केंद्र कैसे कह सकता है कि खाद्य सुरक्षा क़ानून का संबंध ग़रीबी उन्मूलन से नहीं: हाईकोर्ट

विशेष रूप से सक्षम लोगों को खाद्य सुरक्षा की सभी योजनाओं का लाभ देने के लिए दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट पीठ ने उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय से पूछा कि खाद्य सुरक्षा की ज़रूरत ग़रीबों को होती है, तो आप कैसे कह सकते हैं कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून संबंध ग़रीबी उन्मूलन से नहीं है.

(फोटो: पीटीआई)

विशेष रूप से सक्षम लोगों को खाद्य सुरक्षा की सभी योजनाओं का लाभ देने के लिए दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट पीठ ने उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय से पूछा कि खाद्य सुरक्षा की ज़रूरत ग़रीबों को होती है, तो आप कैसे कह सकते हैं कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून संबंध ग़रीबी उन्मूलन से नहीं है.

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नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को केंद्र से पूछा कि वह कैसे कह सकता है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए) का संबंध गरीबी उन्मूलन से नहीं है, जबकि इसका उद्देश्य गरीबों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है.

विशेष रूप से सक्षम लोगों को खाद्य सुरक्षा की सभी योजनाओं का लाभ देने के लिए दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और जस्टिस प्रतीक जालान की पीठ ने उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय से पूछा, ‘खाद्य सुरक्षा की जरूरत गरीबों को होती है, तो आप कैसे कह सकते हैं कि इसका (एनएफएसए) संबंध गरीबी से नहीं है.’

जनहित याचिका पर जवाब देते हुए मंत्रालय ने कहा कि एनएफएसए का संबंध गरीबी उन्मूलन से नहीं है और इसका उद्देश्य देश की 67 प्रतिशत आबादी को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है.

मंत्रालय का पक्ष केंद्र सरकार की स्थायी वकील मोनिका अरोड़ा ने रखा और कहा कि विशेष रूप से सक्षम लोगों के अधिकार कानून (आरपीडल्ब्यूडी) एनएफएसए पर लागू नहीं होता क्योंकि खाद्य सुरक्षा कानून के तहत देश की 67 प्रतिशत आबादी को खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा रहा है, जिनमें विशेष रूप से सक्षम भी शामिल हैं, ऐसे में उनके लिए पांच प्रतिशत आरक्षण अलग से देने की जरूरत नहीं है.

अदालत ने कहा कि सरकार इस आधार पर यह नहीं कह सकती कि विशेष रूप से सक्षम लोगों को आरक्षण नहीं दिया जा सकता क्योंकि उन्हें एनएफएसए से अलग नहीं किया गया है.

अदालत ने कहा, ‘आरक्षण का उद्देश्य है प्राथमिकता के आधार पर व्यवहार. यहां प्राथमिकता के आधार पर व्यवहार कहां हैं? आप (केंद्र) यह मान रहे हैं कि विशेष रूप से सक्षम लोगों के लिए भी राशन कार्ड प्राप्त करना अन्य लोगों की तरह ही आसान है. आप देश की उस वास्तविक स्थिति पर विचार नहीं कर रहे हैं जिसमें वे रह रहे हैं.’

पीठ ने आगे कहा कि सरकारी अधिकारियों द्वारा दिव्यांगता प्रमाण-पत्र जारी किया जाता है.

अदालत ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार शुरुआत में दिव्यांगता प्रमाण-पत्र के आधार पर खाद्यान्न देने पर विचार करें और इसके साथ ही इस सूचना का संग्रह राशन कार्ड जारी करने के लिए करें.

पीठ ने कहा कि इसके बाद राशन कार्ड के साथ खाद्यान्न दिया जा सकता है. इस परामर्श के बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 24 अगस्त के लिए सूचीबद्ध कर दी.

उल्लेखनीय है कि अदालत ने पहले भी परामर्श दिया था. अदालत ने 22 जुलाई को केंद्र सरकार से इसकी व्यावहारिकता पर विचार करने को कहा था.

पीठ ने कहा था कि, ‘समस्या यह है कि उन्हें अनंतकाल से (कल्याणकारी) योजनाओं से बाहर रखा गया है. अगर केंद्र को इस बात की जानकारी नहीं है तो हम उसे इस बारे में जागरूक करेंगे.’

अदालत ने कहा, ‘इस तथ्य पर किसी बहस की गुंजाइश नहीं कि विशेष रूप से सक्षम व्यक्ति हर योजना में हाशिये पर पहुंच जाते हैं.’

केंद्र सरकार ने अदालत को बताया था कि एनएफएसए के तहत 80 करोड़ से अधिक लोगों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने और उन्हें विशेष रूप से सक्षम लोगों सहित विभिन्न श्रेणियों में कंपार्टमेंट करने के लिए राशन कार्ड की आवश्यकता है, वरना प्राथमिकता वाले घरों की पहचान करना कठिन हो जाता है.

पीठ ने केंद्र के इस रुख से इत्तेफाक न जताते हुए कहा था, ‘हलफनामे का सार और लहजा चौंकाने वाला था.’

अदालत ने कहा, ‘यह दायित्व विशेष रूप से सक्षम व्यक्तियों का नहीं कि वे राशन कार्ड नहीं प्राप्त कर सके. यह दिखाने का दायित्व सरकार का है कि सभी को राशन कार्ड उसने उपलब्ध कराया है.’

पीठ ने कहा था, ‘समस्या यह है कि आप (केंद्र) इसे अलग से नहीं देख रहे हैं.’ केंद्र ने यह भी दावा किया कि प्राथमिकता वाले घरों की पहचान करना राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की जिम्मेदारी है.

इस पर पीठ ने कहा कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को प्रधानमंत्री कल्याण योजना की तरह विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के तहत ऐसे लोगों को शामिल करने के लिए एक परिपत्र के माध्यम से केंद्र के समर्थन की आवश्यकता होगी.

हालांकि, केंद्र सरकार ने 29 जुलाई की सुनवाई के दौरान इस परामर्श पर कुछ नहीं कहा.

अदालत में बृहस्पतिवार को हुई सुनवाई के दौरान जनहित याचिका दायर करने वाले गैर सरकारी संगठन ‘नेशनल फेडरेशन फॉर ब्लाइंड’ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संतोष कुमार रूंगटा पेश हुए.

उन्होंने कहा कि हाल में उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने ट्वीट कर एवं प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि विशेष रूप से सक्षम लोगों को राशन कार्ड पर जोर दिए बिना खाद्यान्न मुहैया कराया जाएगा और इस संबंध में सभी राज्यों को निर्देश जारी करने की बात भी कही गई थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)