अदालत ने कहा, नालों और सेप्टिक टैंकों की नुकसानदेह सफाई के लिए रोज़गार या ऐसे कामों के लिए लोगों की सेवाएं लेने पर प्रतिबंध है.
चेन्नई: सिर पर मैला ढोने के काम को प्रथम दृष्टया मानवाधिकार और गरिमामयी जीवन जीने के संवैधानिक अधिकारों का हनन करार देते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने बीते शनिवार को केंद्र और तमिलनाडु सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि किसी से सिर पर मैला ढोने का काम नहीं लिया जाए.
मुख्य न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति एम. सुंदर की पीठ ने चेन्नई के सफाई कर्मचारी आंदोलन की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर यह निर्देश दिया.
सफाई कर्मचारी आंदोलन सिर पर मैला ढोने की प्रथा को पूरी तरह से ख़त्म करने को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाता है.
पीठ ने कहा, सिर पर मैला ढोने वाले के तौर पर रोज़गार पर प्रतिबंध और उनका पुनर्वास कानून, 2013 की धारा 7 के तहत नालों और सेप्टिक टैंकों की नुकसानदेह सफाई के लिए रोज़गार या ऐसे कामों के लिए लोगों की सेवाएं लेने पर प्रतिबंध है.
अदालत के मुताबिक, यह सही है कि इस कानून की धारा 5, 6 और 7 का उल्लंघन कर सिर पर मैला ढोने का काम कराने वालों पर इस कानून की धारा 8 और 9 के तहत जुर्माना लगाया जा सकता है.
बहरहाल, अदालत ने कहा कि प्रतिवादी प्राधिकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए क़दम उठाना होगा कि कानून की धारा 5, 6 और 7 का उल्लंघन न हो.
पीठ ने केंद्र की तरफ से पेश हुए सहायक सॉलिसीटर जनरल और राज्य के सरकारी वकील को नोटिस भी जारी किया.
याचिका में सूचना के अधिकार के तहत दाख़िल अर्ज़ी पर मिले जवाब का हवाला देते हुए कहा गया था कि एक जनवरी 2014 से इस साल 20 मार्च के बीच चेन्नई, तिरूवल्लूर, कुड्डलोर, मदुरै, त्रिची, विल्लूपुरम और विरुधुनगर में सिर पर मैला ढोने के कारण 30 लोगों की मौत हुई.
याचिका में दावा किया गया है कि सरकारें सिर पर मैला ढोने वाले परिवारों का पता लगाने और उनका पुनर्वास करने के लिए समय और प्रयास करती नज़र नहीं आ रही हैं.
याचिकाकर्ता के अनुसार, मौतों को तभी रोका जा सकता है जब लोग सीवर और सेप्टिक टैंकों में जाना बंद कर दें.
बता दें कि मद्रास उच्च न्यायालय का फैसला ठीक उसी दिन आया है जब दक्षिण दिल्ली के घिटोरनी इलाके में सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान दम घुटने से चार सफाई कर्मचारियों की मौत हो गई.
(समाचार एजेंसी भाषा से सहयोग के साथ)