शराबबंदी से टीबी के जांच में इस्तेमाल होने वाले एथिल एल्कोहल की कमी हो गई है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बिहार सरकार को लिखा पत्र.
नई दिल्ली: बिहार में शराबबंदी के कई सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं लेकिन इससे राज्य में टीबी की जांच में अड़चन आ रही है.
स्वास्थ्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बिहार में पिछले साल शराब को प्रतिबंधित किए जाने के बाद से टीबी के निर्धारण संबंधी जांच कठिन कार्य हो गया है.
इसका संज्ञान लेते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बाधारहित नैदानिक सेवाओं के लिए एल्कोहल की ख़रीद और इस्तेमाल पर विशेष छूट देने की मांग करते हुए बिहार के स्वास्थ्य विभाग को लिखा है.
मंत्रालय में स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक जगदीश प्रसाद के मुताबिक इस तरह की जांच में प्रयुक्त एथिल एल्कोहल की किल्लत हो गई है. यहां तक कि सरकारी संस्थाओं में भी इसकी किल्लत है.
बिहार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को लिखे अपने पत्र में प्रसाद ने कहा कि टीबी को सफल तरीके से ठीक करने के लिए समय पर रोग का पता लगाना और उसका उचित इलाज ज़रूरी होता है. इसकी नैदानिक जांच प्राथमिक तौर पर स्मीयर माइक्रोस्कोपी के ज़रिये कई स्तरों पर होती है।
स्मीयर माइक्रोस्कोपी के लिए ज़रूरी अभिकर्मकों जिल नीलसन और फ्लूरिसकेंट स्टेनिंग दोनों में शुद्ध एल्कोहल होता है. इस पूरी क्रिया में शराब की और भी कई तरह की ज़रूरतें पड़ती हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, बिहार में पिछले साल 64,158 टीबी के मामले सरकारी अस्पतालों में सामने आए हैं. ये कुल मामलों को सिर्फ 33 प्रतिशत है.
राज्य में 736 माइक्रोस्कोपिक प्रयोगशालाएं और 38 खास प्रयोगशालाएं हैं.
29 जून को लिखे गए पत्र में प्रसाद ने कहा है, बिहार में शराबबंदी से प्रयोगशालाओं में एल्कोहल की कमी हो गई, जिसकी वजह से टीबी की जांच प्रभावित हो रही है.
उन्होंने कहा है कि बिहार सरकार को अस्पतालों और प्रयोगशालाओं में शराब के इस्तेमाल से प्रतिबंध हटा देना चाहिए.
उनका कहना है कि शराब और स्प्रिरिट का इस्तेमाल माइक्रोस्कोपी के लिए रीजेंट्स (प्रतिक्रियाशील द्रव्य) तैयार करने में होता है, जो कि टीवी जांच में होने वाली माइक्रोस्कोपी के लिए बेहद ज़रूरी होता है.
बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने पिछले साल पांच अप्रैल को राज्य में शराब पर प्रतिबंध लगा दिया था.
कई अवसरों में मुख्यमंत्री नीतीशकुमार कह चुके हैं कि शराबबंदी से राज्य में सकारात्मक बदलाव आएं हैं. इससे सड़क दुर्घनाओं में कमी आई है और लोगों के पैसों की भी बचत हो रही है.
(समाचार एजेंसी भाषा से सहयोग के साथ)