कोरोना महामारी को ध्यान में रखते हुए इस साल मनरेगा का बजट बढ़ाकर एक लाख करोड़ रुपये कर दिया गया था. सरकारी आंकड़े दर्शाते हैं कि अब तक इसमें से 48,500 करोड़ रुपये से अधिक की राशि ख़र्च हो चुकी है. ऐसे में कई ग्राम पंचायतों के पास मनरेगा के तहत काम कराने के लिए पैसे नहीं बचे हैं.
नई दिल्ली: मौजूदा वित्त वर्ष (2020-21) के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना के तहत आवंटित फंड का लगभग 50 फीसदी हिस्सा खर्च किया जा चुका है, जब इस वित्त वर्ष के अभी चार महीने ही बीते हैं.
कोरोना महामारी को ध्यान में रखते हुए इस साल के लिए मनरेगा का बजट बढ़ाकर एक लाख करोड़ रुपये कर दिया गया था. हालांकि सरकारी आंकड़े दर्शाते हैं कि इसमें से 48,500 करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च हो चुकी है.
द हिंदू के मुताबिक, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन द्वारा 13 राज्यों में कराए गए एक नये सर्वे से पता चलता है कि कई ग्राम पंचायतों की स्थिति काफी खराब है और उनके पास मनरेगा के तहत कार्य कराने के लिए अब पैसे नहीं बचे हैं. यहां ये स्पष्ट है कि फंड की कमी के चलते ऐसी स्थिति खड़ी हुई है.
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि देश भर में चार लाख से ज्यादा परिवारों द्वारा मनरेगा के तहत आवंटित 100 दिन का कार्य पूरा करने के बाद अब उनके पास आजीविका के लिए काफी कम विकल्प या साधन बचे हैं.
ऐसी परिस्थितियों के आधार पर फाउंडेशन ने सिफारिश की है कि केंद्र सरकार मनरेगा के तहत अतिरिक्त एक लाख करोड़ रुपये का आवंटन करे और प्रति परिवार काम देने की सीमा को बढ़ाकर 200 दिन किया जाए.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘फिलहाल ग्राम पंचायतों के पास जो काम हैं वो अगस्त 2020 अंत तक समाप्त हो जाएंगे. इसलिए अतिरिक्त प्रोजेक्ट लाने की सख्त आवश्यकता है. कई ग्राम पंचायतों में आवंटित प्रोजेक्ट्स के काम पूरे हो चुके हैं.’
अजीम प्रेमजी फाउंडेशन ने ओडिशा सरकार की सराहना की है, जहां मनरेगा के तहत कुशल तरीके से कार्यान्वयन और भुगतान करने से संबंधित निर्णय लेने के लिए मजिस्ट्रेट अधिकारियों के साथ ग्राम पंचायतों के प्रधानों को लगाया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि कार्य और भुगतान की मौजूदा जरूरतों को देखते हुए कार्यान्वयन के पूरे प्रक्रिया चक्र को इस समय संकट में ढील देने की आवश्यकता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अभी भी कार्य करने की मांग काफी ज्यादा है लेकिन कई राज्यों के मजदूरों को ये सुनना पड़ रहा है कि मानसून सीजन के कारण मनरेगा कार्यों को निलंबित कर दिया है.
उदाहरण के तौर पर इसमें बताया गया है कि भारी मांग के बावजूद बिहार, छत्तीसगढ़ और गुजरात में मानसून का हवाला देकर कार्यों पर रोक लगा दी गई है.
दूसरी ओर, झारखंड सरकार ने मनरेगा के तहत फलों के रोपण कार्य के लिए 20,000 एकड़ भूमि ली है, जो एक ऐसा काम है जो मानसून में भी श्रमिकों को लाभान्वित कर सकता है.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मनरेगा के तहत दी जा रही मजदूरी कई राज्यों में कृषि श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी से 25-30 फीसदी कम है.