बिहार के अररिया में एक गैंगरेप पीड़िता सहित दो सामाजिक कार्यकर्ताओं को अदालत की अवमानना के आरोप में 10 जुलाई को हिरासत में लिया गया था. पीड़िता को 18 जुलाई को ज़मानत मिल गई थी, जबकि दोनों कार्यकर्ता समस्तीपुर ज़िले की एक जेल में बंद थे.
नई दिल्ली: बिहार के अररिया में सामूहिक बलात्कार की पीड़िता के साथ अदालत की अवमानना के आरोप में हिरासत में लिए गए दो सामाजिक कार्यकर्ताओं की रिहाई के तत्काल आदेश दिए गए हैं.
लाइव लॉ की खबर के मुताबिक मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कल्याणी और तन्मय को हिरासत में लिए जाने को अनुचित बताते हुए कहा कि इन्हें फ़ौरन रिहा किया जाना चाहिए.
बता दें कि उन्हें उन्हें अररिया की सामूहिक बलात्कार की पीड़िता के साथ 10 जुलाई को हिरासत में लिए जाने के बाद समस्तीपुर की दलसिंहराय जेल में रखा गया था.
पीड़िता को बिहार की स्थानीय अदालत द्वारा 18 जुलाई को जमानत मिल गयी थी, लेकिन कल्याणी और तन्मय की जमानत याचिका को ख़ारिज कर दिया गया था.
मंगलवार को उनकी जमानत मंजूर करते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा ने उन्हें हिरासत में लेने वाले आदेश को पूरी तरह अनुचित बताते हुए इसकी आलोचना की.
Justice Mishra orally observed it is a "totally impermissible order by which they were sent to custody."
The two social workers were represented by Advocate Vrinda Grover #ArariaGangRape
— Bar & Bench (@barandbench) August 4, 2020
ये दोनों कार्यकर्ता जनजागरण शक्ति संगठन से जुड़े हुए हैं. संगठन ने द वायर को बताया कि उन्हें उम्मीद है कि दोनों कार्यकर्ताओं को बुधवार तक रिहा कर दिया जाएगा.
यह मामला एक सामूहिक बलात्कार की पीड़िता के मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज करवाने से संबंधित था.
10 जुलाई को पीड़िता दोनों सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराने गई थीं. इन सभी पर कोर्ट के काम में व्यवधान डालने का आरोप लगाया गया.
कार्यकर्ताओं के सहयोगियों का कहना था कि पीड़िता बस उनकी मौजूदगी में बयान देना चाहती है, जिससे मजिस्ट्रेट नाराज़ हो गए.
उनके खिलाफ शिकायत में गैंगरेप पीड़िता और दोनों सामाजिक कार्यकर्ताओं पर कोर्ट के काम व्यवधान डालने, ड्यूटी कर रहे सरकारी अफसरों पर हमला करने, अदालती कार्यवाही में लगे सरकारी कर्मचारी की बेइज्जती करने और अदालत की अवमानना करने का आरोप लगाया गया था.
वहीं, सामाजिक कार्यकर्ताओं के सहयोगियों ने बताया था कि पीड़िता ने अपने मददगार की मौजूदगी में लिखित बयान पढ़वाना चाहती थी, जो मजिस्ट्रेट को नागवार गुजर गया और उन्होंने उल्टे पीड़िता व सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ ही कार्रवाई कर दी.
संगठन की तरफ से जारी किए गए लिखित बयान में कहा गया था कि पीड़िता को कई जगह और कई बार घटना दोहरानी पड़ी थी, जिससे वह मानसिक तौर पर बहुत ज्यादा परेशान थी और इसी बीच उस पर आरोपित के साथ शादी करने के लिए भी दबाव बनाया जा रहा था.
संगठन से जुड़े आशीष रंजन ने तब बताया था कि पीड़िता ने अदालत में बयान दर्ज करवाते समय मजिस्ट्रेट बात न समझ आने पर कल्याणी को मदद के लिए बुलाने की बात कही थी.
आशीष ने आगे बताया था, ‘जब कल्याणी कोर्ट रूम में गई, तो मजिस्ट्रेट साहब ने पूछा कि वह कौन है कि गैंगरेप पीड़िता जज की बात सुनने को तैयार नहीं है और कल्याणी की बात मानेगी. चूंकि, कोर्ट रूम के भीतर से तेज आवाज आ रही थी, तो तन्मय भी उसी वक्त कोर्ट रूम में दाखिल हुई और दोनों ने अदालत से कहा कि अगर पीड़िता चाहती है कि बयान पढ़कर सुना दिया जाए, तो सुना दिया जाना चाहिए. इसी बात पर जज साहब ने थाने को फोन किया. पुलिस फोर्स आई और गैंगरेप पीड़िता तथा दोनों कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया.’
इसके बाद इन सभी की गिरफ्तारियों का काफी विरोध भी हुआ. वहीं सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हुए प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों मीडिया ने गैर-जिम्मेदारी के साथ पीड़िता की पूरी पहचान उजागर कर दी थी. मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि उन्हें यह जानकारी कोर्ट स्टाफ से मिली है.
तब विशेषज्ञों ने यह भी बताया था कि इन सभी पर अदालत की अवमानना का मामला नहीं चलाया जा सकता क्योंकि यह निचली अदालतों में लागू नहीं होता है, यहां तक कि आईपीसी की धारा 353 के तहत भी जबकि आईपीसी की धारा 228 और 188 दोनों जमानती हैं.