंने तमिलनाडु में कामराज की धुर विरोधी डीएमके पार्टी से जुटा लिए. लेफ्ट पार्टियां भी उनके साथ आ गईं. इसके बाद कांग्रेस पार्टी में दो फाड़ हो गया. कांग्रेस ओ (ऑर्गनाइजेशन) और दूसरी कांग्रेस (रूलिंग) जो इंदिरा संभाल रही थीं.
कमज़ोर कामराज
इसके बाद कामराज ने केंद्र की राजनीति छोड़ तमिलनाडु का रास्ता पकड़ लिया. 1971 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें तो जीत मिली लेकिन संगठन के ज्यादातर नेताओं को हार का सामना करना पड़ा.
दो अक्टूबर 1975 को गांधी जयंती के दिन हार्टअटैक से उनकी मौत हो गई. उस समय वो 72 साल के थे. 1976 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया.
माना जाता है कि वह भारत के पहले ग़ैर-अंग्रेजी भाषी मुख्यमंत्री थे लेकिन तमिलनाडु में उनके नौ साल के कार्यकाल को सर्वोत्तम प्रशासन के लिए जाना जाता है.