इलीना छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों के उल्लंघन की मुखर आलोचक थीं. उन्होंने छत्तीसगढ़ में कई साल बिताए. कई ट्रेड यूनियनों और आदिवासी संगठनों के साथ काम किया.
मुंबई: पिछले कई वर्षों से कैंसर से पीड़ित लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाविद इलीना सेन का बीते नौ अगस्त को निधन हो गया. उनके परिवार में उनके पति डॉ. बिनायक सेन और दो बेटियां- प्रहनीता और अपराजिता हैं.
इलीना का निधन कोलकाता में हुआ. पश्चिम बंगाल के भाकपा-माले सचिव पार्थ घोष ने प्रेस को जारी एक बयान में कहा, ‘डॉ. इलीना सेन सार्वजनिक स्वास्थ्य आंदोलन का एक चेहरा थीं. कल (मंगलवार) सुबह 6 बजे उनका अंतिम संस्कार केओराताल श्मशान (कोलकाता में) घाट में किया जाएगा.’
इलीना ने छत्तीसगढ़ में कई साल बिताए और कई ट्रेड यूनियनों और आदिवासी संगठनों के साथ काम किया था. एक दशक पहले वो अकादमिक क्षेत्र में चली गई थीं.
उन्होंने महाराष्ट्र के वर्धा में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में पढ़ाया और बाद में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) में एडवांस्ड सेंटर फॉर वुमेन स्टडीज में पढ़ाने के लिए मुंबई चली गई थीं.
साल 2007 में उनके पति, चिकित्सक और मानवाधिकार कार्यकर्ता बिनायक सेन को माओवादियों के लिए ‘संदेशवाहक’ होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
बाद में उन्हें रायपुर सत्र न्यायालय ने राजद्रोह के आरोपों और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम तथा छत्तीसगढ़ सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत दोषी ठहराया गया था.
इलीना ने बिनायक की रिहाई के लिए कानूनी लड़ाई की अगुवाई की और मध्य भारत में आदिवासी समुदाय के कई युवकों की फर्जी गिरफ्तारी के खिलाफ अभियान चलाया.
जैसे ही इलीना की मौत की खबर सामने आई, कई अधिकार कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों ने सोशल मीडिया के जरिये अपना दुख व्यक्त किया.
DIsmayed to hear of Ilina Sen's death. She was an endless source of material, common sense and inspiration when I was writing my book about her husband, Binayak Sen, and also later. Her own book, "Inside Chhattisgarh: A Political Memoir" was an eye-opener. Go well, Ilina.
— Dilip D'Souza (@DeathEndsFun) August 9, 2020
मुंबई के लेखक और पत्रकार दिलीप डिसूजा ने लिखा, ‘इलीना सेन की मौत के बारे में सुनकर निराश हूं. जब मैं उनके पति बिनायक सेन के बारे में किताब लिख रहा था तब वह सामग्री, कॉमन सेंस और प्रेरणा की एक अंतहीन स्रोत थीं. आगे चलकर भी वो प्रेरित करती रहीं. उनकी अपनी किताब, ‘इनसाइड छत्तीसगढ़: अ पॉलिटिकल मेमोरियल’ आंख खोलने वाली एक पुस्तक है.’
लेखक और अकादमिक नंदिनी सुंदर ने लिखा, ‘यह सुनकर दुख हुआ कि इलीना सेन का निधन हो गया है. जब मैं ग्रैजुएशन की छात्रा थी, तब उनकी किताब ‘द स्पेस विद द स्ट्रगल’ से बहुत प्रेरणा मिली थी. वह बहादुर थीं, बुद्धिमान थीं, हास्य और कई हितों की गहरी समझ रखती थीं. बहुत बड़ा नुकसान.’
Deeply saddened to hear that Ilina Sen passed away – her book, The Space Within the Struggle, was a huge inspiration when I was a graduate student. She was brave, wise, had a keen sense of humour and multiple interests. What a loss.
