सेना ने जम्मू कश्मीर के शोपियां इलाके में बीते 18 जुलाई को तीन आतंकियों के मुठभेड़ में मारे जाने का दावा किया था. दूसरी ओर राजौरी ज़िले के तीन परिवारों का कहना है कि मुठभेड़ में मारे गए लोग आतंकी नहीं, बल्कि मज़दूर थे. परिवारवालों ने बीते छह अगस्त को तीनों की गुमशुदगी का केस दर्ज कराया था.
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नई दिल्ली: दक्षिण कश्मीर के शोपियां में सेना द्वारा एनकाउंटर में ‘तीन अज्ञात कथित आतंकियों’ को मारने का दावा करने के तीन हफ्ते बाद जम्मू क्षेत्र के राजौरी में तीन परिवारों ने कहा है कि वे आतंकी नहीं थे, बल्कि उनके घर के लोग थे और मजदूरी किया करते थे.
इसमें से एक 16 साल का लड़का था, जो कि कश्मीर में काम करने के लिए गया था, लेकिन 17 जुलाई की रात से ही परिवार को उसका पता नहीं चल पाया. सेना ने कहा है कि उन्होंने इस संबंध में जांच के आदेश दिए हैं.
यदि परिवार के दावे सही पाए गए तो ये मार्च 2000 के पथरीबल घटना की भयावह यादें ताजा कर देगी, जहां अनंतनाग में पांच नागरिकों की हत्या कर उन्हें ‘आतंकवादी’ करार दे दिया गया था. साल 2010 में माछिल एनकाउंटर भी ऐसी ही एक घटना थी, जहां तीन नागरिकों की हत्या की गई थी.
तीन परिवारों ने पिछले हफ्ते गुरुवार (छह अगस्त) को राजौरी के कोतराना तहसील में गुमशुदा व्यक्तियों की शिकायत दायर कर कहा था कि 18 जुलाई को सुरक्षा बलों द्वारा एनकाउंटर में मारे गए लोग आतंकी नहीं, मजदूर थे.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक उन्होंने बताया है कि उनके नाम इम्तियाज अहमद (20), अबरार अहमद (16) और मोहम्मद अबरार (25) हैं. परिवार ने बताया कि ये लोग कोतरांका तहसील के दो गांव- धारसाकरी और तारकासी के रहने वाले हैं.
परिजनों ने कहा कि वे 16 जुलाई को घर से गए थे और अगले दिन से ही लापता हैं.
अबरार अहमद के पिता मोहम्मद यूसुफ ने द वायर को बताया, ‘इम्तियाज अहमद करीब एक महीने से शोपियां में एक मजदूर के रूप में काम कर रहे थे. उन्होंने मेरे बेटे अबरार और मेरी भाभी के बेटे, उसका नाम भी अबरार है, को काम करने के लिए वहां आने को कहा था. वे 16 जुलाई को शोपियां के लिए रवाना हुए. तब से हम उनके ठिकाने के बारे में कुछ नहीं जानते हैं. मैंने 18 जुलाई को उसे फोन किया, लेकिन उसका फोन बंद था.’
उन्होंने दावा किया कि वे शोपियां में 18 जुलाई को हुए एनकाउंटर में मरने वालों की कथित तस्वीरों में अपनी भाभी के बेटे अबरार को पहचान सकते हैं. यूसुफ ने बताया कि शोपियां जाने के लिए वे राजौरी जिला प्रशासन से इजाजत मांग रहे हैं.
उन्होंने कहा कि तीनों युवक अपनी आजीविका कमाने के लिए शोपियां गए थे और उनका उग्रवाद से कोई संबंध नहीं है. यूसुफ ने कहा, ‘हम गरीब लोग हैं. हमारा उग्रवाद से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है.
राजौरी के एक अन्य व्यक्ति लाल हुसैन ने कहा कि इम्तियाज अहमद ने 17 जुलाई की शाम को उन्हें फोन पर सूचित किया था कि दोनों लड़के शोपियां पहुंच गए हैं.
उन्होंने कहा, ‘हमने पहले सोचा था कि कोविड-19 के कारण उन्हें क्वारंटीन किया गया है. हमें नहीं पता कि वे कहां हैं. अब हमने पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई है.’
Clearly GOI needs the militancy narrative to justify repressive & violent measures
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) August 10, 2020
राजौरी के एक राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता गुफ्तार अहमद चौधरी ने कहा कि परिवारों को आशंका है कि ये लड़के शोपियां मुठभेड़ में मारे गए होंगे. उन्होंने कहा कि मामले की जल्द से जल्द जांच होनी चाहिए.
एक संक्षिप्त बयान में सेना ने बीते सोमवार शाम को कहा, ‘हमने 18 जुलाई 2020 को शोपियां में ऑपरेशन से जुड़े सोशल मीडिया इनपुट को नोट किया है. ऑपरेशन के दौरान मारे गए तीन आतंकवादियों की पहचान नहीं की गई है और शवों को स्थापित प्रोटोकॉल के आधार पर दफनाया गया था. सेना मामले की जांच कर रही है.’
जम्मू कश्मीर पुलिस ने इस एनकाउंटर से दूरी बना ली है और कहा है कि यह आर्मी के इनपुट पर आधारित था.
सेना ने दावा किया था कि उन तीन कथित आतंकियों के पास से तीन पिस्टल बरामद हुए थे. मुठभेड़ में मारे गए लोगों के शवों पर किसी भी द्वारा दावा नहीं किए जाने के बाद उन्हें दफना दिया गया था.