मिड-डे-मील पर दिल्ली सरकार के हलफ़नामे पर हाईकोर्ट ने नाराज़गी जताई

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार ने दावा किया था कि वह मिड-डे मील योजना के तहत हर महीने प्रत्येक बच्चे को 540 रुपये का भुगतान करती है, लेकिन इस साल मार्च में उसके ख़ुद के हलफ़नामे में कहा गया कि उसने पंजीकृत 8.21 लाख बच्चों को क़रीब सात करोड़ रुपये का भुगतान किया, जो प्रति बच्चा 100 रुपये से भी कम है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार ने दावा किया था कि वह मिड-डे मील योजना के तहत हर महीने प्रत्येक बच्चे को 540 रुपये का भुगतान करती है, लेकिन इस साल मार्च में उसके ख़ुद के हलफ़नामे में कहा गया कि उसने पंजीकृत 8.21 लाख बच्चों को क़रीब सात करोड़ रुपये का भुगतान किया, जो प्रति बच्चा 100 रुपये से भी कम है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने गरीब बच्चों को दिए जाने वाले खाद्य सुरक्षा भत्तों के संबंध में शुक्रवार को भ्रामक हलफनामा दाखिल करने पर राजधानी दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार से नाराजगी जताई है. उच्च न्यायालय ने कहा है कि वह खासतौर पर जब मिड-डे मील की बात है तो किसी को अपनी आंखों में धूल नहीं झोंकने देगा.

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और जस्टिस प्रतीक जालान की पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार ने दावा किया था कि वह मिड-डे मील योजना के तहत हर महीने प्रत्येक बच्चे को 540 रुपये का भुगतान करती है, लेकिन इस साल मार्च में उसके खुद के हलफनामे में कहा गया कि उसने अपने साथ पंजीकृत 8.21 लाख बच्चों को करीब सात करोड़ रुपये का भुगतान किया, जो प्रति बच्चा 100 रुपये से भी कम है.

पीठ को बताया गया कि दिल्ली सरकार ने अप्रैल से जून के बीच कुल 8.25 लाख बच्चों में से करीब पांच लाख बच्चों को कुल करीब 27 करोड़ रुपये का भुगतान किया. करीब दो लाख मामलों पर प्रक्रिया चल रही है और 75,000 अन्य मामलों में बैंक विवरण बेमेल हैं.

पीठ ने हलफनामे को देखने के बाद कहा कि अगर योजना के तहत केवल पांच लाख बच्चों को भुगतान किया गया है तो प्रत्येक बच्चे को 540 रुपये देने के लिए अप्रैल से जून तक हर महीने करीब 27 करोड़ रुपये का भुगतान किया जाना चाहिए.

पीठ ने कहा, ‘हलफनामा उलझाने वाला लगता है. यह जान-बूझकर गुमराह करने वाला बनाया गया है. यह हलफनामा हमारी आंखों में धूल झोंकने की कोशिश कर रहा है. जहां तक गरीब बच्चों के मिड-डे मील की बात है तो हम निश्चित रूप से किसी को भी हमारी आंखों में धूल नहीं झोंकने देंगे.’

दिल्ली सरकार के वकील जवाहर राजा ने विसंगतियों को समझाने का प्रयास करते हुए कहा कि मार्च महीने के बाद कक्षा आठवीं के अधिकतर बच्चों ने स्कूल छोड़ दिए होंगे और अनेक मामलों में बैंकों का ब्योरा उपलब्ध आंकड़ों से नहीं मीला.

उन्होंने पीठ से विसंगतियों का कारण पता लगाने के लिए और समय मांगा.

पीठ ने दिल्ली सरकार को विसंगतियों के बारे में समझाने के लिए समय तो दिया, लेकिन दिल्ली सरकार के वकील की दलीलों को स्वीकार नहीं किया.

पीठ ने कहा, ‘आपको अपना खुद का हलफनामा पढ़ना चाहिए. आप बिना तैयारी के दलीलें रख रहे हैं. आप क्या दलील दे रहे हैं, सोच लीजिए.’

पीठ एनजीओ महिला एकता मंच की एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसने दिल्ली सरकार को कोविड-19 के लॉकडाउन में स्कूलों के बंद रहने के दौरान पात्र बच्चों को पका हुआ मिड-डे मील या खाद्य सुरक्षा भत्ता देने का निर्देश देने का अनुरोध किया है.

इससे पहले केंद्र सरकार ने अदालत को बताया था कि उसने वित्त वर्ष 2020-21 के लिए मध्याह्न भोजन योजना के तहत केंद्रीय सहायता के तौर पर दिल्ली सरकार को 27 करोड़ रुपये से अधिक की राशि जारी की थी.

बता दें कि बीते महीने द वायर को आरटीआई से जानकारी मिली थी कि दिल्ली सरकार ने अप्रैल से जून तक किसी बच्चे को मिड-डे मील योजना का लाभ नहीं दिया.

वहीं, मार्च महीने में मिड-डे मील के तहत पके हुए भोजन के एवज में छात्रों के खाते में कुछ राशि डाली गई, लेकिन ये सिर्फ भोजन पकाने के लिए निर्धारित राशि से भी कम है. इसके अलावा ये धनराशि भी सभी पात्र लाभार्थियों को नहीं दी गई है.

राज्य सरकार द्वारा मुहैया कराई गई जानकारी के मुताबिक, मार्च महीने में उच्च प्राथमिक स्तर (छठी से आठवीं क्लास) के 429,027 छात्रों को 77.99 रुपये की दर से कुल 3.34 करोड़ रुपये का खाद्य सुरक्षा भत्ता देने का प्रस्ताव रखा गया था. 

वहीं प्राथमिक स्तर (एक से पांचवीं क्लास) के 136,094 छात्रों को 94.60 रुपये की दर से कुल 1.28 करोड़ रुपये देने का प्रावधान किया गया था. 

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)