— N S (@nandinisundar) August 9, 2020
इलीना छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों के उल्लंघन की मुखर आलोचक थीं. उन्होंने अपनी किताब ‘इनसाइड छत्तीसगढ़: अ पोलिटिकल मेमॉयर एंड सुखवासिन: द माइग्रेंट वूमेन ऑफ छत्तीसगढ़’ में छत्तीसगढ़ के बारे में व्यापक राजनीतिक दृष्टिकोण पेश किया है, जिसमें क्षेत्र के लोगों के संघर्ष के बारे में विस्तार से बात की गई है.
दिल्ली के एक स्वतंत्र नारीवादी प्रकाशन ‘जुबान’ द्वारा प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘अ स्पेस विदिन द स्ट्रगल’ में इलीना ने सामाजिक आंदोलनों में कई महिलाओं के बारे में लिखा और उनके भीतर स्थापित पितृसत्ता पर सवाल उठाया है.
साल 2015 में ‘जुबान’ को दिए गए एक विस्तृत इंटरव्यू में इलीना कहती हैं, ‘मैं महिलाओं के आंदोलन के साथ बड़ी हुई.’ उसी साक्षात्कार में इलीना ने कहा था कि वह अपने काम और जीवन को दो अवधियों में विभाजित करती हैं.
इलीना के अनुसार, ‘मैंने अपने जीवन और कार्यक्षेत्र में जो कुछ भी किया है, मैं उसे दो अवधियों में विभाजित कर सकती हूं. 2005 से पहले इसका बहुत सारा हिस्सा छत्तीसगढ़ पर केंद्रित था. उस समय कोई भी व्यक्ति जो छत्तीसगढ़ पर शोध कर रहा था या छत्तीसगढ़ में काम करना चाहता था, अगर वे वहां से गुजरते थे तो वे मुझसे मिलने आया करते थे. मैं उस समय बहुत से लोगों से मिली- दिल्ली के लोग, अंतरराष्ट्रीय स्कॉलर- और मुझे ऐसे व्यक्ति के रूप में पहचाना गया जो उन मुद्दों से काफी जुड़ा हुआ है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘जब मैंने फिर से लिखना शुरू किया, 2009 के बाद से, यह एक अलग चरण था. मैंने राज्य (सरकार) के दमनकारी चेहरे को करीब से देखा था. मेरे अपने शैक्षणिक रुझान भी बदल गए.’
उन्होंने 1970 के दशक के अंत और 80 के दशक के शुरुआती दिनों में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अध्ययन किया और दहेज हत्या और मथुरा बलात्कार मामले में सक्रिय रूप से भाग लिया.
इलीना ने ज्यादातर मध्य भारत में दूरदराज के जनजातीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा पर अपने पति के साथ मिलकर काम किया.
डॉ. बिनायक सेन और इलीना सेन ने ग्रामीण मध्य प्रदेश में काम करते हुए कई साल बिताए और दल्ली रझारा (अब छत्तीसगढ़ में) में मध्य प्रदेश के लौह अयस्क खनन बेल्ट में श्रमिकों के एक स्वतंत्र संघ छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संगठन (सीएमएसएस) से जुड़े रहे.
दोनों लोगों ने सीएमएसएस के शहीद अस्पताल के साथ काम किया, जो एक श्रमिक वर्ग आंदोलन के भीतर स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए बनाया गया था.
दोनों ने ‘रूपांतर’ नाम का एक एनजीओ भी स्थापित किया, जो लैंगिक मुद्दों और प्रशिक्षणों के साथ-साथ कृषि विविधता पर भी काम करने के लिए बनाया गया था.
रूपंतार में सेन दंपति ने छत्तीसगढ़ के चावल और बीज बैंकों के विभिन्न स्वदेशी प्रकारों (उपभेदों) पर रिसर्च करना शुरू कर दिया था और एक साक्षात्कार में इलीना ने कहा था कि खाद्य अनाज के कई स्वदेशी बीजों को संरक्षित करने की कोशिश की गई थी, जिन्हें अनदेखा किया जा रहा है.
यहां तक कि जब उनकी तबीयत खराब हो गई, तब भी इलीना कई आंदोलन में सक्रिय रहीं और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) के साथ लंबे समय तक जुड़ी रहीं.
उन्होंने देश के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ हाल ही में महाराष्ट्र के एलगार परिषद मामले में अपनी असहमति और आपत्ति जताई थी.
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