वाराणसी के 28 चिकित्सा अधिकारियों ने 12 अगस्त को सामूहिक इस्तीफ़ा देते हुए आरोप लगाया था कि उप जिलाधिकारी उन पर दबाव बनाते हुए उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहे हैं. अधिकारियों ने प्रशासन को अतिरिक्त सीएमओ की मौत के लिए भी ज़िम्मेदार ठहराया था.
वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के 28 चिकित्सा अधिकारियों ने सामूहिक इस्तीफा के एक दिन बाद अपना इस्तीफा वापस ले लिया.
इन लोगों ने आरोप लगाया था कि उप-जिलाधिकारी उन पर दबाव बनाते हुए उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहे हैं. इन अधिकारियों ने सामूहिक रूप से मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. वीबी सिंह को इस्तीफा सौंपा था.
इस्तीफा देने वाले चिकित्सा अधिकारियों ने अपने त्याग-पत्र में लिखा था, ‘सहायक नोडल अधिकारी सह उप-जिलाधिकारी ने नौ अगस्त को प्रभारी चिकित्सा अधिकारियों को नोटिस जारी करते हुए कोविड-19 के दौरान किए गए कार्यों को अपर्याप्त बताया है. इस नोटिस से सभी प्रभारियों पर अनावश्यक दबाव बनाया जा रहा है और लक्ष्य पूरा न होने पर आपराधिक कृत्य करार देने और और मुकदमा दायर करने की धमकी दी जा रही है.’
त्याग-पत्र में इन चिकित्सा अधिकारियों ने कहा था, ‘इतने मानसिक दबाव में वे प्रभारी का कार्य करने में असमर्थ हैं.’
इन अधिकारियों ने त्याग-पत्र में अतिरिक्त मुख्य चिकित्सा अधिकारी (एसीएमओ) की मौत के लिए भी प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया था.
उनका आरोप था, ‘प्रशासन की ओर से एसीएमओ डॉ. जंग बहादुर को बर्खास्त करने की धमकी दी गई थी. इसी के सदमे से शायद उनकी मौत हुई है.’
चिकित्साधिकारियों ने यह सवाल उठाया था कि इस मौत की जिम्मेदारी आखिर कौन लेगा.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इस पूरे मामले पर जिला मजिस्ट्रेट कौशल राज शर्मा ने गुरुवार को सभी गैर-स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को चिकित्सा मामलों में सीएमओ और अतिरिक्त सीएमओ के साथ समन्वय करने का आदेश दिया.
शर्मा ने स्पष्ट किया है कि इन स्वास्थ्य केंद्रों पर अब से केवल सीएमओ का ही नियंत्रण होगा.
बीते 9 अगस्त के एक नोटिस में एसडीएम (सदर) विनय कुमार सिंह ने अधिकारियों को बताया था कि उनका काम अपर्याप्त था.
सिंह ने केंद्रों से भेजे जा रहे कोविड -19 के आंकड़ों में विभिन्न विसंगतियों की ओर इंगित करते हुए चेतावनी दी थी कि इस पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है. सीएचसी और पीएचसी के 26 अधिकारियों को पत्र भेजा गया था.
एसडीएम ने दावा किया था कि दैनिक रिपोर्ट में जो आंकड़े दर्ज हैं वह या तो अपूर्ण हैं या गलत हैं. कोविड-19 पॉजिटिव मरीजों, जो मेडिकल आइसोलेशन में या होम आइसोलेशन में हों, के बारे में विरोधाभासी जानकारी दी जा रही है.
उन्होंने कहा कि मरीजों को घर पर खुद को आइसोलेट करने की अनुमति नहीं थी और अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या में भी अंतर था.
जिला एकीकृत कोविड नियंत्रण और कमान केंद्र के सहायक नोडल अधिकारी विनय कुमार सिंह ने सुझाव दिया कि अधिकारियों के कारण घर में आइसोलेट किए गए कुछ रोगी खतरे में पड़ सकते हैं जो आपराधिक गतिविधि की श्रेणी में आता है.
एसडीएम ने यह भी कहा था कि रोगियों के संपर्क में आए व्यक्तियों की संख्या के आधार पर पर्याप्त नमूने नहीं लिए गए थे. निगरानी नमूने, सामुदायिक नमूने, आरटी-पीसीआर नमूने और एंटीजन नमूने भी कम थे.
विनय कुमार सिंह ने कहा, ‘राज्य सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों के आधार पर सरकारी कर्मचारियों को अलग-अलग ज़िम्मेदारियां दी गई हैं और उनका उल्लंघन करना दंडनीय अपराध घोषित किया गया है.’
वहीं, चिकित्सा अधिकारियों ने कहा, ‘एसडीएम ने हमारे अधूरे लक्ष्यों को एक आपराधिक गतिविधि घोषित किया और हमारे खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की धमकी दी.’
उन्होंने 12 अगस्त को सीएमओ को लिखे अपने पत्र में कहा, ‘पत्र के संबंध में हमारा कहना है कि हम सभी चिकित्सा अधिकारी इस तरह के मानसिक दबाव में काम करने में असमर्थ हैं.’
दूसरी ओर सीएमओ वीबी सिंह ने बताया कि मेडिकल अधिकारियों ने इस्तीफा दिया था लेकिन उन्हें समझा-बुझा दिया गया है और सभी लोग अपने काम पर लौट गए हैं.
चिकित्सा स्वास्थ्य के महानिदेशक (डीजी) डॉ. डीएस नेगी ने मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किए गए नवीनतम निर्देशों के बारे में इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा कि यह एक जिला-स्तरीय विवाद था और डीएम ने स्थिति के अनुसार निर्णय लिया था.
उन्होंने कहा, ‘जब मुझे वाराणसी के इस परिदृश्य के बारे में पता चला तो मैंने सीएमओ को फोन किया. कल रात मुझे बताया गया कि मामला सुलझ गया है और सबकुछ ठीक हो गया है. आम तौर पर प्रशासनिक अधिकारी और स्वास्थ्य अधिकारी कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में एक साथ काम करते हैं. बस, बात यह है कि चीजें कैसी होनी चाहिए.’
वहीं, इस पूरे मामले पर बसपा प्रमुख मायावती ने राज्य सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘समुचित सुविधाओं के अभाव में जान जोखिम में डालकर कोरोना पीड़ितों की सेवा में लगे डॉक्टरों पर सरकारी दबाव और धमकी से स्थिति बिगड़ रही है. वाराणसी में 28 स्वास्थ्य केंद्र प्रभारियों का सामूहिक इस्तीफा इसी का नतीजा है.’
उन्होंने सरकार से मांग की कि बिना भेदभाव के और सुविधा देकर उनसे सेवा लें, तो बेहतर होगा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)