‘जिन परियोजनाओं में पर्यावरणीय मंज़ूरी की ज़रूरत नहीं, उनमें वन्यजीव स्वीकृति ज़रूरी नहीं’

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने राज्यों को लिखे पत्र में कहा है कि जिन राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभयारण्यों को इकोलॉजी की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र के तौर पर अधिसूचित नहीं किया गया है, पर जहां पर्यावरणीय मंज़ूरी आवश्यक है, उनके दस किलोमीटर के दायरे की परियोजनाओं के लिए वन्यजीव मंज़ूरी की ज़रूरत होगी.

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सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर. (फोटो साभार: पीआईबी)

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने राज्यों को लिखे पत्र में कहा है कि जिन राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभयारण्यों को इकोलॉजी की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र के तौर पर अधिसूचित नहीं किया गया है, पर जहां पर्यावरणीय मंज़ूरी आवश्यक है, उनके दस किलोमीटर के दायरे की परियोजनाओं के लिए वन्यजीव मंज़ूरी की ज़रूरत होगी.

सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर. (फोटो साभार: पीआईबी)
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर. (फोटो साभार: पीआईबी)

नई दिल्ली: पर्यावरण मंत्रालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को पत्र लिखकर कहा है कि जिन परियोजनाओं में पर्यावरणीय मंजूरी की जरूरत नहीं है उनमें वन्यजीव स्वीकृति की भी आवश्यकता नहीं है.

मंत्रालय ने कहा कि जिन राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभयारण्यों को पारिस्थितिकी (इकोलॉजी) की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र के तौर पर अधिसूचित नहीं किया गया है और जहां पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता है, उनके दस किलोमीटर के दायरे में स्थित परियोजनाओं के लिए पूर्व वन्यजीव मंजूरी की जरूरत होगी.

राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रधान सचिवों को लिखे पत्र में मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि संरक्षित क्षेत्रों के बाहर पारिस्थितिकी की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों के अंदर की परियोजनाओं के लिए वन्यजीव मंजूरी अनिवार्य नहीं होगा.

राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (एनबीडब्ल्यूएल) द्वारा मामलों पर विचार करने की व्यवहार्यता पर सवाल उठाए थे.

इसने कहा था कि जो परियोजनाएं ऐसे क्षेत्रों में स्थित हैं जो एक संरक्षित क्षेत्र को बाघ अभयारण्य जैसे दूसरे क्षेत्र से जोड़ती है, उनके लिए एनबीडब्ल्यूएल की स्थायी समिति की मंजूरी जरूरी होगी.

पर्यावरण मंत्रालय ने 16 जुलाई के पत्र में कहा, ‘मंत्रालय को राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से पत्र मिले हैं, जिसमें ऐसी परियोजनाओं के विकास, गतिविधियों के लिए राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति के विचार की व्यवहार्यता के बारे में स्पष्टीकरण पूछा गया है, जो राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्यों के बाहर स्थित हैं और जिनके लिए पर्यावरणीय मंजूरी की जरूरत नहीं है.’

मंत्रालय के पत्र में कहा गया, ‘मामले पर सावधानी से विचार करने के बाद यह स्पष्ट किया जाता है कि ऐसे प्रस्तावित मामलों में एनबीडब्ल्यूएल की स्थायी समिति से पूर्व मंजूरी लेनी होगी, जहां प्रस्तावित परियोजना अधिसूचित ईको-सेंसिटिव जोन (ईएसजेड) के भीतर स्थित है और जिसके लिए ईआईए अधिसूचना 2006 के तहत पर्यावरण मंजूरी की आवश्यकता है.’

मंत्रालय ने कहा कि ऐसे प्रस्ताव जो कि राष्ट्रीय उद्यान/वन्यजीव अभयारण्य के 10 किमी के भीतर स्थित परियोजना से संबंधित हैं और जहां ईएसजेड को अंतिम रूप से अधिसूचित नहीं किया गया है, ऐसे कार्यों के लिए एनबीडब्ल्यूएल की स्थायी समिति से पूर्व मंजूरी की आवश्यकता होगी.

वन महानिदेशक संजय कुमार ने कहा कि जिन परियोजनाओं को पर्यावरण प्रभाव आकलन के अनुसार पर्यावरणीय मंजूरी की जरूरत नहीं है उन्हें एनबीडब्ल्यूएल की भी मंजूरी की जरूरत नहीं होगी.

वहीं एडीजी वन्यजीव, सौमित्र दासगुप्ता का कहना है कि ये कोई नहीं बात नहीं है, ये प्रावधान पहले से ही मौजूद था.

दासगुप्ता ने कहा, ‘इसमें कोई नई बात नहीं है. ईएसजेड में स्थित ऐसे प्रोजेक्ट जिन्हें पर्यावरणीय मंजूरी की जरूरत नहीं होती, उन्हें एनबीडब्ल्यूएल की भी मंजूरी नहीं चाहिए. इसे सिर्फ स्पष्ट किया गया है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)